– ज्योर्तिवद् विमल जैन
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म के अनुसार हिन्दू धर्मशास्त्रों में माँ सरस्वती देवी की महिमा अनन्त है। बसन्त पंचमी के दिन माँ सरस्वती देवी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि बसन्त पंचमी का पावन पर्व हर्ष, उमंग, उल्लास के साथ मनाया जाएगा। बुद्धि, ज्ञान-विज्ञान, विद्या की अधिष्ठात्री देवी भगवती सरस्वती की विशेष आराधना का पर्व है। माघ शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि ‘बसन्त पंचमी’ के रूप में मनायी जाती है, इसे ‘श्री पंचमी’ भी कहते हैं।
माघ शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि मंगलवार, 13 फरवरी को दिन में 2 बजकर 43 मिनट पर लगेगी जो अगले दिन 14 फरवरी, बुधवार को दिन में 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। रेवती नक्षत्र मंगलवार, 13 फरवरी को दिन में 12 बजकर 35 मिनट से 14 फरवरी, बुधवार को दिन में 10 बजकर 43 मिनट तक रहेगा, तत्पश्चात् अश्विनी नक्षत्र प्रारम्भ हो जाएगा।
शुभ योग मंगलवार, 13 फरवरी को रात्रि 11 बजकर 05 मिनट से 14 फरवरी, बुधवार को रात्रि 7 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। उदया तिथि में 14 फरवरी, बुधवार को पंचमी तिथि होने से समस्त धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन सम्पन्न होंगे।
आज के दिन भगवान् श्रीगणेशजी, श्रीविष्णुजी एवं माँ भगवती सरस्वती जी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति करते हैं। विद्वत् एवं विद्यार्थी वर्ग माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना हर्षोल्लास व उमंग के साथ मनाते हैं।
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बसंत पंचमी पर पूजा की विधि
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र (सफेद या पीले रंग का) धारणकर अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के पश्चात् माँ सरस्वती (बसन्त पंचमी) के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। विद्वानों और विद्याॢथयों के लिए आज का दिन खास है। उन्हें व्रत उपवास रखकर माता सरस्वती जी की पूर्ण आस्था श्रद्धा व विश्वास के साथ विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना करके अपने ज्ञानार्जन में वृद्धि करना चाहिए।
हिन्दू धर्म के मुताबिक समस्त धाॢमक व मांगलिक कृत्य भी आज विशेष तौर से सम्पन्न होते हैं। नव प्रतिष्ठान व व्यापार के प्रारम्भ हेतु आज का दिन सर्वोत्तम माना गया है। घर परिवार के अतिरिक्त मंदिरों व सार्वजनिक स्थलों पर माँ सरस्वती जी की मूॢत स्थापित करके विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करने की धार्मिक परम्परा है। बसन्त पंचमी के दिन होलिका की स्थापना करके उनके गीतों का गायन भी किया जाता है। बसन्त पंचमी से मौसम में परिवर्तन के साथ ही ‘वसन्त ऋतु’ की शुरुआत भी हो जाती है।
बसंत पंचमी पौराणिक मान्यता
भगवान् श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। इस दिन व्रत-उपवास करके माँ सरस्वती को विभिन्न प्रकार के पुष्पों से सुसज्जित तथा पीले रंग के पोशाक व आभूषणों से शृंगार करके पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही पीले रंग के नैवेद्य, ऋतुफल एवं मेवे सहित केसरिया पीले रंग के मीठे चावल भी अॢपत किए जाते हैं।
भगवती सरस्वती की अनुकम्पा प्राप्ति के लिए उनकी महिमा में सरस्वती के विविध स्तोत्र आदि का पठन व मंत्र आदि का जाप करने की परम्परा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार आज के दिन ‘रति-काम महोत्सव’ भी मनाने की परम्परा है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मानव रचना के समय पृथ्वीलोक मौन था। धरती पर किसी प्रकार की कोई ध्वनि नहीं थी। यह शांति देख त्रिदेव हैरान होकर एक दूसरे को देखने लगे, क्योंकि वे सृष्टि की इस रचना से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लग रहा था कि इसमें किसी चीज की कमी रह गई है। इसी के चलते पृथ्वीलोक पर मौन व्याप्त है।
तभी ब्रह्मा जी ने शिवजी और विष्णुजी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल अंजलि में भरकर कुछ उच्चारण करते हुए पृथ्वी पर छिडक़ दिया। ऐसा करते ही उस जगह कंपन शुरू हो गया और उस स्थान से एक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। वहाँ एक शक्तिरूपी माता के एक हाथ में वीणा, दूसरा हाथ तथास्तु मुद्रा में था। इतना ही नहीं, उनके अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। माता को देख त्रिदेवों ने देवी को प्रणाम किया और उनसे वीणा बजाने की प्रार्थना की। त्रिदेवों की प्रार्थना के बाद मां ने वीणा बजानी शुरू कर दी।
जिससे तीनों लोकों में वीणा का मधुरनाद होने लगा। इससे पृथ्वी लोक के सभी जीव जंतु और जन भाव विभोर हो गए। ऐसा होने से लोकों में चंचलता आई। उस समय त्रिदेव ने माँ को शारदे-सरस्वती, संगीत की देवी के नाम से सुशोभित किया। मां सरस्वती के ये नाम त्रिदेवों द्वारा दिए गए हैं। उन्हें मां शारदे, मां वीणापाणि, वीणावादनी, मां बागेश्वरी, मां भगवती और मां वाग्यदेवी आदि के नामों से भी जाना जाता है।