-गुरजंट सिंह धालीवाल
विश्व दूध दिवस -एक जून
आदिकाल से ही पशुपालन भारतीय संस्कृति में रचा बसा है। गौ-पालन, कृषि की रीढ़ रहा है। स्वतन्त्रता के पश्चात से ही देश के विकास के लिए कृषि के साथ-साथ डेयरी को एक विज्ञान के रूप में मान्यता मिलने लगी थी, इससे डेयरी उद्योग आय का स्रोत और पूरक व्यवसाय के रूप में उभरा और आज दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में हमारे देश की प्रगति विश्व में चर्चा का विषय है।
भारत की बढ़ती हुई बेरोजगारी को दूर करने के लिए डेयरी को एक व्यवसाय के रूप में अपनाया जाने लगा है। प्रारम्भ में पूर्ण जानकारी न होने एवं साधनों का अभाव होने से इस व्यवसाय में कई परेशानियां उठानी पड़ी, परन्तु भारत सरकार द्वारा इस क्षेत्र में विकास हेतु दुग्ध सहकारिता के तहत ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया।
जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को दुग्ध व्यवसाय हेतु नवीनतम तकनीकी जानकारी देकर उनका सर्वांगीण विकास करना। डेयरी/पशुपालन न सिर्फ दुग्ध उत्पादन के लिए ही महत्वपूर्ण है बल्कि खेत की जुताई, खाद, ईंधन के रूप में भी महत्व रखता है।
पशु गोबर का प्रयोग खाद, कम्पोस्ट निर्माण एवं गोबर गैस निर्माण में भी होता है। महिलाएं बड़ी संख्या में इस व्यवसाय से जुड़ी हैं तथा यह कार्य उनके प्राथमिक कार्यों में आता है तथा इनके सतत प्रयासों एवं परिश्रम से ही भारत में डेयरी एवं पशुपालन का विकास सम्भव हो पाया है। भारत में डेयरी सहकारिता सन् 1912 में तथा राजस्थान में 1975 से शुरू हुई।
आय का स्रोत : गौ-पालन
राजस्थान का वर्ष-2022-23 में दुग्ध उत्पादन में दूसरा स्थान रहा है। राज्य स्तर पर इसके विकास के लिए तथा दुग्ध उत्पादकों तक तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए पशुधन विकास बोर्ड, डेयरी फेडरेशन एवं पशुपालन विभाग मिलकर सुदृढ़ प्रयास कर रहा है। इनका मुख्य कार्य दुग्ध उत्पादक परिवारों के समग्र विकास हेतु निरन्तर प्रयास करना तथा डेयरी के माध्यम से दुग्ध उत्पादक महिलाओं का न केवल आर्थिक सशक्तिकरण करना अपितु विभिन्न प्रशिक्षणों के माध्यम से महिला शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में भी जागरूकता लाना है।
लेकिन दुग्ध उत्पादन/डेयरी व्यवसाय में जुड़ी महिलाओं में इस व्यवसाय से सम्बन्धित सम्पूर्ण ज्ञान व ग्राह्यता की कमी पाई जाती है। उनके ज्ञान एवं ग्राह्यता के स्तर को बढ़ावा देना अति आवश्यक है। उन्हें इसके उन्नत तरीके, उन्नत तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवानी चाहिए जिससे वे उच्च गुणवत्ता के दूध का उत्पादन कर दूध की अच्छी कीमत प्राप्त कर अपना सर्वांगीण विकास कर सकें।
पशु एकीकृत नमूना सर्वेक्षण (मार्च 2022-फरवरी 2023) पर आधारित बुनियादी पशुपालन आंकड़े जून-2023 में जारी किए गए। इसके अनुसार देश में कुल दुग्ध उत्पादन 230.58 मिलियन टन हुआ है, जिसमें पिछले 5 वर्षों में 22.81 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो वर्ष 2018-19 में 187.75 मिलियन टन थी। इसके अलावा, वर्ष 2021-22 के अनुमान से वर्ष 2022-23 के दौरान उत्पादन 3.83 प्रतिशत बढ़ गया है। पूर्व में वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर 6.47 प्रतिशत, वर्ष 2019-20 में 5.69 प्रतिशत, वर्ष 2020-21 में 5.81 प्रतिशत और वर्ष 2021-22 में 5.77 प्रतिशत थी।
