– ज्योर्तिविद् विमल जैन
Shri Radha Ashtmi 2023 : भारतीय हिन्दू सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार सभी तिथियों का अपना खास महत्व है। भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीराधा का प्राकट्योत्सव हर्ष, उमंग व उल्लास के साथ मनाने की धार्मिक परम्परा है। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। जबकि भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीराधा जी का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है, इसे दुर्गा अष्टमी के भी रूप में मनाने की परम्परा है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि 22 सितम्बर, शुक्रवार को दिन में 01 बजकर 36 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 23 सितम्बर, शनिवार को दिन में 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगी। मूल नक्षत्र 22 सितम्बर, शुक्रवार को दिन में 03 बजकर 35 मिनट से 23 सितम्बर, शनिवार को दिन में 02 बजकर 56 मिनट तक रहेगा।
इस दिन सौभाग्य योग 22 सितम्बर, शुक्रवार को रात्रि 11 बजकर 52 मिनट से 23 सितम्बर, शनिवार को रात्रि 9 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। श्रीराधाजी का प्राकट्य महोत्सव भाद्रपद शुक्लपक्ष की मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 23 सितम्बर, शनिवार को श्रीराधाजी का प्राकट्य महोत्सव मनाया जाएगा।
‘राधे-राधे’ मंत्र का जाप
इस दिन राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही मनोकामना पूर्ति हेतु व्रत-उपवास भी रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि राधा रानी की पूजा-उपासना करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही आय, आयु और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार राधा रानी की पूजा-अर्चना के बिना भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति अधूरी है। ऐसा कहा जाता है कि ‘राधे-राधे’ मंत्र का जाप करने से साधक पर भगवान श्रीकृष्ण की असीम कृपा बरसती है।
ज्योर्तिविद् विमल जैन ने बताया कि राजा वृषभानु के घर में कीर्ति के गर्भ से श्रीराधाजी का जन्म हुआ था। श्रीराधाजी की नयनाभिराम प्रतिमा को नवीन वस्त्राभूषणों से सुसज्जित करके पूजा-आराधना करने का विधान है। मध्याह्न में श्रीराधाजी की विविध प्रकार से पूजा-अर्चना करके पुण्य अॢजत किया जाता है।
इस दिन श्रीराधाकृष्णजी के लीलाओं का श्रवण भी किया जाता है। भाद्रपद की अष्टमी तिथि को दूर्वा अष्टमी के भी नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत उपवास रखकर भगवान् आशुतोष शिवजी व माता पार्वती की पंचोपचार, दशोपचार एवं षोडशोपचार पूजा-अर्चना करने की मान्यता है। पूजा में सात प्रकार के फल, पुष्प, नैवेद्य एवं दूर्वा अर्पित किये जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि श्रीराधा अष्टमी, दूर्वा अष्टमी, दुर्गा अष्टमी के व्रत से सुख-सौभाग्य, पुत्र-सुख, धन-धान्य एवं ऐश्वर्य तथा जीवन में खुशहाली मिलती है।
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