Ayurvedic Hospital : श्री चांदमल मोदी आयुर्वेदिक चिकित्सालय ब्यावर को अर्श भगंदर शल्य चिकित्सा में मिली नई पहचान

Ayurvedic Hospital : Shri Chandmal Modi Ayurvedic Hospital Beawar Arsh-Fissure surgery

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Ayurvedic Hospital : ब्यावर। अजमेर जिले (Ajmer) से 55 किमी की दूरी पर स्थित ब्यावर शहर (Beawar Ciry) अपनी सांस्कृतिक विरासत और तिलपट्टी की मिठास समेटे बसा है। उस दौर की मिशनरी पत्रकारिता (Mission Journalism) में ब्यावर का भी प्रमुख स्थान रहा।

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्री जयनारायण व्यास ने यहीं से राजस्थानी भाषा का प्रथम समाचार पत्र प्रकाशित किया और नारी चेतना के स्वर मुखर करने वाली पत्रिका ’’मीरां’’ का भी प्रकाशन ब्यावर से ही हुआ।

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अपनी वृहद् ऎतिहासिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अतिरिक्त ब्यावर की पहचान आयुर्वेदिक चिकित्सा (Ayurvedic Hospital) के क्षेत्र में भी स्थापित है। बस स्टैंड (Beawar Bus stand) पर उतरने पर मस्से के अस्पताल का जिक्र भर करने पर ऑटो, टैम्पो वाले आपको स्वतः ही चिकित्सालय (Hospital) तक ले जाते हैं।

भगत चौराहे की मुख्य सड़क पर स्थित इस चिकित्सालय का नाम है (Shri Chandmal Modi Ayurvedic Hospital) श्री चांदमल मोदी राजकीय ‘अ’ श्रेणी आयुर्वेेदिक औषधालय। (Arsh-Fissure surgery) अर्श भगंदर शल्य चिकित्सा में मील का पत्थर साबित हुआ है ब्यावर का यह प्रसिद्ध श्री चांदमल मोदी आयुर्वेदिक चिकित्सालय। सर्वप्रथम इस औषधालय में वैद्य भानुदत्त शर्मा नियुक्त किये गये थे।

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Ayurvedic Hospital अर्श भगंदर शल्य चिकित्सा में मील का पत्थर 

तत्पश्चात वैद्य रामरतन त्रिपाठी, वैद्य रामष्ण मिश्रा, वैद्य राजेन्द्र शर्मा, वैद्य विष्णु दत्त शर्मा, वैद्य मदनगोपाल मिश्रा, वैद्य जगदीश चन्द लाटा, वैद्य सुरजीत कौर, वैद्य बृजेश मुकदल रहे। इस (Ayurvedic Hospital) आयुर्वेदिक चिकित्सालय को विशिष्ट पहचान दिलाने में प्रमुख भूमिका रही आयुर्वेद विभाग के अतिरिक्त निदेशक एवं चिकित्सालय के तत्कालीन चिकित्सा अधिकारी डॉ. रमाशंकर पचौरी की।

श्री पचौरी को वर्ष 2002 में इस चिकित्सालय में पदस्थापित किया गया। राज्य सरकार द्वारा उस वक्त माडा योजना के अन्तर्गत अर्श-भगंदर (पाइल्स) के शिविर आयोजित किए गए। (Free Treatment) उन शिविराें में अर्श-भगंदर के रोगियों का निःशुल्क उपचार किया गया, जिससे कई व्यक्ति लाभान्वित हुए। इसी समय गढ़ी थोरियान हाउसिंग बोर्ड में 10 दिवसीय शिविर का आयोजन किया गया।

इसमें डॉ. रमाशंकर पचौरी द्वारा क्षारसूतर्् पद्धति से अर्श-भगंदर का इलाज शुरू किया गया। उसके बाद विभिन्न जिलों में आयोजित होने वाले शिविरों में उनके द्वारा अपनी सेवाएं दी गईं। इसके परिणामस्वरूप श्री चांदमल मोदी राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय का नाम सम्पूर्ण प्रदेश में पहचाना जाने लगा।

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डॉ. पचौरी के सेवा-समर्पण का परिणाम रहा कि विभिन्न जिलों व राज्यों के रोगी भी क्षारसूत्र शल्य चिकित्सा के लिए चिकित्सालय में आने लगे। अर्श-भगंदर जिसे आम तौर पर पाइल्स भी कहते हैं सुनने में एक छोटी समस्या लगती है, परंतु जिस पर बीते वही जाने। इससे ग्रसित व्यक्ति चलने-फिरने से लेकर उठने-बैठने तक से मोहताज हो जाता है।

