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Home News Article

रेल मजदूरों ने स्वतंत्रता सेनानी माथुर की कलम को पेना किया

Freedom Fighter Ambalal Mathrur wrote on Railway workers

Team Hello Rajasthan by Team Hello Rajasthan
August 10, 2021
in Article
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Freedom Fighter, Ambalal Mathrur, Railway workers,
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10 अगस्त का वह दिन जब जन्म हुआ लोकमत के संस्थापक स्वतंत्रता सेनानी व पत्रकार अम्बालाल माथुर का। परतंत्रता की बेड़ियों को काटकर स्वतंत्रता के लिए जन जागरण की लगन आपको अपने पिता स्व. आनंदीलाल और माता नारंगी बाई जो धाय के नाम से पुकारी जाती थी ने विरासत मे सौंपी थी और उसी विरासत का पूर्ण निर्वाह करते हुए श्री माथुर अपने ताऊजी डॉ. बसंतीलाल माथुर और ज्येष्ठ भ्राता स्व. जगदीश प्रसाद माथुर (दीपक) द्वारा दिए गए ज्ञान को आगे बढ़ाते हुए समाजवादी विचारधारा के अग्रणी सेनानी बने।

क्रांतिकारी कॉमरेड शौकत उस्मानी भी उनके सहयोगियों में से एक थे। माथुर पर चांद के फांसी अंक और हिन्दु पंच के बलिदान अंक का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने भी मीरां पत्रिका का शहीद अंक निकालकर देश भर में अंग्रेजों के विरूद्ध चलने वाले संग्राम में शहीद होने वालों को उजागर किया। साप्ताहिक मीरां का शहीद अंक, रिवेन्ज इन लन्दन व रूस पर रोशनी जैसे साहित्य ने अजमेर के जनजीवन में उथल-पुथल मचा दी। अन्याय और अत्याचार तथा जुल्मों के विरूद्ध आवाज उठाने वालों की पंक्ति में वे सबसे आगे हो गए।

बीकानेर षडयंत्र केस के सर्राफ बंधु स्व. खुदीराम और सत्यनारायण सर्राफ के साथ आप देशी राज्य जन आंदोलन के साथ जुड़े। जब राजस्थान का गठन किया गया तब राजस्थान की रियासतों बीकानेर, जयपुर, जोधपुर, किशनगढ़, अलवर, सीकर और उदयपुर के हर आंदोलन में अम्बालाल माथुर सक्रिय भूमिका निभाते रहे। राजस्थान राज्य के पुर्नगठन का जब सवाल उठा तो उसमें श्री माथुर की भूमिका भुलाई नहीं जा सकती।

आबू का राजस्थान में विलय आपके प्रयास का ही जीता जागता प्रमाण है। राजस्थान में आबू (सिरोही) व अजमेर को शामिल करने की लड़ाई अजमेर से जगदीश प्रसाद दीपक, सम्पादक मीरां व लोकमत के सम्पादक अम्बालाल माथुर ने लड़ी। लोकमत का आबू अंक एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। नहीं लंगड़ा लेंगे राजस्थान का संदेश सरदार पटेल को हिलाने में सफल हुआ। क्रांतिकारी विचारधारा के सजग प्रहरी अम्बालाल माथुर ने यह महसूस किया कि मात्र राजस्थान तक ही अपनी भूमिका को सीमित नहीं रखना है क्योंकि हमें देश को आजाद करवाना है और यह सोचकर वे रास बिहारी बोस व महात्मा गांधी के सम्पर्क मे आए।

महात्मा गांधी की सलाह पर श्री माथुर सीधे ही ब्रिटिश सरकार से टकराने का विचार कर यूनियन जैक को ललकारते हुए अपनी योजनाओं को अंजाम देने में जुट गए। आजादी का शंखनाद तो वे 1942 में ही कर चुके थे जबकि सितम्बर 1942 में नसीराबाद के जंगलो और पहाड़ियों से होकर निकलते हुए गोपनीय संदेश और दस्तावेज ले जाते हुए गोरे सिपाहियों की गिरफ्त मे आ गए और डाल दिए गए अजमेर की सेन्ट्रल जेल में। गिरफ्तारी के बाद जब पुलिस ने घर की तलाशी ली तो उन्हें भारी मात्रा में क्रांतिकारी साहित्य मिला। साहित्य की मूल संवेदना में अन्तनिर्हित था आजादी की लड़ाई का बिगुल।

