-ज्योतिर्विद् विमल जैन
Dev Uthani Ekadashi 2022 : भारतीय सनातन परम्परा के हिन्दू धर्म शास्त्रों में सभी तिथियों का किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से सम्बन्ध है। तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती है, इसी क्रम में कार्तिक माह की ( Ekadashi) एकादशी तिथि की विशेष महिमा है। कार्तिक मास का यह प्रमुख पर्व है।
कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को (Dev Uthani Ekadashi) देव प्रबोधिनी, हरिप्रबोधिनी, डिठवन या देव उठनी (देवोत्थान) एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से कार्तिक पूर्णिमा तक शुद्ध देशी घी के दीपक जलाने से जीवन के सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। भगवान श्रीविष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन क्षीरसागर में योग निद्रा हेतु प्रस्थान करते हैं।
चार मास पश्चात् यानि कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान् श्रीविष्णु योग निद्रा से जागृत होते हैं। भगवान श्रीविष्णु के जागृत होते ही समस्त मांगलिक शुभ कार्य शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ हो जाते हैं। इस बार यह पर्व 4 नवम्बर, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
Dev Uthani Ekadashi 2022 : देव प्रबोधिनी एकादशी से मांगलिक शुभ कार्य शुभ मुहूर्त प्रारम्भ
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 3 नवम्बर, गुरुवार को सायं 7 बजकर 31 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 4 नवम्बर, शुक्रवार को सायं 6 बजकर 09 मिनट तक रहेगी। हरिप्रबोधिनी एकादशी का व्रत 4 नवम्बर, शुक्रवार को रखा जाएगा।
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Dev Uthani Ekadashi : देव प्रबोधिनी एकादशी पर व्रत -उपवास रखकर होगी पूजा
आज के दिन व्रत-उपवास रखकर भगवान् श्रीविष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। व्रतकर्ता को प्रातःकाल समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् देव प्रबोधिनी एकादशी के व्रत एवं भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना का संकल्प लेना चाहिए।
तत्पश्चात् उनकी महिमा में श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुषसूक्त तथा श्रीविष्णुजी से सम्बन्धित मन्त्र ‘ú श्रीविष्णवे नमः’ का जप करना चाहिए। इसके साथ ही आज के दिन चातुर्मास्य का व्रत, यम, नियम, संयम की समाप्ति हो जाएगी।
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Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi : देव प्रबोधिनी एकादशी पूजा का विधान
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि आज के दिन गन्ने का मण्डप बनाकर शालिग्राम जी के साथ तुलसीजी का विवाह रचाया जाता है। मान्यता के मुताबिक देवप्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक तुलसीजी की रीति-रिवाज व धार्मिक विधि-विधान से पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।
इस दिन भगवान श्रीगणपति एवं शालिग्राम की भी पूजा की जाती है। व्रत के दिन फलाहार ग्रहण करना चाहिए, अन्न ग्रहण का निषेध है। एकादशी तिथि की रात्रि में जागरण करके भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना करना शुभ फलकारी माना गया है।
आज के दिन गंगास्नान करके ब्राह्मण एवं गरीबों को उपयोगी वस्तुएँ दान देने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है। स्मार्त व वैष्णवजन व्रत रखकर भगवान श्रीविष्णुजी की आराधना करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) से भीष्म पंचक व्रत भी रखा जाता है। भीष्म पितामह ने एकादशी से पूर्णिमा तक पाण्डवों को उपदेश दिया था। उपदेश की समाप्ति पर भगवान श्रीकृष्ण ने भीष्म पंचक व्रत की मान्यता स्थापित की। तभी से इस व्रत का विधान चला आ रहा है।
देवउठनी एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है। भगवान श्रीहरि विष्णुजी की विशेष कृपा से जीवन के समस्त पापों का शमन हो जाता है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होता है।
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