Varad Chaturthi 2023 : वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी : 25 मार्च, शनिवार को
दूर्वा व मोदक से होती है श्रीगौरीनन्दन जी की विशेष पूजा
– ज्योर्तिवद् विमल जैन
भारतीय संस्कृति के हिन्दू धार्मिक परम्परा में श्रीगणेशजी की अपार महिमा है। 33 कोटि देवी-देवताओं में भगवान श्रीगणेश जी को प्रथम पूज्यदेव माना गया है। सर्वप्रथम श्रीगणेश पूजन से ही समस्त कार्य प्रारम्भ होते हैं। गौरीनन्दन श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना यों तो कभी भी की जा सकती है, लेकिन (Ganesh Chaturthi) चतुर्थी तिथि के दिन की गई पूजा विशेष फलदायी होती है।
प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी (Varad Vinayaki Chaturthi 2023) के नाम से जानी जाती है।
चैत्र शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि
इस बार चैत्र शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि शनिवार, 25 मार्च को पड़ रही है। चैत्र शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि शुक्रवार, 24 मार्च को सायं 5 बजकर 01 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन शनिवार, 25 मार्च को सायं 4 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। भरणी नक्षत्र शुक्रवार, 24 मार्च को दिन में 1 बजकर 22 मिनट से शनिवार, 25 मार्च को दिन में 1 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। मध्याह्न व्यापिनी चतुर्थी तिथि शनिवार, 25 मार्च को होने से वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
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Varad Vinayak Chaturthi : वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी पूजा कैसे करें
ज्योतिर्विद् विमल जैन ने बताया कि संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के दिन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के उपरान्त अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए व्रत के दिन पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर श्रीगणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, इसलिए दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अर्पित करने चाहिए।
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वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी : किस पाठ से होती है मनोरथ की पूर्ति
विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए श्रीगणेशजी की महिमा में यशगान के रूप में श्रीगणेश स्तुति, संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित अन्य स्तोत्र आदि का पाठ अवश्य करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेशजी से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना लाभकारी रहता है।
ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का प्रातःकाल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का शमन होता है, यदि विधि-विधानपूर्वक एक हजार पाठ किए जाएं तो मनोरथ की पूर्ति के साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली के अनुसार केतु ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तरदशा में अनुकूल फल न मिल रहा हो तो उन्हें वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत उपवास रखकर सर्वविघ्न विनाशक प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करना विशेष फलदायी माना गया है।
जिन्हें जन्मकुण्डली के अनुसार ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो, उन्हें वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखकर श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष तथा विद्यार्थियों के लिए समानरूप से फलदायी है।
श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए (Vinayak Chaturthi 2023) वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन में सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है, साथ ही जीवन में मंगल कल्याण होता रहता है।
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(हस्तरेखा विषेशज्ञ, रत्न-परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद्, एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टैगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी -221002)
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