Shardiya Navratri 2023 : नौ दिनी शारदीय नवरात्र 15 अक्टूबर से 23 अक्टूबर 2023
कलश स्थापना का शुभ अभिजीत मुहूर्त : दिन में 11:36 मिनट से 12:24 मिनट तक
महाअष्टमी : रविवार, 22 अक्टूबर,
महानवमी : सोमवार, 23 अक्टूबर एवं दशमी : मंगलवार, 24 अक्टूबर
जगतजननी माँ दुर्गा जगदम्बा की आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र का शुभारम्भ 15 अक्टूबर, रविवार को हो रहा है। पूजा-अर्चना श्रद्धा व धार्मिक आस्था एवं भक्तिभाव के साथ करने की परम्परा है। शारदीय नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के अनुसार भगवती की पूजा से सुख व सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जीवन धनधान्य से परिपूर्ण रहता है। शरद ऋतु में दुर्गाजी की महापूजा से सभी प्रकार की बाधाओं की निवृत्ति होती है।
शारदीय नवरात्र में विशेषकर शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना फलदायी मानी गई है। श्रद्धा भक्ति के साथ व्रत उपवास रखकर माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करना विशेष पुण्य फलदायी रहता है। इस बार भगवती का आगमन गज (हाथी) पर हो रहा है, जबकि गमन मुर्गा पर होगा। जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण विश्व में शुभफलदायी बताया गया है।
नवरात्र में पूजा का विधान : Shardiya Navratri Puja
ज्योर्तिविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर भगवती माँ दुर्गा की पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
माँ जगदम्बा के नियमित पूजा में कलश की स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के पूर्व श्रीगणेशजी का विधिविधान पूर्वक पूजन करना चाहिए।
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कलश स्थापना का शुभ अभिजीत मुहूर्त
- 15 अक्टूबर, रविवार को दिन में 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक।
- इस बार 15 अक्टूबर, रविवार को चित्रा नक्षत्र सायं 6 बजकर 13 मिनट तक तथा वैधृति योग (भद्रा) प्रात: 10 बजकर 24 मिनट तक रहेगा।
- इस योग (भद्रा) में कलश स्थापना नहीं की जाती।
- कलश स्थापना रात्रि में नहीं की जाती है।
- कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए।
- शुद्ध मिट्टी की वेदिका बनाकर या नये मिट्टी के गमले में जौ के दाने बोए जाते हैं।
- माँ जगदम्बा को लाल चुनरी, अढ़उल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा व मिष्ठान आदि अर्पित किए जाते हैं।
तिथि विशेष का मान
- षष्ठी तिथि 19 अक्टूबर, गुरुवार को रात्रि 12 बजकर 32 मिनट से 20 अक्टूबर, शुक्रवार को रात्रि 11 बजकर 26 मिनट तक।
- सप्तमी तिथि 20 अक्टूबर, शुक्रवार को रात्रि 11 बजकर 26 मिनट से 21 अक्टूबर, शनिवार को रात्रि 9 बजकर 54 मिनट तक रहेगी।
माँ दुर्गा के नौ-स्वरूपों की होती है पूजा
जिसमें भगवती की प्रसन्नता के लिए शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करके सम्पूर्ण नवरात्र में व्रत या उपवास रखकर श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ व मन्त्र का जप करना कल्याणकारी रहता है। एक दिन, तीन दिन, पाँच दिन, सात दिन अथवा नौ दिन के व्रत का नियम है।
नवरात्र के प्रारम्भ व अन्तिम दिन के व्रत को एकरात्र (एकदिनी) व्रत कहा जाता है। प्रतिपदा एवं नवमी तिथि के दिन एक बार भोजन किया जाए, उसे द्विरात्र (दो दिनी) व्रत कहा जाता है। सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तिथि को एक बार भोजन करने का विधान है, जिसे त्रिरात्र (तीन दिनी) व्रत कहा जाता है।
एकरात्र, द्विरात्र, त्रिरात्र, पंचरात्रि व सप्तरात्रि एवं नवरात्रि व्रत की विशेष महिमा है। पंचमी तिथि के दिन केवल एक बार, षष्ठी तिथि के दिन केवल रात्रि में, सप्तमी तिथि को जो भी (फलाहार) प्राप्त हो जाए और अष्टमी तिथि को सम्पूर्ण दिन उपवास रखना तथा नवमी तिथि को एक बार भोजन करने का विधान है।
नवरात्र में व्रत रखने के पश्चात् व्रत की समाप्ति पर हवन आदि करके कुमारी कन्याओं एवं बटुक का पूजन करके उन्हें पौष्टिक व रुचिकर भोजन करवाना चाहिए। तत्पश्चात उन्हें नव वस्त्र, ऋतुफल, मिष्ठान्न तथा नगद द्रव्य आदि देकर उनके चरणस्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
