Sheetala Ashtami : श्रीशीतला अष्टमी : 15 मार्च, बुधवार को
— ज्योतिर्विद् विमल जैन
भारतीय संस्कृति के धार्मिक व पौराणिक मान्यता के अनुसार माँ श्रीशीतला देवी की महिमा अपरम्पार है। होली के सात दिन बाद चैत्र माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीशीतला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे बसौड़ा (बसिऔरा) के नाम से भी जाना जाता है।
श्रीशीतला अष्टमी का समय व दिन
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार 15 मार्च, बुधवार को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन श्रीशीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि 13 मार्च, सोमवार को रात्रि 9 बजकर 28 मिनट से 14 मार्च, मंगलवार को रात्रि 8 बजकर 23 मिनट तक रहेगी। चैत्र मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 14 मार्च, मंगलवार को रात्रि 8 बजकर 23 मिनट पर लगेगी जो कि 15 मार्च, बुधवार को रात्रि 6 बजकर 46 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार अष्टमी तिथि 15 मार्च, बुधवार को होने से श्रीशीतला अष्टमी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
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श्रीशीतला अष्टमी की पूजा का विधान
ज्योतिषविद् विमल जैन के अनुसार इन नियमों का करें पालन
— व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
— अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के पश्चात् श्रीशीतला माता के समक्ष हाथों में फूल, अक्षत और एक सिक्का लेकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
— शीतला अष्टमी के दिन माँ शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है।
— शास्त्रों के अनुसार, सप्तमी तिथि के दिन भोजन बनाने की जगह को साफ व स्वच्छ कर गंगा जल छिड़क लें।
— माँ शीतला के भोग की सामग्री सप्तमी तिथि की शाम को बनाया जाता है।
— प्रेम, श्रद्धा के साथ भोग स्वरूप चावल-गुड़ या फिर चावल और गन्ने के रस को मिलाकर खीर तथा मीठी रोटी बनाया जाता है।
— श्रीशीतला सप्तमी पर माँ दुर्गा के स्वरूप शीतला माता की पूजा की जाती है।
— माँ शीतला को फूल, माला, सिंदूर, सोलह शृंगार की सामग्री आदि अर्पित करने के साथ ही उन्हें शुद्ध और सात्विक बासी या ठंडे भोजन का भोग लगाकर जल अर्पित करें।
— फिर घी का दीपक और धूप जलाकर शीतला स्त्रोत का पाठ करें।
— विधिवत् पूजा करने के बाद आरती कर लें और अंत में भूल चूक के लिए माफी माँग लें।
— रात्रि में दीपमालाएं और जगराता करके श्रीशीतला माता की महिमा में लोकगीतों का गायन भी किया जाता है।
— इसके साथ ही बासी भोजन को प्रसाद के रूप ग्रहण कर लें।
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इस व्रत को करने से आरोग्य का वरदान मिलता है। माता शीतला आपके बच्चों की गंभीर बीमारियों एवं बुरी नजर से रक्षा करती हैं। इस त्योहार को कई स्थानों पर बासौड़ा (बसिऔरा) भी कहते हैं। माताएँ इस दिन गुलगुले बनाती हैं और शीतला अष्टमी के दिन इन गुलगुलों को अपने बच्चों के ऊपर से उबारकर कुत्तों को खिलाने से विविध प्रकार की बीमारियाँ बच्चों से दूर रहती हैं।
स्कंदपुराण के अनुसार श्रीशीतला माता गधे की सवारी करती हैं और हाथों में कलश, झाड़ू, सूप तथा नीम की पत्तियाँ धारण किए रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि माता शीतला की पूजा करने से बच्चों को निरोग रहने का आशीर्वाद तो मिलता ही है साथ ही बड़े-बुजुर्गों को भी आरोग्य सुख का लाभ मिलता है। बच्चों की बुखार, खसरा, चेचक, आंखों के रोग से रक्षा होती है। माँ को शुद्ध सात्विक बासी भोजन का भोग लगाया जाता है, जिसका उद्देश्य यही है कि अब सम्पूर्ण गर्मी के मौसम में ताजे भोजन का ही प्रयोग करना चाहिए। यह व्रत माताएँ प्रमुख रूप से बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और उनकी दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं।
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(हस्तरेखा विषेशज्ञ, रत्न-परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद्, एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टैगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी -221002)
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