Krishna Janmashtami 2023 : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग से बना जयन्ती योग
-भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन-पूजन एवं व्रत से मिलेगी सुख-समृद्धि, खुशहाली
भगवान् श्रीकृष्ण की जन्मकुण्डली है विशेष
प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि अखिल ब्रह्माण्ड के महानायक षोडश कला से युक्त भगवान् श्रीकृष्णजी की जन्मकुण्डली अपने आप में विशेष है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण के समय जन्मकुण्डली में चार प्रमुख ग्रह चन्द्रमा, मंगल, वृहस्पति व शनि उच्च राशि में। सूर्य, बुध व शुक्र स्वराशि में तथा राहु वृश्चिक और केतु ग्रह वृषभ राशि में विराजमान थे। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी पर व्रत उपवास रखकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाने पर जीवन में अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति के साथ ही जीवन में सुख-शान्ति,सफलता का सुयोग बनता है।
तिलक लगाने से मिलती है सफलता, राहु-केतु और शनि के अशुभ प्रभाव को करता है कम
ग्रह नक्षत्रों के योग से जयन्ती योग पर षोडश कलायुक्त जगत योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण धरती पर अवतरित हुए थे। भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में हिन्दुओं में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लोकप्रिय विशिष्ट पर्व माना गया है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार जन्माष्टमी का पावन पर्व 6 सितम्बर, बुधवार को मनाया जाएगा। भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 6 सितम्बर, बुधवार को दिन में 3 बजकर 38 मिनट पर लगेगी, जो कि 7 सितम्बर, गुरुवार को दिन में 4 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् नवमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 8 सितम्बर, शुक्रवार को सायं 5 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। 6 सितम्बर, बुधवार को प्रात: 9 बजकर 20 मिनट से रोहिणी नक्षत्र लग रहा है जो कि 7 सितम्बर, गुरुवार को प्रात: 10 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार अष्टमी तिथि होने पर वैष्णवजन इस दिन व्रत रखेंगे।
बुधवार, अद्र्धरात्रि की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि का चन्द्रमा के योगों के फलस्वरूप जयंती योग बन रहा है, जो कि अत्यन्त ही शुभ फलदायी माना गया है। यह योग कई वर्षों बाद आया है। द्वापर में जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, उस समय भी जयंती योग पड़ा था।
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा
अर्चना का विशिष्ट काल तथा अष्टमी तिथि 6 सितम्बर, बुधवार को मिल रही है। 6 सितम्बर, बुधवार को अष्टमी तिथि तथा महानिशिथकाल भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना के लिए विशेष फलदायी रहेगा।
वैसे तो सामान्यत: भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव रात्रि 12 बजे मनाने का विधान है। लेकिन कालविशेष जिसे निशिथकाल कहते हैं, वह रात्रि 11 बजकर 37 मिनट से रात्रि 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। महानिशिथकाल में की गई पूजा-अर्चना की विशेष महिमा है।
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भगवान श्रीकृष्ण जी को ऐसे करें प्रसन्न
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि के पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पूजन एवं व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन उपवास रखकर रात्रि 12 बजे भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का पर्व मनाकर पूजा-आरती के बाद प्रसाद ग्रहण करने की मान्यता है।
भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की शृंगारिक अलौकिक झांकियाँ सजाकर रात्रि जागरण करने की भी परम्परा है। भगवान श्रीकृष्ण के सम्बन्धित स्तोत्र का पाठ एवं मन्त्र का जप भी किया जाता है। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की पावन बेला पर रात्रि में भगवान् श्रीकृष्ण का नयनाभिराम अलौकिक, मनमोहक शृंगार करना चाहिए।
भगवान् श्रीकृष्ण के बालस्वरूप को झूला झुलाया जाता है। इस दिन शुभ बेला में पूजा के अन्तर्गत नैवेद्य के तौर पर मक्खन, दही, धनिये से बनी मेवायुक्त पंजीरी, सूखे मेवे, मिष्ठान्न व ऋतुफल आदि अॢपत किए जाते हैं। इस दिन व्रत, उपवास रखने पर भगवान श्रीकृष्ण जी की असीम कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन के समस्त पापों का शमन होता है साथ ही अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति भी होती है।