प्रख्यात ज्योर्तिविद विमल जैन ने बताया कि इस बार नवरात्र नौ दिन का है। इस बार किसी भी तिथि का क्षय नहीं है। नवरात्र 15 अक्टूबर, रविवार से प्रारम्भ होकर 23 अक्टूबर, सोमवार तक रहेगा।
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षष्ठी तिथि से दशमी तिथि तक का मान
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार आश्विन शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 19 अक्टूबर, गुरुवार को रात्रि 12 बजकर 32 मिनट से 20 अक्टूबर, शुक्रवार को रात्रि 11 बजकर 26 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् सप्तमी तिथि लग जाएगी जो कि 21 अक्टूबर, शनिवार को रात्रि 9 बजकर 54 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात अष्टमी तिथि (उदया तिथि के रूप में) लग जाएगी जो कि 22 अक्टूबर, रविवार को रात्रि 8 बजकर 00 मिनट तक रहेगी।
तत्पश्चात नवमी तिथि लग जाएगी जो कि 23 अक्टूबर, सोमवार को सायं 5 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। तदुपरान्त दशमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 24 अक्टूबर, मंगलवार को दिन में 3 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। अष्टमी तिथि 21 अक्टूबर, शनिवार को रात्रि 9 बजकर 54 मिनट पर लगेगी, अष्टमी तिथि का हवन-पूजन इसी दिन रात्रि में किया जाएगा। अष्टमी तिथि उदया तिथि के रूप में 22 अक्टूबर, रविवार को है, फलस्वरूप महाअष्टमी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
महानवमी का व्रत 23 अक्टूबर, सोमवार को रखा जाएगा। महानवमी का व्रत रखकर जगदम्बाजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाएगी। महाअष्टमी तिथि व महानवमी तिथि के दिन बटुक व कुमारी पूजन का विधान है।
नवरात्र व्रत का पारण 24 अक्टूबर, मंगलवार (दशमी) को किया जाएगा। इसी दिन दशमी तिथि दिन में 3 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप विजया दशमी का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा। इसी दिन अपराजिता देवी तथा शमी वृक्ष की पूजा होती है साथ ही शस्त्रों के पूजन का भी विधान है।
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नक्षत्र का मान-ज्येष्ठ नक्षत्र
- 18 अक्टूबर, बुधवार को रात्रि 9 बजकर 01 मिनट से 19 अक्टूबर, गुरुवार को रात्रि 9 बजकर 04 मिनट तक।
- मूल नक्षत्र : 19 अक्टूबर, गुरुवार को रात्रि 9 बजकर 04 मिनट से 20 अक्टूबर, शुक्रवार को रात्रि 8 बजकर 41 मिनट तक।
- पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र : 20 अक्टूबर, शुक्रवार को रात्रि 8 बजकर 41 मिनट से 21 अक्टूबर, शनिवार को रात्रि 7 बजकर 54 मिनट तक।
- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र : 21 अक्टूबर, शनिवार को रात्रि 7 बजकर 54 मिनट से 22 अक्टूबर, रविवार को सायं 6 बजकर 44 मिनट तक।
- श्रवण नक्षत्र : 22 अक्टूबर, रविवार को सायं 6 बजकर 44 मिनट से 23 अक्टूबर, सोमवार को सायं 5 बजकर 14 मिनट तक।
- घनिष्ठा नक्षत्र : 23 अक्टूबर, सोमवार को सायं 5 बजकर 14 मिनट से 24 अक्टूबर, मंगलवार को दिन में 3 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
नीलकण्ठ पक्षी का विशेष दर्शन
नवम् दिन (नवमी)-खीर, सुहाग सामग्री, साबूदाना, अक्षत फल, बताशा आदि।
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ज्योतिषविद् जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को अपनी दिनचर्या-जीवनचर्या नियमित व संयमित रखनी चाहिए। नित्य प्रतिदिन धुले हुए वस्त्र धारण करने चाहिए। व्यर्थ के कार्यों से बचना चाहिए। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। क्षौरकर्म नहीं करवाना चाहिए। अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र भोजन अथवा कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। शुद्ध देशी घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करके धूप जलाकर माँ जगदम्बा की पूजा-अर्चना करना शुभ फलकारी माना गया है।
