Sorahiya Mela : धन-सम्पत्ति, वैभव एवं ऐश्वर्य के साथ मिलता है सन्तान सुख
— ज्योर्तिविद् विमल जैन
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में देवी-देवताओं की व्रत उपवास रखकर पूजा-अर्चना करने की धार्मिक व पौराणिक मान्यता है। इसी क्रम में भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से भगवती माँ लक्ष्मी की उपासना का विशेष पर्व प्रारम्भ हो रहा है, जो कि आश्विन कृष्णपक्ष की अष्टमी पर्यन्त प्रतिदिन 16 दिनों तक चलता है।
Sorahiya Mela : अष्टमी तिथि से भगवती माँ लक्ष्मी की उपासना का विशेष पर्व प्रारम्भ
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि 3 सितम्बर शनिवार को दिन में 12 बजकर 29 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 4 सितम्बर, रविवार को प्रात: 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगी।
रात्रि में चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी तिथि का मान 3 सितम्बर शनिवार को है जबकि उदया तिथि के फलस्वरूप 4 सितम्बर, रविवार को अष्टमी तिथि का मान है।
रात्रि में चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी तिथि होने से 3 सितम्बर शनिवार को व्रत प्रारम्भ होगा।
जबकि सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि होने पर 4 सितम्बर, रविवार से 16 दिनात्मक महालक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना, व्रत उपवास रखकर धाॢमक रीति-रिवाज के अनुसार प्रारम्भ होगा। जो कि 16 दिनों तक यानि आश्वन कृष्ण अष्टमी, 18 सितम्बर, रविवार तक चलेगा। आश्वन कृष्ण अष्टमी, 18 सितम्बर, रविवार को जिवित्पुत्रिका का व्रत भी रखा जाएगा। काशी में यह ‘सोरहिया मेला’ के नाम से प्रसिद्ध है, श्रीलक्ष्मीकुण्ड में स्नान का विधान है।
ऐसी धार्मिक पौराणिक मान्यता है कि भक्तिभाव से किए गए व्रत से धन-सम्पत्ति, वैभव व ऐश्वर्य के साथ ही सन्तान सुख का सुयोग बना रहता है।

Maa Laxmi Puja Vidhi : लक्ष्मीजी की पूजा का विधान
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रत के विधान में मिट्टी या चन्दन से निॢमत नवीन लक्ष्मी जी की आकर्षक व मनोहारी मूॢत खरीद कर उसकी स्थापना करनी चाहिए। विधि-विधान से 16 दिनों तक पूजा-आराधना करनी चाहिए।
व्रतकर्ता को चाहिए कि प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ व धारण करके 16 बार 16 अंजलि जल से मुख व हाथ धोकर पूजा अर्चना करनी चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-आराधना के पश्चात 16 दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
भगवती लक्ष्मी के विग्रह की 16 परिक्रमा, 16 गाँठ का धागा, 16 दूर्वा, 16 चावल का दाना व्रत की कथा सुनने के बाद महिलाएँ अॢपत करती हैं। 16 सूत का 16 गाँठों से युक्त सूत्र को धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करके हाथ के बाजू में धारण किया जाता है। 16 सूत्र को 16 गाँठ बाँधते समय एक-एक गाँठ बाँधते हुए ‘लक्ष्म्यै नम:’ मन्त्र बोलकर अर्थात् प्रत्येक गाँठ में एक मन्त्र का उच्चारण करके 16 गाँठ बाँधी जाती है।
पूजा के अंतर्गत भगवती लक्ष्मी के विग्रह के सम्मुख आटे का 16 दीपक बनाकर प्रज्वलित किए जाते हैं। माँ लक्ष्मीजी के वाहन हाथी की भी पूजा की जाती है। इस व्रत के अन्तर्गत दूर्वा के 16 पल्लव व अक्षत लेकर 16 बोल की कथा सुनी जाती है।
भगवती लक्ष्मीजी के 16 दिन के व्रत के पारण के पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर पुण्य अॢजत करना चाहिए। मान्यता के मुताबिक 4 ब्राह्मण तथा 16 ब्राह्मणियों को घर पर निमन्त्रित करके उन्हें भोजन कराना चाहिए। भोजनोपरान्त यथाशक्ति यथासामथ्र्य दान-पुण्य करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
विशेष
आस्थावान व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। परअन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। परनिन्दा नहीं करनी चाहिए। दैनिक जीवन में शुचिता के साथ संयमित रहना चाहिए। यह व्रत नियमित रूप से 16 दिन तक किया जाता है। इस व्रत को मुख्यत: महिलाएं ही करती हैं।
Best Loan Apps : आसान लोन लेने के लिए ये हैं बेस्ट ऐप्स, मिलेगा 5 से 10 लाख रुपये का लोन
तिलक लगाने से मिलती है सफलता, राहु-केतु और शनि के अशुभ प्रभाव को करता है कम
(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)
Tags : Sorahiya mela, Sorahiya fair,
Read Hindi News, Like Facebook Page : Follow On Twitter: Follow @hellorajasthan1