Yogini Ekadashi 2023 : योगिनी एकादशी : 14 जून 2023
भारतीय सनातन परम्परा के हिन्दू धर्मग्रन्थों में हर माह की (Yogini Ekadashi 2023) एकादशी तिथि की विशेष महिमा है। प्रत्येक माह की एकादशी तिथि अलग-अलग नामों से जानी जाती है। तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती है। योगिनी एकादशी पर भगवान पुण्डरीकाक्ष, भगवान श्रीविष्णु की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस बार योगिनी एकादशी का व्रत 14 जून, बुधवार को रखा जाएगा।
प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 13 जून, मंगलवार को प्रात: 9 बजकर 30 मिनट पर लगेगी जो कि 14 जून, बुधवार को प्रात: 8 बजकर 49 मिनट तक रहेगी। अश्विनी नक्षत्र 13 जून, मंगलवार को दिन में 1 बजकर 33 मिनट से 14 जून, गुरुवार को दिन में 1 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। 14 जून, बुधवार को उदयातिथि में एकादशी तिथि होने के फलस्वरूप योगिनी एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
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Yogini Ekadashi : संकल्प का विधान
Yogini Ekadashi Puja Vidhi : योगिनी एकादशी कैसे करें पूजा
व्रत के दिन प्रात:काल सूर्योदय से ही अगले दिन सूर्योदय तक जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्रत का पारण दूसरे दिन द्वादशी तिथि को स्नानादि के पश्चात् इष्ट देवी-देवता तथा भगवान पुण्डरीकाक्ष एवं भगवान विष्णु जी की पूजा-अर्चना करने के पश्चात् किया जाता है।
योगिनी एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है। आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, अन्न ग्रहण करने का निषेध है। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। व्रत कर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए तथा क्षौरकर्म नहीं करना चाहिए। अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है।
आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामथ्र्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए। विधि-विधानपूर्वक योगिनी एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से जीवन के समस्त पापों का शमन हो जाता है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य बना रहता है।
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2023 Yogini Ekadashi : पौराणिक मान्यता
योगिनी एकादशी के व्रत से कुष्ठ रोग के साथ ही अन्य व्याधियाँ भी समाप्त हो जाती हैं, साथ ही पीपल के वृक्ष को जाने-अनजाने में काटे जाने पर जो दोष लगता है, वह भी समाप्त हो जाता है। प्राचीन धार्मिक मान्यता के मुताबिक कुबेर के कोप (श्राप) से हेम माली को कुष्ठ रोग हो गया था।
महामुनि मार्कण्डेय जी के आदेशानुसार हेम माली ने योगिनी एकादशी का व्रत कर भगवान पुण्डरीकाक्ष, भगवान श्रीविष्णु की पूजा-अर्चना की। धार्मिक अनुष्ठान के साथ सम्पूर्ण दिन उपवास रखा तथा रात्रि जागरण किया। जिसके फलस्वरूप हेम माली का कुष्ठ रोग समाप्त हो गया, तभी से योगिनी एकादशी के व्रत की मान्यता चली आ रही है।
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(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)
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