शिव-पार्वती के मिलन का (Mahashivratri) महापर्व महाशिवरात्रि
भगवान शिवजी का रखें व्रत, करें दर्शन-पूजन और रात्रि जागरण
— ज्योतिर्विद् विमल जैन
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान् शिवजी की महिमा अनन्त है। ब्रह्मा, विष्णु व महेश त्रिदेवों में भगवान शिव सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के पालनहार तथा सर्वसिद्धि के दाता माने गए हैं। भगवान शिव को अकाल मृत्यु का हर्ता भी माना गया है।
भगवान शिवजी की महिमा में फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन महाशिवरात्रि का पर्व हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। शिवपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष की कन्या सती का विवाह भगवान शिवजी से इसी दिन हुआ था।
पौराणिक मान्यता है कि चतुर्दशी तिथि के दिन निशा बेला में भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में अवतरित हुए थे जिसके फलस्वरूप महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि ११ मार्च, गुरुवार को दिन में 2 बजकर 40 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 12 मार्च, शुक्रवार को दिन में 3 बजकर 03 मिनट तक रहेगी। चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्दशी तिथि (महानिशीथकाल) में मध्यरात्रि में भगवान शिवजी की पूजा विशेष पुण्य फलदायी होती है।
शिव आराधना का विधान—ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रत कर्ता को चतुर्दशी तिथि के दिन व्रत उपवास रखकर भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। त्रयोदशी तिथि के दिन एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए। तिल, बेलपत्र व खीर से हवन करने के पश्चात् किया जाएगा।
भगवान शिवजी का दूध व जल से अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, चन्दन, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अॢपत करके धूप-दीप के साथ पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर ही पूजा करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा विशेष फलदायी होती है।
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मनोकामना की पूर्ति के लिए रात्रि के चारों प्रहर में करें (Mahashivratri Puja Vidhi) विशेष पूजा-अर्चना—
प्रथम प्रहर—भगवान शिव जी का दूध से अभिषेक करें एवं ॐ हृीं ईशान्य नम:-मन्त्र का जप करें।
द्वितीय प्रहर—भगवान शिव जी का दही से अभिषेक करें तथा ॐ हृीं अघोराय नम:-मन्त्र का जप करें।
तृतीय प्रहर—भगवान शिव जी का शुद्ध देशी घी से अभिषेक करें साथ ही ॐ हृीं वामदेवाय नम:-मन्त्र का जप करें।
चतुर्थ प्रहर—भगवान शिव जी का शहद से अभिषेक करें एवं ॐ हृीं सध्योजाताय नम:-मन्त्र का जाप करें।
भगवान् शिवजी की महिमा में शिव-स्तुति, शिव-सहस्रनाम, शिव महिम्नस्तोत्र, शिवताण्डव स्तोत्र, शिव चालीसा, रुद्राष्टक, शिवपुराण आदि का पाठ करना चाहिए तथा शिवजी के प्रिय पंचाक्षर मन्त्र ॐ नम: शिवाय’ का मानसिक जप करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार ॐ नम: शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नम: ॐइस मन्त्र के जप से सर्वविध कल्याण होता है।