नवरात्र में यथासम्भव रात्रि जागरण करना चाहिए। माता जगत् जननी की प्रसन्नता के लिए सर्वसिद्धि प्रदायक सरल मंत्र ‘ú ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ का जप अधिकतम संख्या में नियमित रूप से करना चाहिए। नवरात्र के पावन पर्व पर माँ दुुर्गा की पूजा-अर्चना करके अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।
मनोकामना की पूर्ति के लिए कुमारी पूजन
विमल जैन ने बताया कि अपने मनोकामना की पूर्ति के लिए सभी वर्ण या अलग-अलग वर्ण की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। देवीभागवत ग्रन्थ के अनुसार ब्राह्मण वर्ण की कन्या-शिक्षा ज्ञानार्जन व प्रतियोगिता, क्षत्रिय वर्ण की कन्या-सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ, वैश्य वर्ण की कन्या-आर्थिक समृद्धि व धन की वृद्धि के लिए, शूद्र वर्ण की कन्या-शत्रुओं पर विजय एवं कार्यसिद्धि हेतु पूजा-अर्चना करनी चाहिए। दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या को देवी स्वरूप माना गया है, जिनकी नवरात्र पर भक्तिभाव के साथ पूजा करने से भगवती प्रसन्न होती हैं।
धर्मशास्त्रों में दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या-कल्याणी, पाँच वर्ष की कन्या-रोहिणी, छ: वर्ष की कन्या-काली, सात वर्ष की कन्या-चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या-शाम्भवी एवं नौ वर्ष की कन्या-दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या-सुभद्रा के नाम से उल्लेखित हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल मिलता है।
भगवती की आराधना में अस्वस्थ, विकलांग एवं नेत्रहीन कन्याओं का पूजन वर्जित है। फिर भी इनकी उपेक्षा न करते हुए यथाशक्ति यथासामथ्र्य इनकी सेवा व सहायता करते रहने पर जगत् जननी माँ दुर्गा की प्रसन्नता सदैव बनी रहती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली बनी रहती है।
श्रीदुर्गा सप्तशती के सिद्ध सम्पुट मन्त्र
- सर्वमंगल के लिए :—सर्वमङ्लमङ्ल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते॥
- सौभाग्य और आरोग्य के लिए :—देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
- आपत्ति-उद्धारक :—शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते॥
- रोगनाशक :—रोगानशेषापहंसि तुष्ट रुष्ट तु कामान सकलानभीष्टन। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्यश्रयतां प्रयान्ति॥
- मनोरमा पत्ïनी के लिए :—पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम। तारिणीं दुर्गसंसार-सागरस्य कुलोद्भवाम॥
- सर्वबाधा मुक्ति के लिए :—सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम॥
- दु:ख दारिद्र्य निवारणार्थ :—दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
- दारिद्र्य-दु:ख-भयहारिणी का त्वदन्या सर्वोपकार-करणाय सदाद्र्रचिता॥
- बाधा से मुक्ति, धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिए :—सर्वबाधा-विनिर्मुक्तो धन-धान्य-सुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥
- स्वप्न का शुभाशुभ फल :—दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ-साधिके। मम सिद्धिमसिङ्क्षद्ध वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥
काशी में स्थापित हैं नवदुर्गा के मन्दिर
- प्रथम-शैलपुत्री (ए. 40/11, अलईपुर),
- द्वितीय-ब्रह्मचारिणी (के. 22/72, दुर्गाघाट),
- तृतीय-चन्द्रघण्टा (सीके. 23/24, लक्खीचौतरा, चौक),
- चतुर्थ-कुष्माण्डा (दुर्गाकुण्ड सरोवर के समीप),
- पंचम-स्कन्दमाता (बागेश्वरी देवी मन्दिर के परिसर में, जैतपुरा),
- षष्ठम-कात्यायनी (संकठा मन्दिर के पास, चौक से अन्दर गली में),
- सप्तïम-कालरात्रि (विश्वनाथ मन्दिर के निकट, कालिका गली),
- अष्ठम-महागौरी (विश्वनाथ मन्दिर के निकट, विश्ïवनाथ गली),
- नवम-सिद्धिदात्री (सिद्धमाता गली, गोलघर, मैदागिन)।
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(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)