Radha Ashtami : श्रीराधा अष्टमी : 14 सितम्बर को
ज्योर्तिविद् विमल जैन
हिन्दू सनातन धर्म में परम्परा के अनुसार सभी तिथियों का अपना खास महत्व है। भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीराधा जी (Radha Ashtami) का प्राकट्योत्सव हर्ष, उमंग व उल्लास के साथ मनाने की परम्परा है। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
जबकि श्रीराधा का प्राकट्योत्सव भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि (Radha Ashtami) को मनाया जाता है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि 13 सितम्बर, सोमवार को दिन में 3 बजकर 11 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 14 सितम्बर, मंगलवार को दिन में 1 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप 14 सितम्बर, मंगलवार को चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी तिथि का मान है। जिसके फलस्वरूप 14 सितम्बर, मंगलवार को श्रीराधा का प्राकट्य महोत्सव मनाया जाएगा।
ज्योर्तिविद् विमल जैन ने बताया कि राजा वृषभानु के घर में कीर्ति के गर्भ से श्रीराधा का जन्म हुआ था। श्रीराधा की नयनाभिराम प्रतिमा को नवीन वस्त्राभूषणों से सुसज्जित करके पूजा-आराधना करने का विधान है।
मध्याह्न में श्रीराधा की विविध प्रकार से पूजा-अर्चना करके पुण्य अर्जित किया जाता है। इस दिन श्रीराधाकृष्ण के लीलाओं का श्रवण भी किया जाता है। भाद्रपद की अष्टमी तिथि (Radha ji birth anniversary ) को दूर्वा अष्टमी के भी नाम से जाना जाता है।
इस दिन व्रत उपवास रखकर भगवान् आशुतोष शिवजी व माता पार्वती जी की पंचोपचार, दशोपचार एवं षोडशोपचार पूजा-अर्चना करने की मान्यता है।
पूजा में सात प्रकार के फल, पुष्प, नैवेद्य एवं दूर्वा अर्पित की जाती है। (Radha Ashtami) श्रीराधा अष्टमी/दूर्वा अष्टमी के व्रत से पुत्र-सुख, धन-धान्य एवं वैभव की प्राप्ति बतलाई गई है।
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