राजस्थानी भाषा की दशा और दिशा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन में युवा लेखकों ने भरी हुंकार

Rajasthani language National Seminar in Nagaur

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नागौर। राजस्थानी के नामचीन कवियों, लेखकों और युवा शोधार्थियों ने लंबी चर्चा कर राजस्थानी की दशा और दिशा पर मंथन किया। राजस्थानी हितचिंतकों के इस कुंभ में राजस्थानी की मान्यता का मुददा भी जोर शोर से उठा।

Rajasthani language National Seminar

राजस्थान के ख्यातनाम कवियों, आलोचकों व साहित्यकारों ने इस राजस्थानी कुंभ में हिस्सेदार दिखाई। दो सत्र में चली राजस्थानी भाषाः दशा और दिशा विषयक इस संगोष्ठी का आयोजन नागौर नगर परिषद और स्कूल शिक्षा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

वक्ताओं ने इसके लिए एकजुट होकर सरकार के समक्ष अपनी मांग को पुरजोर शब्दों में उठाने की आवश्यकता जताई। वहीं कुछ वक्ताओं ने राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए नए सिरे से मजबूती के साथ अपनी मांग रखने की आवश्यकता भी जताई।

इस दौरान वक्ताओं ने राजस्थानी भाषा के इतिहास, उसके व्याकरण की विशेषताएं और मान्यता मिलने के बाद राजस्थान में पैदा होने वाले रोजगार के अवसरों की भी विस्तार से जानकारी दी।

जिला कलेक्टर डा. जितेन्द्र कुमार सोनी की अध्यक्षता में आयोजित हुई इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता जाने माने राजस्थानी कवि और आलोचक डॉ. अर्जुनदेव चारण थे जबकि संगोष्ठी का बीज भाषण जयनारायण विश्वविद्यालय के बाबा रामदेव शोध पीठ के डा. गजेसिंह राजपुरोहित ने दिया।

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मान्यता के लिए संघर्ष को बताया जरूरी

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में जाने माने राजस्थानी कवि व आलोचक डॉ. अर्जुनदेव चारण ने कहा कि उनके पूर्वज राजस्थानी की मान्यता के लिए केवल सरकार के समक्ष विनम्रता से निवेदन करते रहे मगर मान्यता नहीं मिली।

ऐसे में युवा पीढ़ी को अब तेवर दिखाने होंगे। तेवर दिखाने से ही राजस्थानी को मान्यता मिलेगी और मान्यता मिलने पर राजस्थान में रोजगार के अनेक अवसर पैदा होंगे।

डॉ. चारण ने कहा कि जब आजादी के बाद नए राज्यों का भाषा के आधार पर गठन हो रहा था तब हमारे पूर्वजों की उदासीनता के कारण राजस्थान की भाषा राजस्थानी नहीं बन पाई। इसके लिए समय समय पर खूब संघर्ष किए गए और खूब आंदोलन भी किए मगर फिर भी हमारी राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिली क्योंकि हिन्दी भाषी अधिकारी चाहते ही नहीं कि यहां राजस्थानी को भाषाई मान्यता मिले।

उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि अब चुनाव सिर पर है। आने वाले चुनावों से पहले नेताओं को न माला दो न मंच दो और उनको अपने सामने बिठाकर दो टूक शब्दों में राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग रखो। तेवर दिखाते ही राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल जाएगी। अब भी ऐसा नहीं हुआ तो हमारी भाषा व हमारी संस्कृति लुप्त हो जाएगी।“’

इससे पहले अतिथियों ने कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया। तदोपरांत अतिथियों के माला व साफा बंधन के बाद कार्यक्रम का आगाज जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के बाबा रामदेव शोध पीठ के डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित के बीज भाषण से हुआ।

डॉ. राजपुरोहित ने इतिहासपरक जानकारियां देते हुए बताया कि आजादी से पहले से राजस्थानी की मान्यता को लेकर संघर्ष चल रहा है। राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए कई प्रस्ताव पारित हुए। कई जगह धरना प्रदर्शन भी हुए मगर हमें केवल आश्वासन मिल रहा है।

उन्होंने बताया कि बांग्लादेश तो केवल भाषा के आधार पर ही स्वतंत्र देश बन गया इसलिए हमें आंदोलन की जरूरत है।

उन्होंने राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलने के कारण गिनाते हुए बताया कि राजनीतिक उदासीनता और इससे हिन्दी को नुकसान होने की अफवाह की वजह से हमें मान्यता से वंचित किया जा रहा है। यह भ्रम की स्थिति भी उन लोगों ने फैलाई है जो बाहरी प्रदेश के हिन्दी भाषी और यहां नौकरियां कर रहे हैं।

