कोटा बैराज 60 वर्ष में हुआ जर्जर,नये बांध की योजना बने

कोटा। राजस्थान व मध्यप्रदेश के 27,332 किमी लंबे केचमेट क्षेत्र में चंबल के पानी से सिंचाई करने वाला (Kota Barrag)कोटा बैराज 60 साल की अवधि पार कर चुका है। लेकिन बंाध के 19 गेट, जाम पडे़ 2 स्लूज गेट, लोहे के रस्से के जंग खाते तार सहित एक छोर पर मिट्टी में चूहों की दरारें इसकी जर्जर हालात को बयां कर रहे हैं। कोटा बैराज की जल भराव क्षमता समुद्र तल से 854 फीट रहती है। पिछले दो वर्षों से गांधी सागर बांध के स्लूज गेट खोले जाने से अंतिम बांध कोटा बैराज के 19 गेटों पर निरंतर दबाव बना रहता है।

पिछले दो वर्ष से बैराज के समानांतर पुलिया तैयार हो जाने से वाहनों का आवागमन नये पुल से शुरू हो गया। लेकिन आवागमन बंद होने के बाद कोटा बैराज जर्जर हालात में पहुंच चुका है। बड़ी संख्या में जंगली चूहों ने किनारे की मिट्टी में बिल बनाकर कई जगह से खोखला कर दिया है।

गौरतलब है कि चंबल नदी पर गांधी सागर, जवाहर सागर व राणाप्रताप सागर बांध के बाद 1954 में कोटा बांध का निर्माण शुरू किया गया था। 20 नवंबर,1960 को प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कोटा आकर इसका उद्घाटन किया था। 1967 में इस बांध से सर्वाधिक 6.63 लाख क्यूसेक पानी की निकासी की गई थी। इससे चंबल की बांयी और दांयी नहरों से दोनो राज्यों में 6.5 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई की जा रही है। वर्ष 2018 में इसका भार कम करने के लिये 58.30 करोड की लागत से समानांतर पुल तैयार किया गया है, जिससे नदी पार क्षेत्र में रहने वाले 3 लाख से अधिक नागरिकों का आवागमन नये पुल से प्रारंभ हो गया है।

चंबल रिवर फ्रंट के साथ इसकी सुरक्षा हो

विशेषज्ञों का कहना है कि इस माह राज्य सरकार द्वारा चंबल नदी में पर्यटन को बढावा देने के लिये दोनों छोर पर चंबल रिवर फ्रंट योजना के तहत 320 करोड़ की योजना पर काम चल रहा है। जबकि जानकारांे का मानना है कि चंबल के सौंदर्यीकरण के साथ ही वैकल्पिक बांध निर्माण की दूरगामी कार्ययोजना बनाई जानी चाहिये, जिससे आने वाले दशकों में कोटा शहर को चंबल के पानी से मोहताज न होना पडे़। इसके लिये विशेषज्ञ टीम गठित कर कोटा बैराज का लाइव असेसमेंट अध्ययन कराया जाये।

अवधिपार बांध के विकल्प पर हो विचार

जल संसाधन विभाग के सूत्रों ने बताया कि कोटा बैराज की वार्षिक मरम्मत के लिये करीब 19 करोड़ रूपये का बजट स्वीकृत हुआ है। इसके दोनो स्लूज गेट अवरूद्ध हो जाने से गेट के पास जमा सिल्ट, मलबा व पत्थर-मिट्टी नहीं निकल पा रही है। जिससे जलशोधन यंत्र के लिये एकत्रित पानी में भी दुर्गध आने लगती है। शहर के 26 से अधिक नालों का दूषित पानी चंबल के पानी में आ रहा है। इस दूषित पानी को फिल्टर करने के लिये प्रभावी कदम नहीं उठाये गये हैं।

कोटा सुपर थर्मल प्लांट से बिजली उत्पादन में इसके पानी का महत्वपूर्ण योगदान है। यदि बैराज की मिट्टी के बांध में सुराख इसी तरह बढते रहे तो जलसंकट का सामना करना पड़ सकता है। कोटा शहर की 12 लाख आबादी के लिये कोटा बैराज जीवन रेखा है, सिंचाई विभाग के सूत्रों के अनुसार एक बांध की औसत उम्र 50 वर्ष मानी जाती है, जबकि कोटा बैराज 60 वर्ष पूरे कर अवधिपार हो चुका है। ऐसे में चंबल पर नये वैकल्पिक बांध के लिये विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाई जाये। 

Read Hindi News, Like Facebook Page : Follow On Twitter:

Exit mobile version