रूस पर रोशनी नामक प्रतिबंधित पुस्तक मुद्रित करने पर ब्रिटिश सरकार ने अजमेर की अमर प्रेस को जब्त कर लिया व अम्बालाल जी को गिरफ्तार कर लिया। अम्बालाल माथुर गांधी जी के साथ उनके कार्यक्रमों में रहे, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया, नमक कानून तोड़ा, 07 अगस्त को अंग्रेजों के विरूद्ध भारत छोड़ो आन्दोलन के कार्यक्रम में गांधी जी के साथ थे। वे रासबिहारी बोस द्वारा गठित फॉरवर्ड ब्लॉक के प्रदेश मंत्री थे। वे विजयसिंह पथिक, स्वामी कुमारानंद, रावगोपाल सिंह खरवा, बाबा नरसिंह दास जैसे स्वतंत्रता समर के राजनैतिक जांबाजों की टीम के अग्रणी सिपाही बने। माथुर ही राजस्थान के ऐसे वीर सिपाही थे जिससे रियासती राजाओं के नाक में दम रहता था, जो इनके कारनामों का लोहा मानते थे, वहीं अग्रेजी हुकुमत इनकी हर गतिविधि पर नजर रखती थी, जिनको वे अंजाम देते जा रहे थे। रेल व सड़क मार्गों पर कड़ी चौकसी रखी जाती थी, यहां तक कि इनको अपने संदेश लाने व ले जाने के लिए अरावली की उबड़ खाबड़ पथरीली पहाड़ियों में से होकर भी जाना पड़ता था।

दिल्ली, अहमदाबाद के अभियान अम्बालाल माथुर को ही दिए जाते थे। राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली में उपलब्ध सामग्री के अनुसार राजस्थान में गिने चुने 10 या 15 नेताओं को ही सक्षम माना गया है, उसमें अम्बालाल माथुर एक थे। राजनीति के साथ ही समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करने के लिए अम्बालाल माथुर ने दीपक जी के साथ मीरां समाचार पत्र का प्रकाशन किया व हरिजन अंक निकाला।

अजमेर के मजदूर आन्दोलन ने अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आवाज उठाई। अंग्रेज सरकार ने रेल्वे वर्कशॉप में युद्ध की सामग्री शस्त्र, बम्ब इत्यादि बनाने आरंभ किए। रेल्वे यूनियन के सचिव के रूप में अम्बालाल माथुर ने रेल्वे मजदूरों की हड़ताल का आह्वान किया। बीकानेर के शौकत उस्मानी भी उन दिनों अजमेर में मजदूर आन्दोलन को संगठित कर रहे थे। उस्मानी नए विचार को लेकर एक इंकलाबी नेता के रूप में उभर कर सामने आए। अजमेर कायस्थ मौहल्ले की काली हवेली इंकलाबियों का ठिकाना बन गई। रेल्वे मजदूरों का आन्दोलन और उसको मिले व्यापक जन समर्थन से अंग्रेज सरकार परेशान हो गयी और दमन चक्र आरंभ किया। उन्होंने अम्बालाल माथुर के विरूद्ध डिफेन्स ऑफ इण्डिया रूल के तहत कार्यवाही की और गिरफ्तार कर लिये गये। उन पर यह भी आरोप था कि देशी रजवाड़ों के लिए सिकलीगर जो शस्त्र बनाते है विशेषकर ब्यावर में, वो अम्बालाल माथुर अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध सक्रिय लोगों तक पहुंचाते है।
अजमेर की तत्कालीन परिस्थितियों में मजदूरों और आम मध्यम वर्गीय लोगों की स्थिति बहुत खराब थी। उनकी दारूण हालत ने माथुर की कलम को निखारा तथा मजदूर आन्दोलन ने उनके विचार, सिद्धान्त से कलम को धार दी। मजदूर आन्दोलन से उनके विचार परिपक्व हुए जो अंग्रेजों को सहन नहीं होते थे।