डॉ. पचौरी बताते हैं कि आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा कोई नई चीज नहीं है। हमारे ऋषि-मुनि, चरक व सुश्रुत जैसे वैद्याचार्य इस कार्य में दक्ष थे। आचार्य सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। क्षारसूत्र पद्वति भी एक आयुर्वेदिक शल्य तकनीक है।

महान भारतीय शल्य चिकित्सक सुश्रुत ने अपनी शिक्षाओं में गुदारोग में अर्श-भगंदर के इलाज के लिए क्षारसूतर्् पद्वति का वर्णन किया है। सुश्रुत के काम को बाद में 5वीं शताब्दी ईस्वी में ’’सुश्रुत संहिता’’ के रूप में संकलित किया गया। आचार्य चक्रपाणि दत्ता (10-11 ईस्वी) और आचार्य भव मिश्रा (16-18 शताब्दी ईस्वी) ने अपने शास्त्रीय आयुर्वेदिक ग्रंथों में इस क्षारसूत्र पद्धति के माध्यम से अर्श-भगंदर के उपचार का वर्णन किया है।

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प्रदेश के सभी आयुर्वेदिक चिकित्सालयों में सर्वाधिक आउटडोर व इन्डोर मरीज इसी चिकित्सालय में आते हैं। वर्तमान में चिकित्सालय का 18 बैड के इन्डोर वार्ड के साथ ऑपरेशन थियेटर भी है। इसमें अर्श भगन्दर से पीड़ित रोगियों को भर्ती किया जाता है व क्षारसूत्र पद्धिति (Arsh-Fissure surgery) से शल्य क्रिया के माध्यम से उपचार किया जाता है। इस रोग से बचने के लिए जंक फूड, पेट में कब्जी, अधिक तली व अधिक मसालायुक्त भोजन व अनियमित जीवन शैली जिम्मेदार है।

डॉ. पचौरी के अनुसार इससे बचने के लिए दही-छाछ का नियमित सेवन, फाइबर युक्त आहार, सलाद का प्रयोग, समय पर भोजन आवश्यक है। श्री चांदमल मोदी आयुर्वेद चिकित्सालय में वर्ष 2002 से अब तक 25 हजार से अधिक रोगियों का क्षार सूत्र चिकित्सा पद्धति से ऑपरेशन कर उपचार किया जा चुका है। यह अपने आपमें एक कीर्तिमान है।

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डॉ. पचौरी को आयुर्वेद के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवा के लिए वर्ष 1995 एवं 2019 में राज्य स्तरीय धन्वंतरि पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है।

सेवानिवृति के बाद बिना पारिश्रमिक सेवाएं दे रहे डॉ. रमाशंकर पचौरी डॉ. रमाशंकर पचौरी अपने सेवा काल के दौरान अर्श-भगंदर के 65 हजार से अधिक ऑपरेशन कर चुके हैं व सेवानिवृति के बाद बिना पारिश्रमिक स्वेच्छा से कोराना काल में अपनी सेवाएं जनहितार्थ उपलब्ध करा रहे हैं।

ऎसे मुश्किल दौर में उन्होंने बिना किसी पारिश्रमिक के आमजन की सेवार्थ अपनी सेवाएं देने का अनुरोध राज्य सरकार से किया। जिस पर राज्य सरकार द्वारा अनुमति दी गई। आयुर्वेद के क्षेत्र के अपने विशद् अनुभव से डॉ. पचौरी ने रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले काढ़े का निर्माण किया।

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घर-घर किया जा रहा आयुर्वेदिक क्वाथ व औषधि का वितरण ((Shri Chandmal Modi Ayurvedic Hospital)) श्री चांदमल मोदी राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय ग्रामीण क्षेत्रें में डोर टू डोर दस्तक देकर क्वाथ सेवन व सावधानियों के लिए जागरूकता अभियान चला रहा है।

डॉ. पचौरी ने बताया कि गत वर्ष चिकित्सालय द्वारा 6100 आयुर्वेदिक क्वाथ का वितरण किया गया। इस वर्ष अभी तक 3500 से अधिक पैकेट क्वाथ का वितरण इनके द्वारा किया जा चुका है। अभियान के दौरान आमजन को (Ayurvedic Hospital) आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में जानकारी भी दी जा रही है।

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