मैं ही नहीं, पूरी इंडिया टीम अब तक का बेहतरीन करेगी : देवेंद्र झाझड़िया

Not only me, the entire India team will do the best ever : Devendra Jhajharia

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खेल रत्न अवार्डी देवेंद्र झाझड़िया से कुमार अजय की बातचीत

देश के लिए एथेंस 2004 और रियो 2016 (Rio Olympics) में दो पैरा ओलंपिक गोल्ड (Indian Paralympic) जीते चुके खेल रत्न अवार्डी चूरू के देवेंद्र झाझड़िया (Devendra Jhajharia) ने ट्रायल में अपना ही वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़कर तीसरे पैरा ओलंपिक के लिए हाल ही में क्वालीफाई किया है।

उनकी अब तक की परफोरमेंस को देखकर निश्चय ही आश्वस्त हुआ जा सकता है कि अगले महीने टोक्यो पैरा ओलंपिक में अपनी तरफ से तीसरा स्वर्ण पदक भी देवेंद्र देश की झोली में डाल चुके होंगे।

आठ-दस साल की उम्र में दुर्घटना में हाथ कटने के बाद एक छोटी-सी ढाणी और सामान्य ग्रामीण पृष्ठभूमि से लेकर यहां तक के सफर और उनके जीवन और कैरियर से जुड़े विभिन्न बिंदुओं पर हमने उनसे बात की। उनका मानना है कि न केवल वे खुद, अपितु देश की पूरी ओलंपिक व पैरा ओलंपिक टीम अब तक का बेहतरीन प्रदर्शन करेगी।

पेश है सहायक निदेशक (जनसंपर्क) कुमार अजय से हुई देवेंद्र झाझड़िया की बातचीत के अंश :

एक छोटी सी ढाणी से तीसरे ओलंपिक गोल्ड की ओर सफर, कैसे देखते हैं इसे?

छोटी से ढाणी से निकलकर तीसरे ओलंपिक (Olympics)  तक का सफर देखता हूं तो बहुत फक्र होता है इस बात का। पीछे मुड़कर देखता हूं, सोचता हूं तो वो संघर्ष याद आता है, जब मेरे पास ग्राउंड भी नहीं था, भाला भी नहीं था। लकड़ी का एक भाला अपने स्तर पर तैयार करके शुरुआत की थी। संघर्ष लंबा रहा।

मेरे खयाल से तीसरे ओलंपिक में खेल रहे जो खिलाड़ी हैं, उनमें मेरा संघर्ष कहीं ज्यादा है। लेकिन अच्छा लगता है संघर्ष करके इतनी ऊंचाई पर पहुंचना, बिना फैसिलिटी के शुरू हुए सफर में यह खूबसूरत मंजिलें। युवा इससे प्रेरणा ले सकते हैं कि संसाधन अंतिम सत्य नहीं हैं। आप जुनून के साथ मेहनत करते हैं तो चीजें अपने आप होती चली जाती हैं।

देवेंद्र झाझड़िया एक स्पोर्ट्स स्टार नहीं होता तो क्या होता ?

पहला प्यार खेल ही रहा तो कोई सैकंड थोट मन पर हावी न हुई। फिर भी आपने सवाल किया है तो याद करता हूं कि बी.ए. में मैंने इकॉनॉमिक्स लिया था। यह मेरा प्रिय विषय है। तो कभी-कभी सोचता था कि इकॉनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेज्युएशन करके पीएचडी (PHD) करूंगा और इकॉनॉमिक्स पढाऊंगा।

40 साल का देवेंद्र 20 साल के युवा देवेंद्र से ज्यादा जेवलिन थ्रो करता है, इस ऊर्जा का राज?

बेशक यह बात मुझे भी बहुत खुशी देती है। राज बस यही है कि हमेशा पॉजिटिव रहता हूं। सीखने की कोशिश करता हूं। उम्र कितनी भी हो, कितने भी मेडल हों, कितने भी रिकॉर्ड तोड़े हों, जब भी एक मेडल लेकर आता हूं तो आकर सोचता हूं कि वह कौनसा बिंदू है, जहां और काम करने की जरूरत है।

नई चीजों, तकनीक को समझने का प्रयास करता हूं। और कभी खुद को महसूस नहीं होने देता कि चालीस का हो गया हूं। उम्र बस एक आंकड़ा है। फिर आपका एक्सपीरिएंस भी काम करता है। एनर्जी उन शुभचिंतकों से भी मिलती है जो मेरे हर मेडल पर वाहवाही करते हैं, मेरा हौसला बढाते हैं।

इस बड़े हासिल के बीच ऎसा क्या है जो इस स्टारडम में खो गया, जिसे बहुत मिस करते हैं?

