– राष्ट्रपति अवॉर्डी प्रवेशदेवी डागुर ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की सफलता के लिए जनप्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी के साथ ग्राम पंचायत स्तर पर लाड़ली अभियान शुरू करने का दिया अनूठा सुझाव
जयपुर (राजस्थान)
जिंदगी वह है,जो काम आए किसी के,वरना इसे जैसे गुुजारोगे गुुजर जाएगी…यह बात राजस्थान के जिला करौली के उपखंड हिंडौनसिटी के गांव ढिंढ़ोरा निवासी राष्ट्रपति जीवन रक्षा पदक विजेता प्रवेशदेवी डागुुर ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Womens Day)पर कही।
उन्होंने समाज में नारी सशक्तिकरण के लिए शिक्षा के साथ-साथ बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की सार्थकता पर बल देते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में जन जागरण अभियान शुरू करने का केंद्र व राज्य सरकार को सुझाव भी दिया है।
राजस्थान की धरती वीर प्रसूताओं की धरती है ,वीरता की यह परम्परा अबाध रुप से आज तक कायम है। प्रदेश की वीर सपूतां री धरती पर जहां एक आेर मातृभूमि की रक्षा के लिए मां बच्चों को जन्म देती है, वहीं बालिकाओं को साहसी कार्य करने की शिक्षा भी देती है। प्रवेशदेवी डागुुर,हिम्मत दिखाकर साहसी कार्य करने वालों में एक ऐसी ही मिसाल है, जिन्होंनेे अपने साहस व सूझबूझ का परिचय देकर महिलाओं के गौरान्वित इतिहास को प्रेरणास्त्रोत बनाया है।
सीना तानकर अपने देशवासियों की हिफाजत करने वाले जवानों के साथ, अपनी जान जोखिम में डाल कर दूसरों की जान बचाना वीरता के दूसरे प्रतिरूप को प्रदर्शित करता है। जिसकी अभिव्यक्ति समय- समय पर किये गये वीरता के कार्य से ही प्रकट होती है। ऐसा ही वीरता का कार्य हिंडौन उपखंड के गांव ढिंढोरा निवासी प्रवेश देवी डागुुर ने दस वर्ष पहले किया था, जिसका उल्लेख निश्चित रुप से प्रेरणादायक है।
घटना जून 2006 की है, प्रसिद्घ तीर्थ स्थल कैलादेवी की कालीसिल बांंध में महिला घाट पर एक महिला अपने पांच साल के बच्चे को सीढियों पर बैठा कर नहा रही थी। अचानक बच्चा फिसलकर बांध में गिर गया, बच्चे को डूबता देख मां भी बांंध में कूद गईं।
लेकिन तैरना नहीं आने के कारण वह भी डूबने लगी और मदद के लिए चिल्लाई तो चीख सुनकर वहीं मौजूद प्रदेश देवी ने तुरंत सूझबूझ व साहस का परिचय देते हुए अपनी दो साडियों की रस्सी बनाकर उनकी जान बचा ली।
डागुुर को साहस और वीरता के नि:स्वार्थ भाव के इस अद्भुत कार्य के लिए राष्ट्रीय व राज्य स्तर के अलावा जिला प्रशासन सहित कई समाजसेवी संगठन व संस्थाओं ने पुरस्कृत किया।
बेटी बचाने की अलख जगाने के लिए महिलाओं की जागृति जरूरी
डागुर ने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या व लिंगभेद के चलते समाज में गडबडाए लिंगानुपात को रोकने के लिए समाज में महिलाओं की जागरुकता जरूरी है। सरकारी महिला अधिकारी व जनप्रतिनिधियों को बिटिया बचाने की मुहिम में सार्थक पहल करनी होगी। बेटी बचेगी और पढेगी तो समाज और देश निश्चित रूप से तरक्की के पथ पर आगे बढ़ेगा।
कन्या भ्रूण हत्या सबसे बड़ा पाप
समाज में अभिशाप बनीं कुरीति (कन्या भ्रूण हत्या) के चलते कई लाडलियां अजन्मे ही मां की कोख में दम तोड़ देती हैं,जो सबसे बडा कलंक है। हालांकि इस कलंक को मिटाने के लिए शासन व प्रशासनिक स्तर पर पीसीपीएनडीटी एक्ट अंतर्गत कार्यवाही के डर से अंकुश जरूर लगा है,मगर सामाजिक चेतना व शिक्षा की अलख से ही सकारात्मक बदलाव संभव है।
डागुर को ये मिले अवॉर्ड
1.राज्यपाल पुरस्कार-2006
2.जिला प्रशासन योग्यता प्रमाण पत्र-2006