वर्ष 2022-23 के दौरान सबसे अधिक दुग्ध उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश था, जिसकी कुल दुग्ध उत्पादन में हिस्सेदारी 15.72 प्रतिशत थी। इसके बाद राजस्थान (14.44 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (8.73 प्रतिशत), गुजरात (7.49 प्रतिशत) और आंध्र प्रदेश (6.70 प्रतिशत) का स्थान था। वार्षिक वृद्धि दर (एजीआर) के संदर्भ में, पिछले वर्ष की तुलना में सबसे अधिक वार्षिक वृद्धि दर कर्नाटक (8.76 प्रतिशत) में दर्ज किया गया, इसके बाद पश्चिम बंगाल (8.65 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (6.99 प्रतिशत) का स्थान रहा।
दूध उत्पादन में राजस्थान
भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश ने अन्न उत्पादन और निर्यात में कई बड़े कीर्तिमान स्थापित किए हैं। बागवानी फसलें जैसे फल-सब्जी का प्रोडक्शन में भी भारत आगे चल रहा है। अब ताजा रुझान बताते हैं कि देश में दूध उत्पादन भी तेजी से बढ़ रहा है। कई पशुपालन योजनाओं की मदद से इस सेक्टर ने भी अच्छा तरक्की पा ली है।
हाल ही में पशुपालन मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में दूध और ऊन उत्पादन में भारत और इसके राज्यों की स्थिति पर प्रकाश डाला है। अच्छी खबर यह है कि दूध और ऊन दोनों ही क्षेत्रों में राजस्थान पहले स्थान पर काबिज हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कुल दूध उत्पादन का 15.5 प्रतिशत राजस्थान से ही मिल रहा है। वहीं भारत के कुल ऊन उत्पादन का 45.91% हिस्सा भी राजस्थान ही दे रहा है।
राज्य में पशुपालन विभाग के डायरेक्टर डॉ.भवानी सिंह राठौड़ ने बताया कि पशुपालन सेक्टर के विकास और पशुपालकों के कल्याण के लिए सरकार के विचार और योजनाओं से ही राजस्थान पशुपालन सेक्टर में अपनी कामयाबी का परचम लहरा रहा है और अब दूध और ऊन उत्पादन में पहले पायदान पर भी काबिज हुआ है। आगे भी पशुपालन सेक्टर में राजस्थान को आदर्श राज्य बनाने में पूरे प्रयास करेंगे।
देश के टॉप 5 दूध उत्पादक राज्य
बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी रिपोर्ट के अनुसार,देश में दूध का कुल उत्पादन 221.06 मिलियन टन रहा है, जिसमें सबसे ज्यादा योगदान राजस्थान (15.05%), उत्तर प्रदेश (14.93%), मध्य प्रदेश (8.06%), गुजरात (7.56%) और आंध्र प्रदेश (6.97%) का रहा है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वर्ष 2021-22 के बीच दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 444 ग्राम प्रति दिन रही है। ये आंकड़ा पिछले कुछ सालों में 17 ग्राम प्रति दिन अधिक है।
राजस्थान में 33306.803 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन
इसी तरह साल 2022-23 की करें तो उतरप्रदेश ने राजस्थान को पछाड़ते हुए नंबर वन का खिताब कर लिया। दूसरे स्थान पर होने के बावजूद राजस्थान में 33306.803 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ। अब एक जून-2024 को विश्व दुग्ध दिवस पर नए आंकड़े जारी होंगे, जिसमें राजस्थान को खोया हुआ मुकाम हासिल करने की उम्मीद है। बात 2022-23 के आंकड़ों की करें तो प्रदेश के 33 जिलों में गाय के दूध का उत्पादन 13127.407 मिलियन टन, भैंस-16072.960 तथा बकरी के दूध का उत्पादन 3106.437 मिलियन टन हुआ।
(ब्यूरो, दैनिक सच कहूं) जयपुर मो.-98294 32561
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