-राजेंद्र कुमार
कोरोना महामारी ने शिक्षा (Online classes)के लिए अपूर्व स्थिति पैदा कर दी है, जिसका खामियाजा पश्चिमी राजस्थान के बच्चों को भी भुगताना पड़ रहा है। साथ ही बच्चों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। कहीं इंटनेट की कमी तो कहीं स्मार्टफोन की उपलब्धता और अभिभावकों में जागरुकता के साथ उच्च शिक्षा की कमी। इन सबका सामना करना पड़ रहा है हमारी देश की भावी पीढ़ी को। प्रदेश के बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर सहित अनेक सीमावर्ती जिलों में आज भी इंटरनेट की पहुंच कम है, जो बच्चों की शिक्षा में बाधक बन रही है।
बीकानेर के पीएचडी स्कालर सुरेंद्र सिंह शेखावत बतातें है कि यूनेस्को के अनुमान के मुताबिक, 186 देशों के 1.2 अरब बच्चों ने पाया कि वे कक्षाओं से बाहर हैं और पढ़ाई के उनके नतीजे और साल भर का कार्यक्रम खतरे में पड़ गया है। भारत में अलबत्ता इससे ऑनलाइन पढ़ाई की ओर बढना आसान हो गया। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और यहां तक कि कोचिंग संस्थाएं भी नहीं चाहती थीं कि सीखने की प्रक्रिया पूरी तरह गड़बड़ाए, लिहाजा उन्होंने ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर दीं ताकि पाठ्यक्रम की निरंतरता बनी रहे और लॉकडाउन के खत्म होने पर पढ़ाई फिर बगैर रुकावट के शुरू हो सके। लेकिन ये सब कितना कारगर है इस पर अधिकतर ने ध्यान नही दिया। जिसके चलते बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित हुई है। ऑनलाइन कक्षाएं बच्चों के स्वास्थ्य पर कितना शारिरीक व मानसिक प्रभाव डाल रही है। इस पर भी चिंतन करने की महती आवश्यकता है।
राजस्थान के उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी बतातें है कि ”सभी 290 सरकारी और करीब 2,000 निजी कॉलेजों में छात्रों के व्हाटसएप ग्रुप बनवाकर ई-लेक्चर और परीक्षाओं से जुड़ी सामग्री मुहैया कराई जा रही है।”
उन्होने बताया कि राज्य सरकार की और से सभी बच्चों तक ऑनलाइन कक्षाअेां की प् पहंुच हो इसके भरसक प्रयास किए जा रहे है।
कोविड-19 के प्रकोप के डर के कारण अभी तक बंद स्कूलों, कोचिंग संस्थानों और विश्वविद्यालयों को बंद रखा जा रहा है।
ऑनलाइन शिक्षण अब इंटरनेट के माध्यम से केवल कुछ छात्रों से जुड़ना आसान तो कहीं पर विद्यार्थियेंा तक पहुंच पाना काफी कठिन साबित हो रहा है। ऐसा करने में, न केवल अध्यापन कला से समझौता किया जा, बल्कि छात्रों को जो सिखाया जा सकता है उसमे भी असमानता बढ़ रही है। कई सार्वजनिक संस्थानों ने ऐसी समस्याओं के लिए ऑनलाइन विकल्प आजमाने की कोशिश भी नहीं की है जो प्रशासकों के लिए वास्तविक चिंता का कारण बन रहा है।
बीकानेर के पीबीएम अस्पताल के डा.अजय सिंह बतातें है कि कोविड में ऑनलाइन कक्षाएं जंहा बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही है वंही इनके स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। जूम, माइक्रोसाफट सहित अन्य प्लेटफार्म पर चल रही ऑनलाइन कक्षाएं बच्चों के शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल रही है।
उन्होने बताया कि ऑनलाइन कक्षाओं के साथ बच्चे इंटरनेट पर क्या देख रहे है इसको मानिटर करना बेहद जरुरी है। लेकिन क्या हम सब पर नजर रख रहे है। इंटरनेट पर कितना समय बच्चों के द्वारा दिया जा रहा है। इन सब पर गौर करने की जरुरत है।
इंटरनेट के जानकार बतातें है कि राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण द्वारा एकत्र किए गए शिक्षा पर सर्वेक्षण (2014) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में केवल 27 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं जिनके किसी एक सदस्य के पास इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है। इंटरनेट की उपलब्धता का अर्थ यह नहीं है कि परिवार के पास वास्तव में घर पर इंटरनेट हो। वास्तव में, वो परिवार जिनके पास इंटरनेट उपलब्ध है उनमे से केवल आधे (47 प्रतिशत) ऐसे हैं जिनके पास कंप्यूटिंग उपकरण (स्मार्टफोन सहित) हैं। सामान्यतरू जिन लोगों के घर में इंटरनेट है वे इस बात की जानकारी दे देते हैं, इस लिए कितने घरों में इंटरनेट है इसके पुख्ता अनुमान न होते हुए भी मोटे तौर पर उसका अनुमान लगाया जा सकता है। और इससे यह सूचना भी मिलती है कि उनके पास ऐसा उपकरण है या नहीं जिसका उपयोग किसी वेबसाइट पर जाने के लिए किया जा सकता है। इस परिभाषा का उपयोग करते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत में केवल 12.5 प्रतिशत छात्रों के परिवारों में इंटरनेट का उपयोग होता है। यहाँ शहरी-ग्रामीण विभाजन भी है। शहरी क्षेत्रों में 27 प्रतिशत के पास इंटरनेट है और ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 5 प्रतिशत के पास। वर्तमान संकट को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जो छात्र घर वापस चले गए हैं उनके लिए ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करना कारगर सिद्ध नहीं होगा। शायद यही वह दृष्टिकोण है जो लोगों को ऑनलाइन कक्षाओं के बारे में आशंकित कर रहा है।
इस समय घर पर इंटरनेट और सामान्य रूप से इंटरनेट तक पहुंच महत्वपूर्ण है।
ऐसे में, इंटरनेट के माध्यम से ऐसे बच्चों को दिया जा रहा ऑनलाइन शिक्षण, भारी मात्रा में ग्रामीण भारत के बच्चों को पढाई से वंचित कर रहा है।