Vinayak Chaturthi 2023 : वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत : रविवार, 20 अगस्त को
भारतीय संस्कृति में हिन्दू मान्यता के अनुसार सर्वविघ्न विनाशक अनन्तगुण विभूषित प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अपरम्पार है। प्रत्येक शुभकार्यों के प्रारम्भ में श्रीगणेशजी की ही पूजा-अर्चना की जाती है। मास के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेशजी को अतिप्रिय है।
प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक माह के शुक्लपक्ष में चतुर्थी तिथि के दिन गौरीनन्दन श्रीगणेश की पूजा-अर्चना करना विशेष फलदायी होता है। शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को किए जाने वाला व्रत वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी या विनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष में श्रीगणेश जी को केतुग्रह का देवता माना गया है।
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प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि द्वितीय (शुद्ध) श्रावण मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि रविवार, 20 अगस्त को पड़ रही है। द्वितीय (शुद्ध) श्रावण मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि शनिवार, 19 अगस्त को रात्रि 10 बजकर 20 मिनट पर लगेगी जो कि रविवार, 20 अगस्त को अद्र्धरात्रि 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगी। मध्याह्न व्यापिनी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रविवार, 20 अगस्त को रखा जाएगा।
इसके साथ ही श्रीगणेश भक्त श्रीगणेशजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके पुण्यलाभ अर्जित करेंगे। श्रावण मास में श्रीगणेश जी की पूजा-अर्चना के साथ ही श्री शिवजी की भी पूजा-अर्चना विशेष फलदायी रहेगी।
श्रीगणेश जी की पूजा का विधान
ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में व्रतकर्ता को समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के पश्चात् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
श्रीगणेशजी का पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा-अर्चना पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, जिनसे श्रीगणेश जी शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। श्रीगणेश का शृंगार करके उन्हें दूर्वा एवं दूर्वा की माला, मोदक (लड्डू), अन्य मिष्ठान्न, ऋतुफल आदि अॢपत करने चाहिए। धूप-दीप, नैवेद्य के साथ की गई पूजा शीघ्र फलित होती है।
करें मनोरथ की पूर्ति के लिए पाठ
विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए श्रीगणेशजी की महिमा में यशगान के रूप में श्रीगणेश स्तुति, संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित अन्य स्तोत्र आदि का पाठ अवश्य करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेशजी से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना लाभकारी रहता है।
ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का प्रात:काल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का शमन होता है, यदि विधि-विधानपूर्वक एक हजार पाठ किए जाएं तो मनोरथ की पूॢत के साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली के अनुसार केतु ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तरदशा में अनुकूल फल न मिल रहा हो तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सर्वविघ्न विनाशक प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाना चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष तथा विद्याॢथयों के लिए समानरूप से फलदायी है।
जिन्हें जन्मकुण्डली के अनुसार ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो, उन्हें वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखकर श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए। श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन में सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है, साथ ही जीवन में मंगल कल्याण होता रहता है।
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(हस्तरेखा विषेशज्ञ, रत्न-परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद्, एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टैगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी -221002)
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