मीरां समाचार पत्र उस समय के जन जागरण और आजादी की भावना को प्रबल करने का सबल और सशक्त माध्यम बना। आम जनता के मानस व हृदय पटल पर जन चेतना फूंकने के लिए और जन संघर्ष के माध्यम से जनता में प्राण फूंकने के लिए उन्होंने अपनी कलम का सहारा लिया और पत्रकारिता के क्षेत्र में कूद पड़े। बीकानेर से 1947 में उन्होंने ‘‘लोकमत’’ समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया। वे अपनी लेखनी में लोकमत के माध्यम से समाज की विसंगतियों को दूर करने व आजादी और एकता को बनाए रखने, सरकारी अत्याचारों का खुलासा करने में कभी नहीं चूके। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ आपके निकट संबंध थे।

राजस्थान के पुनर्गठन का मुद्दा उठाया गया तो सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी अम्बालाल माथुर के सुझावों पर गौर किया। वे अखिल भारतीय लघु समाचार पत्र संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए। प्रांतीय व सामाजिक संगठनों ने आपकी सेवाओं का भरपूर लाभ लिया। वे सामाजिक अंतर्राष्ट्रीय संगठन रोटरी क्लब, रेडक्रॉस, भारत सेवक समाज के अध्यक्ष पद पर भी आसीन रहे। वे बीकानेर नगर परिषद के भी अध्यक्ष रहे। विश्वशांति समझौते में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

उन्होंने सनातन धर्म आयुर्वेद महाविद्यालय की स्थापना में महत्ती भूमिका निभाई वे विद्यालय के तीन ट्रस्टियों में से एक थे। बीकानेर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना हो, इसके लिए श्री माथुर ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया को विश्वास में लिया तथा पंडित नेहरू को बीकानेर बुलाया। सीमावर्ती क्षेत्र के छात्रों के लिए स्व. माणिक्यलाल वर्मा के साथ मिलकर सीमावर्ती छात्रावास की स्थापना की गई। स्व. अम्बालाल माथुर ने अपना भूमिगत जीवन महाराष्ट्र, गुजरात व सिंध प्रांत में बिताया। अंग्रेज सरकार के विरूद्ध महाराष्ट्र, गुजरात व सिंध से लोकमत प्रकाशित किया गया। विदेश से प्रिटिंग मशीन मंगवाकर अजमेर से प्रकाशन हुआ। आजादी की लड़ाई के अंतिम दौर मे तथा ढहते हुए सामंती युग में स्वर्गीय भंवरलाल रामपुरिया और स्व. खुशालचन्द जी डागा की मदद से लोकमत बीकानेर से प्रकाशित होने लगा।

सीमांत गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खां, ख्वाजा अहमद अब्बास, शौकत उस्मानी सरीखे लोग जब भारत आए तो अपने साथी से मिलने के लिए बीकानेर पहुंचे। बीकानेर में पलाना लिग्नाइट योजना, राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना, राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता, शहर की जन समस्याओं को कैसे हल किया जाए और कैसे लोगों को निजात दिलाई जाये, ये बातें हमेशा उनके जहन में घूमती रहती थी।

राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति के.एन. नाग ने उन्हें शिक्षा और विज्ञान को प्रोत्साहन देने वाला एक महान व्यक्तित्व बताया। उनके निधन पर राजस्थान विधानसभा, महाराष्ट्र विधानसभा में शोक प्रस्ताव पारित किया गया तथा नगर परिषद, बीकानेर ने एक दिन का अवकाश रखा।
बीकानेर के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए उनका योगदान अविस्मरणीय है।

–अंकिता माथुर

 

 

 

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Source: Freedom Fighter Ambalal Mathrur wrote on Railway workers
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