महाशिवरात्रि के पर्व पर शिवजी की पूजा-अर्चना करके रात्रि जागरण करने पर ही व्रत पूर्ण फलदायी माना गया है। व्रत के दिन अपनी दिनचर्या नियमित संयमित रखते हुए भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करके विशेष पुण्यलाभ उठाना चाहिए। महाशिवरात्रि से ही मासिक शिवरात्रि का व्रत प्रारंभ किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि व्रत से सुख-समृद्धि सफलता मिलती है।
महाशिवरात्रि पर जन्मराशि (Mahashivratri Astrology) या नामराशि के अनुसार कैसे करें पूजा
मेष—भगवान शिव की पूजा गुलाल से करें। ॐ ममलेश्वराय नम:’ मन्त्र का जप करें तथा लाल वस्त्र, लाल चंदन, गेहूं, गुड़, तांबा, लाल फूल आदि का दान करें।
वृषभ—शिवजी का अभिषेक दूध से करें। ॐ नागेश्वराय नम:’ मन्त्र का जप करें तथा सफेद फूल, सफेद चंदन, चावल, चांदी, घी, सफेद वस्त्र आदि का दान करें।
मिथुन—शिवजी का अभिषेक गन्ने के रस से करें। ॐ भूतेश्वराय नम:’ मन्त्र का जप करें तथा मूंग, कस्तूरी, कांसा, हरा वस्त्र, पन्ना, सोना, मूंगा, घी का दान करें।
कर्क—शिवजी का अभिषेक पंचामृत से करें। महादेव जी के द्वादश नाम का स्मरण करें तथा सफेद फूल, सफेद वस्त्र, चावल, चीनी, चांदी, मोती, दही का दान करें।
सिंह —शिवजी का अभिषेक शहद से करें। ॐ नम: शिवाय’ मन्त्र का जप करें तथा लाल फूल, लाल वस्त्र, माणिक्य, केशर, तांबा, घी, गेहूँ, गुड़ आदि का दान करें।
कन्या—शिवजी का अभिषेक गंगाजल या शुद्धजल से करें। श्रीशिव चालीसा का पाठ करें तथा हरा फूल, कस्तूरी, कांसा, मूंग, हरा वस्त्र, घी, हरा फल का दान करें।
तुला—शिवजी का अभिषेक दही से करें। श्रीशिवाष्टक का पाठ करें तथा सुगंध, सफेद चंदन, सफेद फूल, चावल, चांदी, घी, सफेद वस्त्र आदि का दान करें।
वृश्चिक—शिवजी का अभिषेक दूध व घी से करें। ॐ अंगारेश्वराय नम:’ मन्त्र का जप करें तथा गेहूँ, गुड़, तांबा, मूंगा, लाल वस्त्र, लाल चंदन, मसूर का दान करें।
धनु—शिवजी का अभिषेक दूध से करें। ॐ रामेश्वराय नम:’ मन्त्र का जप करें तथा पीला वस्त्र, चने की दाल, हल्दी, पीला फल, फूल, सोना, देशी घी का दान करें।
मकर—शिवजी का अभिषेक अनार के रस से करें। श्रीशिवसहस्रनाम का पाठ करें तथा उड़द, काला तिल, तेल, काले वस्त्र, लोहा, कस्तूरी, कुलथी आदि का दान करें।
कुम्भ—शिवजी का अभिषेक पंचामृत से करें। ॐ नम: शिवाय’ मन्त्र का जप करें तथा काले वस्त्र, काला तिल, उड़द, तिल का तेल, छाता आदि का दान करें।
मीन—शिवजी का अभिषेक ऋतुफल से करें। ॐ भौमेश्वराय नम:’ मन्त्र का जप करें तथा चने की दाल, पीला वस्त्र, हल्दी, फूल, पीला फल, सोना आदि का दान करें।
काशी में भी विराजते हैं द्वादश ज्योतिर्लिंग
काशी में द्वादश ज्योतिर्लिंग इस प्रकार हैं—1-सोमनाथ (मानमन्दिर), 2-मल्लिकार्जुन (सिगरा), 3-महाकालेश्वर (दारानगर), 4-केदारनाथ (केदारघाट), 5-भीमशंकर (नेपाली खपड़ा), 6-विश्वेश्वर (विश्वनाथ गली), 7-त्र्यम्बकेश्वर (हौजकटोरा, बाँसफाटक), 8-वैद्यनाथ (बैजनत्था), 9-नागेश्वर (पठानी टोला), 10-रामेश्वरम् (रामकुण्ड), 11-घुश्मेश्वर (कमच्छा), 12-ओंकारेश्वर (छित्तनपुरा) में स्थित है।
(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)
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