Varad Chaturthi 2023 : वरद् वैनायकी (अंगारकी) श्रीगणेश चतुर्थी : 23 मई, मंगलवार को
– ज्योर्तिविद् विमल जैन
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार 33 कोटि देवी-देवताओं में भगवान श्रीगणेश जी को प्रथम पूज्यदेव माना जाता है। सर्वविघ्नविनाशक अनन्तगुण विभूषित बुद्धिप्रदायक सुखदाता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अपरम्पार है। प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में श्रीगणेशजी का स्मरण व उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
Varad Chaturthi Kab Hai : वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी कब है
वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन की गई पूजा से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति के साथ ही मनोकामना की भी पूॢत होती है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि ज्येष्ठï शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि सोमवार, 22 मई को रात्रि 11 बजकर 20 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन मंगलवार, 23 मई को अद्र्धरात्रि के पश्चात 12 बजकर 58 मिनट तक रहेगी। मध्याह्न व्यापिनी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत मंगलवार, 23 मई को रखा जाएगा। मंगलवार के दिन पडऩे वाली चतुर्थी तिथि अंगारकीय श्रीगणेश चतुर्थी के नाम से जानी जाती है।
इस दिन श्रीगणेश भक्त व्रत-उपवास रखकर श्रीगणेशजी की विधि-विधानपूर्वक व्रत-उपवास रखकर श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना करके लाभान्वित होंगे।
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Varad Chaturthi Puja : वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी पूजा ऐसे करें
ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन ने बताया कि संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के दिन प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होना चाहिए। तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के उपरान्त अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए व्रत के दिन पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर श्रीगणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, इसलिए दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अॢपत करके पूजा करनी चाहिए।
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मनोरथ के लिए विशेष फलदायी पाठ
श्रीगणेशजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए उनकी महिमा में यशगान के रूप में श्रीगणेश स्तुति, संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित अन्य स्तोत्र आदि का पाठ अवश्य करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेशजी से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना लाभकारी रहता है।
श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का प्रात:काल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का शमन होता है, यदि विधि-विधानपूर्वक एक हजार पाठ किए जाएं तो मनोरथ की पूर्ति के साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली के अनुसार केतु ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तरदशा में अनुकूल फल न मिल रहा हो तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सर्वविघ्न विनाशक प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाना चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष तथा विद्यार्थियों के लिए समानरूप से फलदायी है।
श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन में सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है, साथ ही जीवन में मंगल कल्याण होता रहता है।
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(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)
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