▪️बाल मुकुंद जोशी
यह पहला मौका है जब सीकर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस में टिकट मांगने वालों की एक लम्बी फेहरिस्त बनी है जबकि इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि विधायक राजेन्द्र पारीक के सामने किसी ने गंभीरता पूर्वक टिकट के लिए ताल ठोकी हो. यानी बीते हर चुनाव में टिकट की मांग करने वाले रश्मि तौर पर आवेदन करते थे और प्रत्याशी की घोषणा के बाद फिर राजेन्द्र पारीक के ही साथ हो जाते थे परंतु इस बार ऐसा नहीं लगता. एक जानकारी के अनुसार उनके सामने दो दर्जन से अधिक लोगों ने टिकट मांगी है. इनमें से दो-तीन गंभीर दावेदार हैं, जो पूरी शिद्दत से टिकट पाने के लिए प्रयासरत है. यह दीगर बात है कि उनकी उठ-बैठ कितनी रंग ला पाती है ? वैसे यह भी सत्य है कि इन दावेदारों में से पांच सात को छोड़ दें तो अन्य के प्रयास अपनी नेतागिरी चमकाने तक ही सीमित है.
सीकर विधानसभा सीट पर वर्ष 1990 से ब्राह्मण जाति का कब्जा
मालूम हो कि सीकर विधानसभा सीट पर वर्ष 1990 से ब्राह्मण जाति का कब्जा रहा है. उस समय भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी ने पहली बार विधानसभा पहुंच कर इस सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी का हक कायम किया था, जो आज तक बदस्तूर जारी है. तब से लेकर आज तक इस सीट पर चाहे कांग्रेस हो या फिर भाजपा जिसका भी उम्मीदवार जीता वह ब्राह्मण जाति से ही रहा है. ऐसे में इस सीट पर ब्राह्मण को ही दोनों सियासी जमात अपना उम्मीदवार बनाती रही है. मजे की बात यह है कि सीकर पर इस बार कांग्रेस पार्टी में ब्राह्मण के अलावा जाट जाति के नेता भी नजरे गढाये बैठे हैं.
दरअसल जाट और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग सीकर सीट पर अपना हक काफी समय से जताते आ रहे हैं लेकिन जातीय गणित में यह सीट परंपरागत रूप से ब्राह्मण के पास रही है,इस बार यहां सवालिया निशान लग गया है.
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महा सचिव फूल सिंह ओला बड़ा चेहरा
कांग्रेस में आवेदन करने वालों में इस बार एक प्रमुख चेहरा है प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महा सचिव फूल सिंह ओला का. ओला सहित कई जाट जाति के कांग्रेस जिला अध्यक्ष सुनीता गठाला व प्रदेश महासचिव कैप्टन अरविंद आदि चेहरों ने यह सोचकर उम्मीदवारी के लिए आवेदन किया है कि इस बार पारीक की सियासत ‘बूढी’ और कमजोर हो गई है. साथ ही साथ बदले हुए समीकरणों में उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का वरदहस्त प्राप्त है. जग जाहिर है कि पिछले काफी समय से डोटासरा और पारीक में अनबन बनी हुई है जो एक दूसरे को निपटाने तक पहुंच चुकी है. नतीजतन इसी स्थिति का फायदा उठाकर कई जाट युवा नेताओं की बांछे खिल्ली हुई है. वैसे सीकर सीट के लिए जाट जाति के जिन उम्मीदवारों ने आवेदन किया उसमें ओला का कोई तोड़ नहीं है.
दरअसल ओला को लंबे समय तक संगठन में काम करने का अनुभव है. जिसके आगे दूसरे उम्मीदवार बौने हैं. ओला छात्र राजनीति से ही सक्रिय रहे हैं. वे एन एस यू आई, यूथ कांग्रेस के अलावा कांग्रेस संगठन में कई महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं और आज भी वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव है. किसानों की समस्या को गहराई से समझने के अलावा ओला एक पढ़े लिखे नेता भी हैं, जिन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और कानून की पढ़ाई भी की हैं. ओला ने वर्ष 2008 में सीकर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव भी लड़ा था. हालांकि वह उसमें सफल नहीं हो पाए. आज फिर से वे कांग्रेस के माध्यम से विधायक का ताज पहनने में लगे हैं.
बहरहाल अब देखना यह होगा कि कांग्रेस सीकर विधानसभा क्षेत्र के लिए अपनी परंपराओं को ही कायम रखती है या फिर जातीय गणित को बदलने का साहसिक प्रयास करती है ? यह भी सत्य है कि सीकर विधासभा क्षेत्र में कांग्रेस का कोई खास विरोध नहीं हैं बल्कि व्यक्ति का विरोध है.कांग्रेस आला कमान इस बात को अच्छे से समझ ले तो परिवर्तन तय हैं.