बीकानेर थिएटर फेस्टिवल : बीकानेर के रंग कर्मियों की देश और दुनिया में है विशिष्ठ पहचान-डॉ. कल्ला

theater festival in Bikaner

बीकानेर। कला, साहित्य एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बी डी कल्ला ने कहा कि बीकानेर (Bikaner) सांस्कृतिक नगरी है। यहां के रंगकर्मियों की देश और दुनिया में विशिष्ठ पहचान है।

डॉ. कल्ला रविवार को गंगाशहर के टी एम ओडिटोरिम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर द्वारा जिला प्रशासन, विरासत संवर्द्धन तथा अनुराग कला केंद्र के तत्वावधान में आयोजित चार दिवसीय बीकानेर थिएटर फेस्टिवल (Bikaner theater festival) के उद्घाटन समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अनुराग कला केन्द्र ने नए रंगकर्मियों को ना सिर्फ तराशा है, बल्कि ऐसे आयोजनों से उन्हें अवसर भी दे रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यहां के कला साधकों ने बीकानेर को अलग पहचान दिलाई। युवा रचनाकारों और रँगधर्मियों को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि थिएटर फेस्टिवल के दौरान नाट्य मंचन के साथ संवाद कार्यक्रम भी आयोजित किया जा रहा है। यह अच्छी पहल है। इससे वरिष्ठ रंगकर्मी अपने रंगकर्म पर आधारित अनुभवों के बारे में युवाओं को बता सकेंगे।

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) तथा कला एवं संस्कृति विभाग की मंशा है कि राजस्थान कला क्षेत्र में सिरमौर बने। इसके लिए अनेक नवाचार किए ना रहे हैं। विभाग द्वारा शीघ्र ही राज्य स्तर का लिटरेचर फेस्टिवल भी करवाया जाएगा तथा इसके माध्यम से अधिक से अधिक युवाओं को अवसर दिए जाएंगे। उन्होंने गत दिनों आयोजित रम्मत फेस्टिवल के बारे में बताया तथा कहा कि विभाग द्वारा कला, साहित्य एवं संस्कृति के उन्नयन के सतत प्रयास किए जाएंगे।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नन्दकिशोर आचार्य ने कहा कि आज के दौर में कलाओं में रुचि दुर्लभ है। ऐसे समय में थिएटर फेस्टिवल जैसे आयोजन अधिक प्रासंगिक हैं।

उन्होंने कहा कि नाट्य प्रदर्शन और नाट्य चर्चा के माध्यम से लोग अपने अंदर झांकने की प्रवृति पैदा कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि बीकानेर के नाट्य और साहित्य कर्म के प्रति देशभर में सम्मान का भाव है। इस दौरान उन्होंने नाट्यकर्म पर लिखी अपनी चुनिंदा कविताएं प्रस्तुत की।

केंद्रीय साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के संयोजक मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि वर्तमान में बीकानेर समूचे देश की नाट्य राजधानी बनकर उभरा है। यहां पूरे देश के नाटकों का मंचन होता है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी ऑन लाइन थिएटर फेस्टिवल आयोजित किया गया। उन्होंने विश्वास जताया कि थिएटर फेस्टिवल को बीकानेर का लाड और प्यार मिलेगा।

सहायक मण्डल रेल प्रबंधक  निर्मल कुमार शर्मा ने पाटा संस्कृति को यहां की सबसे बड़ी खूबी बताया तथा कहा कि यह अपने आप में खुले रंगमंच हैं। टोडरमल लालानी ने कहा कि रंगकर्मियों द्वारा कोरोना काल में दिखाया गया जज्बा अनुकरणीय है। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर के कार्यक्रम अधिकारी तनेराज सिंह सोढा ने आभार जताया। कार्यक्रम का सन्चालन हरीश बी शर्मा ने किया। इससे पहले अतिथियों ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर फेस्टिवल की शुरुआत की तथा फेस्टिवल पर आधारित पुस्तक का विमोचन किया।

इससे पहले रविवार सुबह होटल मिलेनियम में अभिनय कार्यशाला हुई। प्रख्यात रंग गुरु रवि चतुर्वेदी ने अभिनय की बारीकियां समझाई। संचालन हरीश बी.शर्मा ने किया।

पहले दिन इन नाटकों का हुआ मंचन
बीकानेर थिएटर फेस्टिवल पहली प्रस्तुति कोलकाता के युवा निर्देशक सुवोजीत बंधोपाध्याय के निर्देशन में माइम एक्ट ‘नथिंग टू से’ के रूप में हुई। रिश्तों, दोस्ती, प्यार और विभाजन  की इस मार्मिक प्रस्तुति को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। इसमें बताया गया कि कैसे एक रिश्ता धीरे-धीरे विकसित होता है और प्यार की पूरी दुनिया बना देता है। लेकिन जब यह टूट जाता है, तो यह पूरे वातावरण को प्रभावित करता है। यह दो राष्ट्रों और दो के बीच संबंधों की कहानी थी और भारत के विभाजन के 70 वें वर्ष की व्याख्या।

वहीं, दूसरी प्रस्तुति राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा के निर्देशन में ‘रिफंड’ के रूप में प्रस्तुत हुई।इस नाटक में वासरकौफ़ नाम का एक पढ़ा लिखा बेरोजगार युवक जो 18 साल पहले प्राप्त की गयी अपनी स्कूली शिक्षा के कारण अपने आपको जीवन में कुछ भी करने में अक्षम व नकारा महसूस करता है। अपने दोस्त के किये गये व्यंग्यपूर्ण सलाह पर वह अपनी स्कूल जाकर प्रिंसिपल से इस कारण के साथ ट्युशन फ़ीस के रिफण्ड की मांग करता है कि उसे यहां कुछ भी नहीं पढाया, सिखाया गया है तथा यहां दी गयी शिक्षा की वजह से ही वह नकारा व बेरोजगार है।  वह यह भी चाहता है कि उसकी दुबारा परीक्षा ले कर उसे दी गयी शिक्षा की योग्यता का परीक्षण भी किया जाय।
प्रिंसिपल वासरकौफ़ के इस उलजुलूल सवाल से परेशान होकर अपने सहयोगी शिक्षकों से चर्चा करता है। जिस पर शातिर और गेर जिम्मेदार शिक्षक इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न समझ कर उसे किसी भी कीमत पर पास करने की शर्त पर क्रमशः परीक्षा लेतें हैं और अंततः उसे षड्यंत्र पूर्वक परीक्षा में उतीर्ण घोषित कर फ़ीस रिफंड करने से मना कर देते हैं।

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