— ज्योर्तिवद् विमल जैन
Holashtak 2023 : धार्मिक मान्यता के अनुसार होलाष्टक (Holashtak) के 8 दिनों में समस्त मांगलिक कार्य स्थगित रहते हैं। जबकि धार्मिक अनुष्ठान यथावत् चलते रहते हैं।
प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार (Holi) होली से 8 दिन पहले का समय होलाष्टक कहलाता है। इस बार होलाष्टक की शुरुआत 27 फरवरी, सोमवार से 7 मार्च, मंगलवार तक रहेगा। इस वर्ष होलाष्टक नौ दिनों का होगा। इस बार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि 26 फरवरी, रविवार को अद्र्धरात्रि के पश्चात् 12 बजकर 59 मिनट से 27 फरवरी, सोमवार को अद्र्धरात्रि के पश्चात् 2 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। तिथि की वृद्धि होने से ऐसा संयोग बना है।
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होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ होता है होली के आठ दिन। फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। होली से पूर्व 8 दिनों का समय होलाष्टक के नाम से जाना जाता है। अष्टमी तिथि के दिन चन्द्रमा, नवमी तिथि के दिन सूर्य, दशमी तिथि के दिन शनि, एकादशी तिथि के दिन शुक्र, द्वादशी तिथि के दिन वृहस्पति, त्रयोदशी तिथि के दिन बुध, चतुर्दशी तिथि के दिन मंगल तथा पूॢणमा तिथि के दिन राहुग्रह उग्र स्वरूप में माने गए हैं।
ग्रहों के उग्र होने के कारण इन ग्रहों के उग्र होने के कारण व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता में कमी आ जाती है, जिसके कारण व्यक्ति संकल्प-विकल्प में खोया रहता है। कई बार उसके निर्णय ऐसे भी हो जाते हैं, जो कि अनुकूल नहीं रहते। इस कारण उसे लाभ के स्थान पर हानि की संभावना बढ़ जाती है। जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्रमा छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों विशेष सावधानी व सतर्कता रखनी चाहिए।
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प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन के अनुसार—वैवाहिक मुहूर्त, वधू प्रवेश, द्विरागमन, मुण्डन, नामकरण, अन्नप्राशन, देवप्रतिष्ठा, नवगृह निर्माण व प्रवेश, नवप्रतिष्ठारम्भ आदि ये सभी कार्य वर्जित रहते हैं।
होलाष्टक : पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जब प्रहलाद को प्रभुभक्ति से दूर रखने के लिए समस्त उपाय निष्फल हो गए तब हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बंदी बनाकर परलोक भेजने यानि मृत्यु के लिए उपाय करने लगे किन्तु भगवत भक्ति में लीन होने के कारण प्रहलाद हमेशा जीवित बच जाते।
इसी प्रकार सात दिन बीत गए आठवें दिन अपने भाई हिरण्यकश्यप की विवशता देख उनकी बहन होलिका (जिसे ब्रह्मा द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान था) ने प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में जलाने का सुझाव दिया, जिसे हिरण्यकश्यप ने स्वीकार कर लिया। परिणाम स्वरुप होलिका जैसे ही अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठी तो, वह स्वयं जलने लगी और प्रहलाद पुन: जीवित बच गए। तभी से भक्ति पर आघात हो रहे इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है।
तभी से फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन से ही होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है, इस दिन से होलिका दहन के दिन तक इसमें प्रतिदिन कुछ लकडिय़ाँ डाली जाती है, पूर्णिमा तक यह लकडिय़ों का ढेर बन जाता है।
पूर्णिमा के दिन सायंकाल शुभ मुहूर्त में अग्निदेव की शीतलता एवं स्वयं की रक्षा के लिए उनकी पूजा करके होलिका दहन किया जाता है। जब प्रह्लाद बच जाते है,उसी खुशी में होली का त्योहार मनाते हैं। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के अपराध में कामदेव को शिवजी ने फाल्गुन की अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति के उस समय क्षमा याचना करने पर शिव जी ने कामदेव को पुन: जीवित करने का आश्वासन दिया।
इसी खुशी में होलिकादहन के दूसरे दिन समस्त जन एक-दूसरे पर रंग-गुलाल डालकर सराबोर होते हैं।
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(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)
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