3.समाज रत्न- 2006
4.राष्ट्रपति जीवन रक्षा पदक-2007
5.स्व.सेठ लक्ष्मीनारायण वीरांगना सम्मान-2007
6.जाट प्रतिभा सम्मान-2008
7.शहीद मेजर योगेश अग्रवाल शौर्य पुरस्कार-2010
8.सवाई जयपुर अलंकरण ”राजा मानसिंह अवॉर्ड-2010”
9.न्यूज टुड़े एवं ऑफिसर्स च्वॉइस का सलाम राजस्थान-2011
10.परमवीरचक्र विजेता कर्नल होशियारसिंह दहिया स्मृति में भारतीय वीरता पुरस्कार-2012
11.डांग गौरव पुरस्कार-2018
लाडो की अलख जगाने के लिए अनूठे सुझाव
– शहर व गांवों में मकान की पहचान बिटिया के नाम पर हो। घर का नामकरण या नेमप्लेट लाडो के नाम पर करने का मां-बाप स्मरणीय तोहफा दें।
– ग्राम पंचायत स्तर पर प्रमुख मार्ग को लाडली मार्ग,पंचायत भवन व चौपाल का नाम लाड़ली चौपाल हो।
– कॉलेज,स्कूलों में लाडो कक्ष और अस्पतालों में प्रसूता वार्ड का नामकरण लाडली वार्ड घोषित हो।
– महिला जिला प्रमुख,प्रधान व सरपंच अपने कार्यालय के मीटिंग हॉल का नामकरण लाडली सभागार घोषित करें।
– गांवों में हर वर्ष मेधावी व अन्य क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली बालिकाओं को लाडली ग्राम गौरव पुरस्कार मिले।
– शहरों में प्रमुख पार्क व तिराहे,चौराहे या सार्वजनिक स्थल को लाडो के नाम पर घोषित कर बेटी बचाने के प्रतीकात्मक स्टेच्यू भी बनाए जाएं।
– सिर्फ बेटियों वाली मांओं को महिला दिवस पर (लाडो मां) और क्षेत्र का नाम रोशन करने वाली बालिका को बालिका दिवस पर (लाडली गौरव)अवॉर्ड मिले।
– बेटियों को शिक्षित,निडर व स्वावलंबी बनाने के लिए सृजनात्मक प्रतियोगिता के कई अनूठे कार्यक्रमों का गांवों में संचालन हो।
– सरकारी अधिकारी व जनप्रतिनिधियों में गरीब,दलित,पिछडों की बेटियों को शिक्षा दिलाने के लिए गोद लेने की प्रतिस्पर्धा पैदा हो।
– किसी भी पीडित बालिकाओं को यथा संभव सहयोग के लिए ग्राम स्तर पर लाडली फंड की स्थापना के लिए सर्वसमाज महिला उत्थान मंच बने।
– बिटिया के बर्थ-डे पर बालिका सहभोज कार्यक्रम के साथ पौधारोपण हो,शादी में लाडो बचाने का आठवां फेरा लगाने की शुरुआत हो।
– स्कूलों को प्राथमिक शिक्षा के दौरान लिंगभेद समानता के साथ बालिकाओं का सम्मान और समाज में स्थान का शिक्षकों से खास ज्ञानार्जन मिले।
– बाल विवाह का विरोध करने वाली छात्रा को ग्राम स्तर पर वीरबाला के खिताब से नवाजा जाए। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) अभियान में सार्थक सहभागिता निभाने वाले दंपति को बेस्ट बीवी-बेस्ट पति की पहचान मिले।
लाड़ो बचाने की मुहिम के लिए अनूठा बीड़ा
समाज में बिटिया बचाने की अलख जगाने के लिए राष्ट्रपति अवॉर्डी प्रवेशदेवी डागुर बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की मुहिम में सबकी भागीदारी के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर लाड़ली अभियान चलाएंगी।
उन्होंने कहा कि पति सुखदेव डागुर के सहयोग से वे अब बोर्ड परीक्षाओं के खत्म होते ही वे जागरुक महिलाओं व जनप्रतिनिधियों के साथ गांवों के स्कूल में पहुंचकर बालिकाओं को जागरुक करने के लिए पंपलेट बांटेंगी। साथ ही आमजन में संदेश देने के लिए सार्वजनिक स्थलों पर बोर्ड व फ्लेक्स बैनर भी लगवाएंगी।
उन्होंने कहा कि महिला जनप्रतिनिधि व महिला स्वयं सहायता समूह के सहयोग से लाड़ो बचाने की शपथ भी दिलाएंगी। कुदरत की नियामत बेटियों को समाज में मान मिले,सम्मान मिले और हितों की रक्षा के लिए संपूर्ण अधिकार मिलें। इस मुहिम में सबकी भागीदारी और बेटी बचाने का संकल्प ही सफलता का सूत्र बनेगा।
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