राजस्थान को जैविक प्रदेश बनाने के लिए राज्यपाल को दिया ज्ञापन

Make Rajasthan an organic state Memorandum given to Governor

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Make Rajasthan an organic state Memorandum given to Governor

जयपुर। राजस्थान को जैविक प्रदेश बनाने की मांग (Make Rajasthan an organic state ) को लेकर बुधवार को भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ (OFPAI) के एक प्रतिनिधिमण्डल ने राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा।

संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता के नेतृत्व में प्रतिनिधिमण्डल ने राज्यपाल को अवगत कराया कि भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ मूलतः देश में रासायनिक खेती को पूरी तरह से बंद करने अर्थात जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान एवं अन्य राज्यों के कृषि से जुड़े किसानों को मार्गदर्शन का काम कर रहा है। संगठन ने ज्ञापन में राज्यपाल को राजस्थान को जैविक प्रदेश बनाने के संबंध कई सुझाव दिए हैं।

पूरे प्रदेश में लागू हो जैविक कृषि नीति

डॉ. अतुल गुप्ता ने कहा कि राजस्थान में देश का 11 प्रतिशत क्षेत्र कृषि योग्य भूमि है। राज्य में 50 प्रतिशत सकल सिंचित क्षेत्र है जबकि 30 प्रतिशत शुद्ध सिंचित क्षेत्र है, यानी 177.78 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में खेती की जाती है। राजस्थान में कृषि जोत का औसत आकार 3.07 हैक्टेयर है, जो कि भारत में कृषि जोत के आकार के आधार पर राजस्थान का क्रमश: नागालैंड, पंजाब व अरूणाचल प्रदेश के बाद चौथा स्थान है।

ओएफपीएआई राजस्थान प्रदेश को वर्ष-2030 तक पूर्ण जैविक राज्य बनाने की दिशा में काम कर रही है। हालांकि जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष-2017 में जैविक कृषि नीति जारी की। इसके बाद भी समय-समय पर जैविक खेती को लेकर प्रयास होते रहे हैं, मगर उनका वास्तविक रूप से धरातल पर काम देखने को नहीं मिला। इसका प्रमाण ये है कि वर्तमान में महज प्रदेश में 65 हजार हेक्टयेर भूमि पर ही जैविक खेती हो रही है।

इसे गति देने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने पहले कृषि बजट में राजस्थान जैविक खेती मिशन की घोषणा की है। इसके तहत 3 लाख 80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती विस्तार का लक्ष्य रखा है। अगले 3 सालों में 4 लाख किसानों को जैविक बीज, जैव उर्वरक एवं कीटनाशक उपलब्ध कराने के लिए 600 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे।

संगठन का मानना है कि राज्य सरकार के ये प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं, क्योंकि इस तरह से पूरे प्रदेश को जैविक राज्य बनाने में वर्षों लग जाएंगे। ऐसे में सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर प्रयासों की जरूरत है। गुप्ता ने कहा कि अधिकांश खेती राज्य में वर्षा पर निर्भर होने के कारण इसमें रासायनिक कीटनाशकों व रासायनिक खाद के बिना ही खेती संभंव है।

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग आवश्यक

डॉ. अतुल गुप्ता ने कहा कि देश में जीरो बजट खेती से ही किसानों की आय में व्यापक स्तर पर बढोतरी संभंव है। 1950-1951 से 2019-2020 में प्रति व्यक्ति खेती योग्य भूमि लगभग पांच गुना कम हो गई है, साथ ही साथ जनसंख्या 33 करोड़ से बढ़कर 133 करोड़ हो गया है। किसान खेती में अपने कुल पूंजी का करीब 45 प्रतिशत से अधिक खर्च उर्वरक पर करता है। यदि प्रति हेक्टेयर उर्वरक उपयोग की बात करें तो 1950-51 में 490 ग्राम था, जो आज बढ़कर 130 किलोग्राम हो गया है। भारत चीन के बाद दुनिया में उर्वरकों का प्रयोग करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है।

किसान सबसे ज्यादा उर्वरको में यूरिया, डीएपी, एमओपी, एनपीके एसएसपी, जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट आदि का प्रयोग करता हैं। हालांकि यह बात बेहद संतोषजनक है कि राजस्थान में प्रति हेक्टेयर उवर्रक की खपत अखिल भारतीय औसत से कम है, इसे जीरो बजट की खेती अपनाकर पूरी तरह से बंद किया जा सकता है।

हालांकि इसको बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार व्यापक स्तर पर प्रयास कर रही है, परंतु राज्य सरकारों के सहयोग के बिना इस राष्ट्रव्यापी कार्य पूरा कर पाना असंभंव प्रतीत होता है।

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की बजट घोषणा की अनुपालना में जीरो बजट के उन्मूलन के लिए पौध संरक्षण रसायन के अनुदान का नेचुरल फार्मिंग पर एक पायलट प्रोजेक्ट टोंक, बांसवाड़ा एवं प्रावधान रखा गया है। सिरोही में क्रियान्वित किया जा रहा है। वर्ष 2020-21 में यह राज्य के 15 जिलों में आन्ध्रप्रदेश पैटर्न पर लागू किया गया है, इससे कृषक, कृषि आदानों में आत्मनिर्भर बन सकेंगे।

