भगवान कृष्ण को समर्पित संत सूरदास

Surdas Biography in Hindi, Know about Surdas

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भगवान कृष्ण को अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले संत सूरदास को लेकर आज भी कई तरह के भ्रम लोगों के मन में है। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण को अपना जीवन समर्पित करने वाले सूरदास संत होने के साथ कवि और संगीतकार भी थे। साथ ही सूर ‘वात्सल्य’ और ‘श्रृंगार’ के श्रेष्ठ कवि माने जाते है।

उनके जन्म से लेकर आगे तक उनके बारे में कही गई बातें आज भी भ्रमित करती है। जिसको आज हमारे बच्चे स्कूल से लेकर कालेज तक पढ़ते है।
संत सूरदास के जीवन के बारे में आज बात करते है, जाने है उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ पहलू।

संत सूरदास का दिल्ली के पास सीही गांव में स्थित एक ब्राहमण परिवार में पैदा हुए। जोकि एक निर्धन परिवार था। (गोस्वामी हरिराय के भाव प्रकाश), इसके साथ ही आगरा-मथुरा राजमार्ग पर 1478 ईस्वी में रुनकता या रेणुका क्षेत्र मे पैदा हुए (चौरासी वैष्णव की वार्ता) में सूरदास का जन्म होना बताया गया है। इनक पिता भी रामदास एक गायक थे।

जब सूरदास मथुरा -वृंद्वावन के बीच गऊघाट में रहते थे और श्रीनाथ जी के मंदिर में भजन -कीर्तन करते थे, तब इनकी मुलाकात गुरु श्रीबल्लभार्च से हुई और तभी वे इनके वे इनके शिष्य बन गए। इसी दौरान सूरदास ने इनकी गुरु दीक्षा भी ले ली। गुरु ने उन्हे ‘भागवत् लीला’ का गुणगान करने के लिए कहा। इसके बाद वे श्रीकृष्ण का गुणगान करने लग गए।

श्रीकृष्ण भक्त सूरदास के बारे में श्याम सुंदर दास लिखते है कि ‘सूर वास्तव में जन्मांध नही थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन सूरदास ने किया है वैसा कोई जन्मांध नही कर सकता।
सूरदास के जन्म पर भी कई मत है कुछ साहित्यकार विद्वान 1581 तो कुछ 1583 और 1584 में पारसौली में उनका निधन हो गया था, इस तरह की जानकारी देते है।
सूरदास की प्रमुख रचनाएं

सूरदास द्वारा पांच ग्रंथ लिख गए बताते है। जिनमें सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयंती और ब्याहलों।

उनके तीन ग्रंथों में सूरसागर, साहित्य लहरी व सूर सारावली में सूरसागर ही सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ।

नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रंथों का उल्लेख किया गया है। जिसमें सूरदास, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमंयती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी आदि ग्रंथ है।

इसके साथ ही सूरसागर में एक लाख के करीब पद बताए जा रहे है। वर्तमान संस्करणों में करीब पांच हजार पद ही है। सूर सारावली में 1107 छंद है। साहित्य लहरी 118पदों की एक लघु रचना है। यह ग्रंथ श्रृंगार की कोटी में आता है। रचना संवत 1602 में होने का भी प्रमाण मिलता है।

Surdas : सूरदास के कुछ महत्वपूर्ण पद

ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।

अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहॅं तेल की गागरि, बूंदन ताकौं लागी।
प््रीति-नदी मैं पाउॅं न बोरयौ, दृष्टि न रुप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चॉंटी ज्यौं पागी।।

क्षितिज

मन की म नही मॉंस रही।
कहिए जाई कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तनम न बिथा सही।
अब इन जोग संदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

 

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