Sorahiya Mela : भारतीय सनातन धर्म में हिन्दू धार्मिक व पौराणिक मान्यता के अनुसार विशेष पर्व मनाने की परम्परा है। इसी क्रम में भाद्रपद के प्रमुख पर्व में भगवती श्रीलक्ष्मी को समर्पित 16 दिनों तक चलने वाला पर्व ‘सोरहिया’ पर्व के नाम से जाना जाता है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से भगवती माँ लक्ष्मी की उपासना का विशेष पर्व प्रारम्भ हो जाएगा, जो आश्विन कृष्णपक्ष की अष्टमी पर्यन्त प्रतिदिन 16 दिनों तक चलेगा। भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि 22 सितम्बर, शुक्रवार को दिन में 01 बजकर 36 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 23 सितम्बर, शनिवार को दिन में 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगी।
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अष्टमी तिथि के दिन मूल नक्षत्र 22 सितम्बर, शुक्रवार को दिन में 3 बजकर 35 मिनट से 23 सितम्बर, शनिवार को दिन में 2 बजकर 56 मिनट तक रहेगा। इस दिन सौभाग्य योग का अनुपम संयोग रहेगा। सौभाग्य योग 22 सितम्बर, शुक्रवार को रात्रि 11 बजकर 52 मिनट से 23 सितम्बर, शनिवार को रात्रि 9 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। यह पर्व 22 सितम्बर, शुक्रवार से 6 अक्टूबर, शुक्रवार तक चलेगा। काशी में यह ‘सोरहिया मेला’ के नाम से प्रसिद्ध है, श्रीलक्ष्मीकुण्ड में स्नान का विधान है।
ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि भक्तिभाव से किए गए व्रत से धन-सम्पत्ति, वैभव व ऐश्वर्य के साथ ही सन्तान सुख की प्राप्ति भी होती है।
Sorahiya Mela Pooja Vidhi : श्रीलक्ष्मी की पूजा व व्रत का विधान
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रत के विधान में मिट्टी या चन्दन से निॢमत नवीन लक्ष्मी जी की आकर्षक व मनोहारी मूर्ति खरीद कर उसकी स्थापना करनी चाहिए। विधि-विधान से 16 दिनों तक पूजा-आराधना करनी चाहिए। व्रतकर्ता को चाहिए कि प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके 16 बार 16 अंजलि जल से मुख व हाथ धोकर पूजा अर्चना करनी चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-आराधना के पश्चात 16 दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
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सोरहिया मेला : 16 दिनों तक होगी लक्ष्मीजी की विशेष पूजा-अर्चना
Sorahiya Mela : 16 के अंक की विशेष महिमा
इस व्रत के अंतर्गत 16 आचमन करके भगवती लक्ष्मी के विग्रह की 16 परिक्रमा, 16 गाँठ का धागा, 16 दूर्वा, 16 अक्षत (चावल) का दाना व्रत की कथा सुनने के बाद महिलाएँ अर्पित करती हैं। 16 सूत का 16 गाँठों से युक्त सूत्र को धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करके हाथ के बाजू में धारण किया जाता है।
16 सूत्र को 16 गाँठ बाँधते समय एक-एक गाँठ बाँधते हुए ‘लक्ष्म्यै नम:’ मन्त्र बोलकर अर्थात् प्रत्येक गाँठ में एक मन्त्र का उच्चारण करके 16 गाँठ बाँधी जाती है।
पूजा के अंतर्गत भगवती लक्ष्मी के विग्रह के सम्मुख आटे का 16 दीपक बनाकर प्रज्वलित किए जाते हैं। माँ लक्ष्मीजी के वाहन हाथी की भी पूजा की जाती है। इस व्रत के अन्तर्गत दूर्वा के 16 पल्लव व अक्षत लेकर 16 बोल की कथा सुनी जाती है। भगवती लक्ष्मीजी के 16 दिन के व्रत के पारण के पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करना चाहिए।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक 4 ब्राह्मण तथा 16 ब्राह्मणियों को घर पर निमन्त्रित करके उन्हें भोजन कराना चाहिए। भोजनोपरान्त यथाशक्ति यथासामथ्र्य दान-पुण्य करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। पर अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। परनिन्दा नहीं करनी चाहिए। जीवनचर्या में शुचिता के साथ संयमित रहना चाहिए। इस व्रत को मुख्यत: महिलाएं ही करती हैं। यह व्रत नियमित रूप से 16 दिन तक किया जाता है।
इसके पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करना चाहिए। जिससे जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली बनी रहे।
(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)
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