Dhanteras 2023 – धनतेरस : 10 नवम्बर, शुक्रवार
Dhanteras 2023 Subh Muhurat : धनतेरस का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 नवम्बर, शुक्रवार को दिन में 12 बजकर 36 मिनट से 11 नवम्बर, शनिवार को दिन में 1 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। चित्रा नक्षत्र 10 नवम्बर, शुक्रवार को रात्रि 12 बजकर 08 मिनट से 11 नवम्बर, शनिवार को रात्रि 1 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। प्रीतियोग 10 नवम्बर, शुक्रवार को सायंकाल 5 बजकर 05 मिनट से 11 नवम्बर, शनिवार को दिन में 4 बजकर 58 मिनट तक रहेगा।
धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता आयुर्वेद शाक के जनक श्री धन्वन्तरि का जन्म महोत्सव भी धूम-धाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मन्थन के समय धन्वन्तरि जी अमृत का कलश लेकर अवतरित हुए थे। भगवान धन्वन्तरि जी को आयुर्वेद के प्रवर्तक तथा श्रीविष्णु भगवान के अवतार के रूप में माना जाता है। इस दिन धन्वन्तरि जी की पूजा-अर्चना से आरोग्य-सुख तथा उत्तम स्वास्थ्य का सुयोग बनता है।
व्यवसायी एवं व्यापारी वर्ग शुभ मुहूर्त में बही-खाता एवं प्रयोग में आनेवाली अन्य वस्तुएँ भी खरीदते हैं। धनतेरस को सम्पूर्ण दिन में अभिजीत मुहूर्त दिन में 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना गया है।
धनतेरस पर करें धनाधिपति श्रीकुबेर देवता की पूजा
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि धन-सम्पत्ति के लिए धनाधिपति श्रीकुबेर देवता की भी पूजा करनी चाहिए। देवकक्ष में पूजा स्थल पर दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। पूजा का सर्वोत्तम समय वृषभ लग्न सायं 5 बजकर 16 मिनट से रात्रि 7 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। धनतेरस के दिन शुरू किए हुए शुभकार्यों में अच्छी सफलता व स्थायी लाभ की प्राप्ति होती है। घर एवं कार्यस्थल को आलोकित (प्रकाशमय) रखना चाहिए। धनतेरस का पर्व अपने पारिवारिक धार्मिक परम्परा के साथ मनाना चाहिए।
कलश की अवधारणा को लेकर नये बर्तन और आभूषण खरीदना शुभ फलकारी-धनतेरस के पावन पर्व पर लक्ष्मी-गणेश जी मूर्ति के साथ ही पूजन सामग्री खरीदने की परम्परा है। इस बर्तन के अतिरिक्त नवीन वस्त्र, रजत व स्वर्ण के आभूषण व सोने-चाँदी के सिक्के एवं अन्य मांगलिक वस्तुएँ खरीदने से सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है। आज के दिन बर्तन खरीदने से अधिक लाभ एवं लक्ष्मी का स्थायी निवास मिलता है।
Dhanteras 2023 Puja : धनतेरस पर ऐसे करें पूजा
सायंकाल स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करके अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के बाद प्रदोषकाल व शुभ मुहूर्त में संकल्प लेकर श्रीगणेश जी, श्रीलक्ष्मीजी तथा धन के देवता श्रीकुबेर जी की श्रद्धा एवं भक्तिभाव के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। पूजा-अर्चना में काले-नीले रंग के वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए।
आज के दिन खरीदे गए नवीन बर्तन में उत्तम मिष्ठान्न, फल एवं मेवे आदि माँ भगवती लक्ष्मीजी को अर्पित करने चाहिए। देशी घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। अखण्ड ज्योति जलाने की भी मान्यता है। भगवती लक्ष्मीजी की पूजा कमल के फूल से करनी चाहिए तथा कमलगट्टा के माला से श्रीलक्ष्मीजी के मन्त्र ‘श्रीं’, ‘ॐ श्रीं नम:’, ॐ श्रीं ह्री क्लीं’ अथवा ‘ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नम:’ का जप करना लाभकारी रहता है।