डॉ. राजपुरोहित ने स्पष्ट किया कि हिन्दी उनके सिर का मुकुट है मगर राजस्थानी भाषा उनकी आत्मा है।

डॉ. गजेसिंह ने बताया कि नेपाल, पाकिस्तान में राजस्थानी व्याकरण पढ़ाया जा रहा है मगर हमारे यहां बच्चे इससे वंचित है यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है हमें इस हालात को बदलना होगा।

विशिष्ट अतिथि मधु आचार्य आशावादी ने बताया कि पिछली सरकार ने प्रारंभिक शिक्षा में राजस्थानी भाषा को अनिवार्य किया मगर विडंबना रही कि सरकार ने एक भी राजस्थानी शिक्षक नहीं लगाया।

इससे पहले जेके चारण, सतपाल सांदू और सुनीता स्वामी ने राजस्थानी भाषा में कविता पाठ भी किया।

पदमश्री हिम्मताराम भांभू ने भी राजस्थानी की मान्यता को जायजा मांग बताया और कहा कि हमारे साधु संत बरसों से यही भाषा बोल रहे हैं और उनके प्रवचन व वाणियां इन्ही भाषा में लिपिबद्ध है इसलिए मान्यता मिलनी ही चाहिए। अंत में जिला शिक्षा अधिकारी राजेन्द्र कुमार शर्मा ने सभी का आभार जताया।

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राजस्थानी में लिखने के लिए प्रोत्साहित करें : जिला कलेक्टर

राजस्थानी भाषा : दशा व दिशा विषयक इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए जिला कलेक्टर डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने मौके पर मौजूद राजस्थानी साहित्यकारों से आग्रह किया कि वे नवोदित लेखकों के व्याकरण अशुद्धियों को नजरअंदाज करे और उनको राजस्थानी में लिखने के लिए प्रोत्साहित करें।

उन्होंने कहा कि राजस्थानी लिपि का वहम दिमाग से निकाल दो। राजस्थान में 11 बोलियां बोली जाती है इसलिए भाषा की आंचलिकता उसे और अधिक समृद्ध बनाती है। उन्होंने कहा कि बोलियों का बदलना ही उसकी समृद्धि का परिचायक है।

कलेक्टर ने कहा कि घर से बाहर निकलते ही हम अपनी भाषा को छोड दूसरी भाषा अपना लेते है ये गलत है। हमें अपनी भाषा पर नाज होना चाहिए। उन्होंने मीडिया से भी आह्वान किया कि वे एक दिन या एक कॉलम राजस्थानी भाषा हेतु भी निर्धारित करे ताकि इस भाषा का अस्तित्व बना रहे।

कलेक्टर सोनी ने भाषा को बचाने के लिए सक्रिय होने की आवश्यकता जताई तथा एक संकल्प पत्र भी पढ़कर सुनाया।“’

ये संकल्प पत्र पढ़ा कलेक्टर ने

संगोष्ठी में सर्वसम्मति से नागौर संकल्प पत्र पारित किया। इसका पठन जिला कलेक्टर डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने किया।

उन्होंने नई शिक्षा नीति 2020 के तहत प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा यहां की राजस्थानी भाषा में देने, राजस्थानी भाषा ने प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनाने, सकारात्मक और प्रयास कर राजस्थानी ने संवैधानिक मान्यता दिलाने, आरपीएससी की प्रतियोगी परीक्षाओं में राजस्थानी भाषा को एक पेपर निर्धारित करने, राजस्थानी के रचनाकारों की जन्मभूमि के स्कूल का नाम उन रचनाकारों के नाम करने, राजस्थान के हर ब्लॉक पर एक सीनियर स्कूल में राजस्थानी साहित्य की वैकलपिक विषय शुरू करने और सरकारी स्कूल के पुस्तकालय में सरकारी खरीद में 50 प्रतिशत राजस्थानी भाषा के साहित्य की खरीद निर्धारित करने का संकल्प लिया गया।

मंच मीरा के नाम और दीर्घाएं कल्पित व सेठिया के नाम होगी

नगर परिषद के टाउन हॉल में आयोजित राजस्थानी विषयक संगोष्ठी में जिला कलेक्टर डा. जितेन्द्र कुमार सोनी ने हाथों हाथ एक नवाचार कर दिया।

उन्होंने मौके पर मौजूद नगर परिषद आयुक्त श्रवण चौधरी की ओर से मुखातिब होते हुए कहा कि वे टाउन हॉल के मंच का नाम मीरा बाई के नाम से करें और इसकी एक दीर्घा राजस्थानी के ख्यातनाम हस्ताक्षर कन्हैयालाल सेठिया के नाम और दूसरी दीर्घा का नाम नागौर के नामचीन कवि रहे कानदान कल्पित के नाम करें। इस आशय का नगर परिषद की बैठक में प्रस्ताव भी लें। इस पर पूरा सदन तालियों से गूंज उठा।