वास्तव में जिंदगी ने मुझे बहुत कुछ दिया है, मेरी उम्मीदों से भी बहुत ज्यादा। फिर भी एक टीस रहती है कि यदि 2008 और 2012 के पैरा ओलंपिक में जेवलिन थ्रो गेम (Javelin Thrower ) होता तो मुझे दूसरे पैरा ओलंपिक गोल्ड के लिए इतना इंतजार नहीं करना पड़ता और आज मैं पांचवें पैरा ओलंपिक पदक की ओर देख रहा होता। दूसरी जो बात मैं बहुत मिस करता हूं, वो यह है कि 19 साल से इंडिया टीम (India Team) में हूं तो एक होस्टल लाइफ जी रहा हूं।

परिवार के साथ कभी ठीक से समय नहीं बीता पाया। मम्मी, पापा, बेटी, बेटा, पत्नी को जितना समय देना था, नहीं दे पाया। बहुत सारे अवसरों पर उनके बीच नहीं पहुंच पाता। पार्टियां, शादियां एंज्वॉय नहीं कर पाता। हालांकि परिवार सपोर्ट करता है। दो बड़े भाई हैं जो ज्यादातर सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हैं। बच्चों को भी वाइफ ही देखती हैं। वाइफ मंजू खुद नेशनल प्लेयर रही हैं, वो जानती हैं कि एक स्पोर्ट्स पर्सन को किस तरह से काम करना होता है।

पिछले दिनों पिता के निधन के बाद लोकाचार के बारह दिन ही बीते थे कि मां ने कह दिया, बेटा तू जा ट्रेनिंग कर। बेटी भी अब समझती है। बेटा जरूर जिद कर लेता है कि पापा आप कल ही आ जाओ। पर जब आप किसी बड़े मिशन पर हों तो इन चीजों के साथ कहीं न कहीं समझौता करना ही होता है।

टोक्यो में अपने प्रदर्शन के बारे में क्या सोचते हैं?

इस ओलंपिक में जैसे मेरी ट्रेनिंग चल रही है, बेशक एक बेहतरीन परिणाम आएगा। मेरा वजन 86 किलो था, उसे सात-आठ किलो कम किया है। ट्रायल में पौने दो मीटर से रिकॉर्ड ब्रेक किया है। फिटनेस लेवल रियो से बहुत आगे हैं। उम्मीद है कि 67 से 69 मीटर थ्रो कर पाऊंगा। मेरे कोच सुनील तंवर साब का भी यही कहना है कि इतना तो कर ही देंगे। तो मैं अपनी परफोरमेंस को लेकर बहुत आश्वस्त हूं।

आप कहते हैं कि यह अब तक की बेस्ट टीम है और शानदार रिजल्ट रहेगा, इस आत्मविश्वास का कारण?

ओलंपिक और पैरा ओलंपिक में हमारा अब तक का सबसे बड़ा दल जा रहा है। परफोर्मेंस के हिसाब से देखें और पिछले दो-तीन साल का हिसाब निकालें तो साफ दिखता है कि यह टोक्यो हमारे लिए अब तक का सबसे शानदार आयोजन होगा।

हमारे बॉक्सर, वेट लिफ्टर, कुश्ती के खिलाड़ी, वर्ल्ड में एक, दो, तीन नंबर रैंकिंग में चल रहे हैं। बैडमिंटन, शूटिंग में भी उम्मीदें हैं। हमारे खिलाड़ियों ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में काफी अच्छा किया है। मैं पूरे आत्मविश्वास से दोहरा सकता हूं कि ओलंपिक और पैरा ओलंपिक, दोनों में ही अब तक का शानदार प्रदर्शन रहेगा।

तीसरे पैरा-ओलंपिक गोल्ड के बाद, आपकी भविष्य की प्लानिंग?

फिलहाल, मेरा ध्यान केवल ओलंपिक में अपने प्रदर्शन पर है। गोल्ड तो है ही निशाने पर, सोचता हूं परफोरमेंस भी जितनी बेहतर हो, उतनी कर पाऊं। उसके बाद की अभी कोई प्लानिंग नहीं। इतना जरूर है कि एक-दो महीने परिवार को समय दूंगा। बातें करूंगा, घूमूंगा, फुरसत से उनके साथ जीऊंगा। बाकी, फिलहाल ओलंपिक पर ही फोकस है।

और वो, जो आप कहना चाहते हैं?

मैं खासकर युवाओं से कहना चाहता हूं कि जिस भी फील्ड में जाएं, एक जुनून के साथ जाएं। स्पोर्ट्स (Sports) में जाएं या पढाई में, देश की सेवा के लिए जो भी साइड चुनें, उसके लिए एक जुनून होना चाहिए। इसके साथ थोड़ा सा धैर्य भी जरूरी है। जरूरी नहीं कि रिजल्ट आपकी सोच के अनुसार जल्दी आ जाए। हां, अनुशासन में रहकर मेहनत करेगे तो सफलता अवश्य मिलेगी। खुद पर विश्वास रखें, एक दिन सफलता आपके कदमों में होगी।

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