अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विशेष 21 फरवरी 2022 : म्हाकी बोली म्हारो गुमान – डॉ. विशाला शर्मा

International Mother Language Day 2022

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International Mother Language Day 2022

International Mother Language Day 2022 : मातृभाषा दिवस पर यह एक सार्थक पहल करते हुए हम अपने परिवार में बच्चों के साथ अपनी मातृभाषा में बात करें I अपने हस्ताक्षर हिंदी में करें जिससे हमारी मातृभाषा का चिर स्थायीकरण होगा I

10 करोड़ लोगों के द्वारा बोली  पढ़ी जाने वाली राजस्थानी नागरी लिपि में लिखी जाती हैI जिसमें 72 बोलियां प्रचलित है I

जयपुरी ,मेवाती ,जोधपुरी के साथ-साथ किशनगढ़ अलवर जिले में अहीरवाटी और दक्षिण पूर्वी राजस्थान में मालवी बोली बोली जाती है I मारवाड़ी भाषा पर गुजराती भाषा का प्रभाव है I जिसका उत्पत्ति काल 12 वी सदी के अंतिम चरण में माना जाता हैI इसका उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है I

हम भारतवासी यह जानते हैं कि मां ,मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं होता I सकारात्मक मूल्यों के विकास तथा मानवीय संबंधों के ताने-बाने को स्थायी रखने में हमारी मां के बोल हमारे व्यक्तित्व की आधारशिला हैI

मातृभाषा हमारे पूर्वजों के द्वारा प्रदत्त संपत्ति हैI चरित्र निर्माण के साथ-साथ अनुशासन, मानवीयता सदाचार, साहस, उत्साह जैसे गुणों और भावों को पनपने का एक सशक्त माध्यम बनती हैI हर बालक एक संवेदनशील इकाई बने  और मातृभूमि के प्रति सही उत्तर दायित्व को समझ सके यह आवश्यक हैI

मातृभाषा भविष्य रूपी भवन को दृढ़तापूर्वक संभालने हेतु नींव के पत्थर का कार्य करती है I  यही कारण है कि आज संस्कृति और परंपरा को बचाए रखने के लिए भाषाओं के संवर्धन की आवश्यकता है I भाषाएं केवल विचार विनिमय का साधन नहीं है अपितु भाषा में इतिहास के चित्र मौजूद होते हैंI भाषिक संपन्नता में भारत का कोई सानी नहीं हैI विश्व में बोली जाने वाली अग्रणी 35 भाषाओं में 6 भाषाएं हमारे देश की हैI

हमारी अपनी मातृभाषाओं का एक-एक शब्द हमें विश्व दृष्टि प्रदान करता हैI हमारी अपनी पहचान,विविधता ,संस्कृति ,इतिहास ,विज्ञान सब कुछ हमारी मातृभाषा में निहित हैI. आज भारत के बहुभाषिकता के सौंदर्य को बनाए रखना राष्ट्रीय एकीकरण और मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है I

भारत भूमि में कई वैचारिक आंदोलन, राष्ट्रीय आंदोलन ,समाज सुधारक आंदोलन देश के कोने कोने तक पहुंचे थे और वह अपनी मातृभाषा में जन-जन को जागृत करते थे I हमारे व्यक्तित्व और कलाओं को विकसित करने में हमारी मातृ भाषाओं का योगदान अहम रहा है I

किसी भी भाषा का विकास विचारों की पवित्रता से होता है I जन्म के पश्चात जिस भाषा में हमने अभिव्यक्त होना सीखा और जो हमारे विचारों की जननी है I यह मातृभाषा भावात्मक एकता स्थापित करने के साथ-साथ राष्ट्रीयता की अभिव्यक्ति की गंगोत्री हैI

मां हमें जिस भूमि पर जन्म देती है और जिसकी गोद में हम पलकर बड़े होते हैं वह मातृभूमि हमारा स्वाभिमान होती हैI मां के पश्चात मातृभूमि से हमारा गहरा रिश्ता होता है और मातृभाषा की चेतना को लेकर शब्द और संप्रेषण कौशल के साथ मनुष्य अपना जीवन व्यतीत करता हैI

यही मातृभाषा मानवता के विकास का अभिलेखागार होती हैI अपनी मातृभाषा से बालक जड़ों तक जुड़ जाता हैI अतः सांस्कृतिक ढांचे को सुरक्षित रखने हेतु और भाषा के प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए भारतीय भाषाओं के महत्व को बनाए रखना होगा I

मातृभाषा दिवस हमारी भाषा में विविधता का उत्सव है जो हमें गौरव का अनुभव कराता हैI भाषाओं के मूल्यों को समझने हेतु और भाषाओं के उत्थान के लिए यह आवश्यक है कि अपनी मां की अंगुली पकड़कर प्रथम बार पाठशाला आने वाले बालकों को प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही प्रदान की जाए I

हमारे समाज शास्त्री मनोवैज्ञानिक और शिक्षण शास्त्री मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा को श्रेष्ठ मानते हैं जिससे बालक का सर्वांगीण विकास संभव हैI जिस परिवेश में बालक का बचपन व्यतीत होता है उस भाषा को बच्चे आसानी से सीखते हैं और उन शब्दों को आत्मसात करते हैंI

मातृभाषा से बच्चों का परिचय घर और परिवेश से शुरू हो जाता हैI अपने सोचने और समझने की क्षमता मातृभाषा में विकसित करने के पश्चात बच्चे विद्यालय में जब दाखिल होते हैं तब भाषा के रूप में अपनी मातृभाषा मे शिक्षा पाकर आने वाले परिणामों को हम सकारात्मक रूप से हमने देखा हैI हमारे महापुरुष इस बात को मानते थे कि भारत के करोड़ों लोगों को अपनी मातृभाषा की अपेक्षा किसी विदेशी भाषा में शिक्षा देना उन्हें  परतंत्रता में डालना हैI

आधुनिकता की आंधी में हमारी मातृभाषा विलुप्त प्राय होती जा रही हैI 28 नवंबर 2014 को लोकमत  में भाषा विद गणेश देवी का एक साक्षात्कार छपा था जिससे यह स्पष्ट हुआ कि आज के समय में बोली जाने वाली 4000 भाषा आने वाले 80 वर्षों में मृत हो जाएगी I जबकि किसी भाषा की मृत्यु मनुष्य की मृत्यु के समान घटना है I

हमारे देश के अलग-अलग प्रांतों की मातृभाषाएं और उससे जुड़े एक एक शब्द का अपना इतिहास है I इन शब्दों में पर्यावरण को समझने की अपार शक्ति हैI पृथ्वी को बचाने की समझ है हमारी मातृभाषाएँ  आध्यात्मिकता का आधार स्तंभ हैI

हमारे विकास ,प्रगति एवं विचारों की पवित्रता के जतन हेतु हम अपनी मातृ भाषाओं का रक्षण करें I मातृभाषा दिवस पर यह एक सार्थक पहल करते हुए हम अपने परिवार में बच्चों के साथ अपनी मातृभाषा में बात करें I अपने हस्ताक्षर हिंदी में करें जिससे हमारी मातृभाषा का चिर स्थायीकरण होगा I हमारे विचारों की मौलिकता बरकरार रहेगी और हमारी मातृभाषा सदैव उत्सव का माध्यम बनेगी I

(लेखिका चेतना कला वरिष्ठ महाविद्यालय औरंगाबाद में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं)

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