Shardiya Navratri 2021: आठ दिनी शारदीय नवरात्र (7 अक्टूबर से 14 अक्टूबर)
महिषासुरमॢदनी माँ दुर्गा का आगमन अश्व (घोड़े) पर एवं प्रस्थान होगा गज (हाथी) पर
कुमारी कन्याओं के पूजन से माँ भगवती होती हैं प्रसन्न
कलश स्थापना का शुभ अभिजीत मुहूर्त
दिन में 11:36 मिनट से 12:24 मिनट तक
महाअष्टमी : बुधवार,13 अक्टूबर,
महानवमी : गुरुवार, 14 अक्टूबर
दशमी : शुक्रवार, 15 अक्टूबर
जगत जननी माँ दुर्गा जगदम्बा की आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र (Navratri) का शुभारम्भ 7 अक्टूबर, गुरुवार को हो रहा है। पूजा-अर्चना श्रद्धा व धाॢमक आस्था एवं भक्तिभाव के साथ करने की परम्परा है।
शारदीय नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के अनुसार भगवती की पूजा से सुख व सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जीवन धनधान्य से परिपूर्ण रहता है।
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शरद ऋतु में दुर्गाजी की महापूजा से सभी प्रकार की बाधाओं की निवृत्ति होती है। शारदीय नवरात्र में विशेषकर शक्तिस्वरूप माँ दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना फलदायी मानी गई है। श्रद्धा भक्ति के साथ व्रत उपवास रखकर माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करना विशेष पुण्य फलदायी रहता है।
नवरात्र में पूजा का विधान
ज्योर्तिविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर भगवती माँ दुर्गा की पूजा का संकल्प लेना चाहिए। माँ जगदम्बा के नियमित पूजा में कलश की स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के पूर्व श्रीगणेशजी का विधिविधान पूर्वक पूजन करना चाहिए।
कलश स्थापना का शुभ अभिजीत मुहूर्त
7 अक्टूबर, गुरुवार को दिन में 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक। कलश स्थापना रात्रि में नहीं की जाती। कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए। शुद्ध मिट्टी की वेदिका बनाकर या नये मिट्टी के गमले में जौ के दाने बोए जाते हैं। माँ जगदम्बा को लाल चुनरी, अढ़उल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा व मिष्ठान आदि अॢपत किए जाते हैं।
माँ दुर्गा के नौ-स्वरूपों की होती है पूजा
प्रथम-शैलपुत्री,
द्वितीय-ब्रह्मचारिणी,
तृतीय-चन्द्रघण्टा,
चतुर्थ-कुष्माण्डा देवी,
पंचम-स्कन्दमाता,
षष्ठ-कात्यायनी,
सप्तम-कालरात्रि,
अष्टम-महागौरी एवं नवम्-सिद्धिदात्री।
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जिसमें भगवती की प्रसन्नता के लिए शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करके सम्पूर्ण नवरात्र में व्रत या उपवास रखकर श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ व मन्त्र का जप करना कल्याणकारी रहता है। एक दिन, तीन दिन, पाँच दिन, सात दिन अथवा नौ दिन के व्रत का नियम है।
नवरात्र के प्रारम्भ व अन्तिम दिन के व्रत को एकरात्र (एकदिनी) व्रत कहा जाता है। प्रतिपदा एवं नवमी तिथि के दिन एक बार भोजन किया जाए, उसे द्विरात्र (दो दिनी) व्रत कहा जाता है। सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तिथि को एक बार भोजन करने का विधान है, जिसे त्रिरात्र (तीन दिनी) व्रत कहा जाता है। एकरात्र, द्विरात्र, त्रिरात्र, पंचरात्रि व सप्तरात्रि एवं नवरात्रि व्रत की विशेष महिमा है।
पंचमी तिथि के दिन केवल एक बार, षष्ठ तिथि के दिन केवल रात्रि में, सप्ïतमी तिथि को जो भी (फलाहार) प्राप्त हो जाए और अष्टïमी तिथि को सम्पूर्ण दिन उपवास रखना तथा नवमी तिथि को एक बार भोजन करने का विधान है।
नवरात्र में व्रत रखने के पश्चात् व्रत की समाप्ति पर हवन आदि करके कुमारी कन्याओं एवं बटुक का पूजन करके उन्हें पौष्टिक व रुचिकर भोजन करवाना चाहिए। तत्पश्चत उन्हें नव व, ऋतुफल, मिष्ठान्न तथा नगद द्रव्य आदि देकर उनके चरणस्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
प्रख्यात ज्योतिॢवद् विमल जैन ने बताया कि इस बार नवरात्र आठ दिन का है। नवरात्र 7 अक्टूबर, गुरुवार से प्रारम्भ होकर 14 अक्टूबर, गुरुवार तक रहेगा। भगवती का आगमन अश्व (घोड़े) पर हो रहा है, जबकि गमन गज (हाथी) पर होगा।
जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण विश्ïव में शुभफलों में कमी देखने को मिलेगी। कहीं-कहीं पर आशा के विपरीत घटना घटित होगी। जनमानस को विषमता से रूबरू होना पड़ेगा।
अष्टमी व नवमी तिथि का मान
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 12 अक्टूबर, मंगलवार को रात्रि 9 बजकर 48 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 13 अक्टूबर, बुधवार को रात्रि 8 बजकर 08 मिनट तक रहेगी।
नवमी तिथि लग जाएगी जो कि 14 अक्टूबर, गुरुवार को सायं 6 बजकर 53 मिनट तक रहेगी।
Navratri दशमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 15 अक्टूबर, शुक्रवार को सायं 6 बजकर 03 मिनट तक रहेगी।
अष्टमी तिथि 12 अक्टूबर, मंगलवार को रात्रि 9 बजकर 48 मिनट पर लगेगी, अष्टमी तिथि का हवन-पूजन इसी दिन रात्रि में किया जाएगा।
अष्टमी तिथि उदया तिथि के रूप में 13 अक्टूबर, बुधवार को है, फलस्वरूप महाअष्टमी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। महानवमी का व्रत 14 अक्टूबर, गुरुवार को रखा जाएगा।
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(हस्तरेखा विषेशज्ञ, रत्न-परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद्, एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टैगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी -221002)
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