संगोष्ठी के दूसरे सत्र में हुआ राजस्थानी भाषा की दशा, दिशा और चुनौतियों पर व्याख्यान

राष्ट्रीय राजस्थानी संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में वक्ताओं ने राष्ट्रीय राजस्थानी संगोष्ठी के अंतर्गत राजस्थानी भाषा मान्यता दशा, दिशा और चुनौतियों पर व्याख्यान दिया। वहीं वरिष्ठ कवियों ने अपनी काव्य-यात्रा से विविध कविताओं की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर आयोजक संस्थाओं, अतिथियों एवं आगंतुकों द्वारा कवियों का सम्मान भी किया गया।

इस अवसर पर डॉ शक्तिप्रसन्न सिंह बिठू ने राजस्थानी भाषा की पूरी विकास यात्रा पर प्रकाश डालते हुए आजादी के बाद भाषाओं के आधार पर राज्यों के निर्माण में राजस्थानी के बलिदान का संदर्भ स्पष्ट करते हुए कहा कि राजस्थानी को मान्यता मिलने से इसका विकास अधिक तीव्र गति से हो।

उन्होंने कहा कि भाषा मनुष्य की अस्मिता का सवाल है और इसका निराकरण जल्द ही किया जाना चाहिए।

इस दौरान राजस्थानी कविताओं के संबंध में विचार व्यक्त करते हुए शिवदानसिंह ने कहा कि राजस्थानी कविताएं समकालीन समय और समाज के संकट को पूरी ऊर्जा के साथ अभिव्यक्त करती है और इनके भीतर मनुष्य की जीजीविषा के दर्शन होते हैं।

उन्होंने कहा कि जब कई सभ्यताओं का उदगम राजस्थान से हुआ है तो राजस्थानी को मान्यता मिलनी चाहिए।

इस अवसर पर डॉ. मनोज स्वामी ने कहा कि राजस्थानी भाषा आज पूरे राजस्थान की मांग बन चुकी है। इसके लिए जो संकल्प लिया गया है, उसे पूरा करना है।
इस दौरान डॉ. सुखदेव राव ने राजस्थान के वीर योद्धाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह सुखद संयोग है कि आज राजस्थानी संगोष्ठी के माध्यम से नागौर में राजस्थानी भाषा पर विस्तृत चर्चा की जा रही है।

किसी भी भाषा को आगे बढ़ाने का कार्य रचनाकार ही करते हैं, लेकिन इसका अस्तित्व बनाएं रखने के लिए सभी को एकजूट होकर प्रभावी ढंग से कार्य करना होगा।

इस दौरान गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि राजस्थानी के हजारों समर्थकों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं और इस यात्रा को पूर्ण तभी किया जाएगा जब मान्यता मिल जाएगी। मान्यता के लिए संस्था से जुड़े सभी गांव, गांव और विभिन्न जिलों में भी अलख जगाने का कार्य करेंगे।

इस दौरान रणजीत सिंह चौहान ने संबोधित करते हुए कहा कि राजस्थानी भाषा को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों का वह सम्मान करते है। इस दौरान उन्होंने कहा कि रास्ता चाहे कोई भी हो, पर लक्ष्य एक होना चाहिए राजस्थानी को मान्यता दिलवाना।

इस अवसर पर रामकिशोर चौधरी ने संबोधित करते हुए कहा कि नागौर जिले में भी कई महापुरुष, साहित्यकार, वीर योद्धा हुए है, जिनका नाम आज इतिहास में प्रचलित है, लेकिन इसके बावजूद राजस्थानी का पुस्तको में जिक्र कम देखने को मिलता है, जो बड़े अफसोस की बात है, इसके लिए संघर्ष जारी रहेगा।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्य अकादमी नई दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल के संयोजक मधु आचार्य आशावादी और जाने माने पर्यावरण प्रेमी पदमश्री हिम्मताराम भांभू थे।

मंच पर अतिथियों के रूप में समाजसेवी डॉ. हापूराम चौधरी, जिला परिषद सीईओ हीरालाल मीणा, नगर परिषद आयुक्त श्रवणराम चौधरी, जिला शिक्षा अधिकारी राजेन्द्र कुमार शर्मा आदि मौजूद थे। संचालन डॉ. रामरतन लटियाल व्याख्याता राजस्थानी साहित्य ने किया।

इस दौरान वरिष्ठ साहित्यकार देवकिशन राजपुरोहित, राजेन्द्र जोशी, लक्ष्मणदान कविया, सतपाल सांदू, पवन पहाड़िया सहित अनेक साहित्यकार व शोधार्थी मौजूद थे।

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