जैविक व कम्पोस्ट खाद के लिए मिले प्रोत्साहन

डॉ. अतुल गुपता ने कहा कि रासायनिक खाद व कीटनाशकों के दोहन से भूमि की समाप्त हो रही उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए जरूरी है जैविक खाद व कम्पोस्ट खाद का अधिकाधिक उपयोग हो।

इसके लिए जरूरी है गौवंश का वृहद् स्तर पर पालन हो। प्रदेश में गौवंश की दुर्दशा में व्यापक स्तर पर सुधार कर पशुपालन व्यवसाय को बढ़ावा देने की जरूरत है। यह बात सत्य है कि दुग्ध उत्पादन में राजस्थान देशभर में अव्वल राज्यों की श्रेणी में है, लेकिन गोमाता के गोबर व गोमूत्र से निर्मित होने वाली जैविक व कम्पोस्ट खाद बनाने व बेचने के लिए पशुपालकों का रूझान कम है।

यदि राज्य सरकार जैविक खाद व कम्पोस्ट खाद का निर्माण करने वाले किसानों/पशुपालकों को प्रोत्साहित करे तो इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी बल्कि उनके द्वारा जैविक खेती के जरिए उत्पादित किए गए ऑर्गेनिक फल-सब्जियां, दालें, खाद्यान आमजन को सस्ते सुलभ होंगे। ऐसे में कीटनाशक खाद्य पदार्थों का उपभोग करने गंभीर बीमारियों के उपचार पर होने वाले भारी भरकम खर्च से बचा जा सकेगा।

जैविक आदानों की उत्तम व्यवस्था

राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. गुप्ता ने कहा कि जिस प्रकार रासायनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 60 व 70 के दशक में उर्वरकों के कारखाने लगाए गए और गाँव-गाँव तक पहुंचाने के लिए किसान सहकारी समितियाँ बनाई गई, राष्ट्रीय स्तर पर इफको, कृभको जैसी संस्थाएँ बनाई गई, इसी प्रकार के प्रयास आज जैविक खेती के उत्थान के लिए आवश्यक हैं ।

आज किसान जैविक अपनाने को तैयार है किन्तु उसे अच्छी गुणवत्ता वाली खाद, जीवाणु खाद, जैविक कीटनाशक ग्राम स्तर पर उपलब्ध नहीं है| फसलों की ऐसी किस्में उपलब्ध नहीं है, जो जैविक खाद से अच्छा उत्पादन दे सकें। इसके लिए प्रत्येक गाँव या तहसील स्तर पर जैविक खाद खासकर अच्छी गुणवत्ता वाली जीवाणु खाद व जैविक कीटनाशकों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए सहकारी तंत्र बनाने का प्रयास व सुविधा देनी चाहिए।

रासायनिक खेती से जैविक खेती में बदलने के परिवर्तन काल में (2-3 वर्ष) कृषक को जैविक तकनीकों की सम्पूर्ण ज्ञान व आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने का प्रावधान करना चाहिए।

जैविक खेती के आदानों पर मिले सब्सिडी

डॉ. अतुल गुप्ता ने कहा कि देश में रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिवर्ष 16 अरब रूपये (160 बिलियन) की सब्सिडी दी जाती है। इसके अलावा कीटनाशक, ट्रैक्टर आदि की सब्सिडी मिलकर करोड़ों रूपये खर्च हो रहे हैं।

इसी प्रकार जैविक खेती के लिए भी सब्सिडी की आवश्यकता है। हमारे देश में सब्सिडी का सीधा असर उस तकनीक के प्रसार पर होता है। हाल के वर्षों में जड़ी-बूटी की खेती में औषधीय पादप बोर्ड द्धारा 25-30 प्रतिशत सब्सिडी देने से देशभर में जगह–जगह इनकी खेती शुरू हुई है, हालाँकि सब्सिडी से स्थाई विकास नहीं होता है किन्तु प्रसार के लिए एक अच्छा उपाय है।

जैविक उत्पादों की विक्रय व्यवस्था

अतुल गुप्ता ने कहा कि जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर काफी लागत आती है और बिना प्रमाणीकरण के उपभोक्ता जैविक उत्पाद होने का विश्वास भी नहीं कर पाता है। अत: जैविक उत्पादों की विक्रय को सुनिश्चित करने के लिए सहकारी विपणन व्यवस्था व भारतीय खाद्य निगम से जैविक खाद्यान्न खरीदने के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए। इसके लिए ग्राम स्तर पर प्रमाणीकरण समिति बनाने के लिए प्रशिक्षण व अनुदान देना चाहिए। साथ ही तहसील और जिला स्तर पर इन समितियों के कार्य पर निगरानी हेतु एक विशेषज्ञ समिति बनायी जाए।

ये समितियाँ देश में बेचे जाने वाले जैविक आहार को प्रमाणित कर सकती है, इसका प्रावधान किया जाए| फल-सब्जी के परिवहन पर रेलवे द्वारा रियायती दरों व वरीयता से परिवहन का प्रावधान होना चाहिए।
इसी प्रकार जैविक खेती के लिए नीतियों में प्राथमिकता देकर व उसके लिए सघन कार्यक्रम चलाकर ही देश की भूमि-किसान–उपभोक्ता को स्वस्थ व आर्थिक रूप से मजबूत बनाकर स्थाई विकास व खुशहाली लाने का सपना साकार किया जा सकता है।

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