Independence Day : स्वतन्त्रता दिवस के मायने समझना जरूरी…!!

Independence Day 2021: Importance, History and Significance of Bhartiya Swatantrata Diwas 15 August

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Independence Day

@अनीष व्यास, स्वतंत्र पत्रकार

Independence Day 2021:  देश के स्वतन्त्रता दिवस पर हमें यह जरूर आकलन करना चाहिए कि पिछले 75सालों में हमने आजाद भारत के विकास में कितना सफर तय किया है। हमारा सफर लोकतन्त्र की व्यवस्था के साये में निश्चित रूप से सन्तोषप्रद रहा है क्योंकि इन 75 सालों में भारत का स्थान दुनिया के 20 प्रमुख औद्योगीकृत देशों के बीच लाकर खड़़ा कर दिया है।

देश 75 वां स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) मना रहा है। साल 1947 में हमारा देश दासता की जंजीरों से मुक्त हुआ था। यह आजादी न केवल अंग्रेजी शासन से मिली थी, बल्कि विदेशी सोच और सलीके भी यहीं से खत्म हुए थे। इसके बाद रखी गई नए आजाद हिंदुस्तान की नींव। नींव एक ऐसा देश बनाने की जो भले ही सोने की चिड़िया न रहा हो पर दोबारा अपना वही रुतबा हासिल करने का माद्दा रखता हो।15 अगस्त 1947 की सुबह हर मायने में नई थी।

आजादी की हवा में सांस लेना तो नया था ही, साथ ही था हिंदुस्तानियत का जज्बा। अब सबकुछ हमारा था, हमेशा हमेशा के लिए। कहते हैं आजादी महसूस करने की चीज है। लेकिन कोई अहसास हर किसी के लिए समान हो, यह जरूरी नहीं। एक राष्ट्र-राज्य की सफलता इसी में है कि हरेक नागरिक अपने को एक जैसा आजाद समझे यानी वह खुद को एक जैसा अधिकार संपन्न महसूस करे।

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स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) हर एक राष्ट्र के लिए उत्सव की तरह होता है। देशभक्ति के रंग में जाति, धर्म, रंग व भेद से ऊपर उठकर हम अपने उन पूर्वजों को याद करते हैं जिन्होनें हमारी आजादी के लिए लड़ाई लड़कर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

हम 15 अगस्त के दिन ही 200 सालों की गुलामी की जंजीरों को तोड़कर हम एक लोकतांत्रिक देश के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत होते हैं। यह दिन हमारे कर्तव्यों को भी याद दिलाता है कि जिस तरह से आजादी के लिए अनगिनत लोग अपने प्राणों की आहुति दे दी उसी तरह हमें भी देश के भीतर-बाहर के दुश्मनों से लड़ना है और अपने देश की रक्षा करनी है।

स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) मात्र एक पर्व ही नहीं, वरन उन तमाम संघर्षों, कुर्बानियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों (Freedom Fighter) को याद करने का दिन है जिनके बिना हम यह दिन मना ही नहीं पाते। यह उन संकल्पों को भी दोहराने का दिन है जो हमने आजादी की लड़ाई के दौरान लिए थे।

क्या हमें वे संघर्ष, वे सेनानी और वे संकल्प याद हैं? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि आज की युवा पीढ़ी अपने वर्तमान संघर्ष और भविष्य निर्माण में इस कदर मशगूल है कि उसे अपने अतीत और इतिहास का समुचित भान ही नहीं। कौन और कैसे कराएगा उसका अहसास ? यह काम इसलिए बहुत जरूरी है, क्योंकि आज जिस खुली हवा में हम सांस ले पा रहे हैं उसे हमने केवल अपने हक की तरह देखा है। उसके पीछे के संघर्ष और बलिदान से नावाकिफ हम उसके मूल्य और उसे सहेजने के अपने दायित्व को ठीक से समझ नहीं पाए हैं।

गांधी ने हमको यही तो सिखाया है कि जो लोग समाज के लिए जीते हैं उनकी राष्ट्रभक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता। 75 साल बाद भी यदि हम दुविधा में फंसे हुए हैं तो इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारी वरीयता राष्ट्र न होकर स्वयं का आभा मंडन हो गया है और इसे हम अन्धी प्रतियोगिता में झोंकना चाहते हैं। 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर झंडा फहराने के बाद प. नेहरू ने केवल राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन अधिनायक जय हो’ ही नहीं गवाया था बल्कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) की आजाद हिन्द फौज का यह कौमी तराना भी गवाया था।

‘कदम-कदम बढ़ाये जा खुशी के गीत गाये जा, ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पर लुटाये जा’। इसका मन्तव्य यही था कि आजादी किसी की जागीर नहीं है बल्कि इस मुल्क के लोगों की सामूहिक हिम्मत से हासिल की गई कामयाबी है। इस स्वतन्त्रता दिवस पर हमें महात्मा गांधी से लेकर पं. नेहरू और सरदार पटेल व नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा दिखाये गये उस मार्ग को याद रखने की जरूरत है जिसमें स्वतन्त्र भारत की आस्था गरीबों के उत्थान में निहित हो।

यह क्या कोई याद दिलाने वाली बात है कि जब सरदार पटेल मरे तो उनकी कुल जमा सम्पत्ति केवल 259 रुपए थी। आज के नेता यदि यही मार्ग पकड़ लें तो इस देश से गरीबी खुद-ब-खुद समाप्त हो जायेगी।

आजादी के साथ हर नागरिक को समान अधिकार दिए गए, लेकिन क्या व्यवहार में हर किसी को बराबर अधिकार हासिल हैं? हरेक स्वतंत्रता दिवस पर यह प्रश्न जरूर उठता है। अब जैसे हर किसी को कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्राप्त है, लेकिन क्या सबको समान रूप से न्याय मिल पा रहा है? आज आलम यह है कि अदालतों में केसों का अंबार लगा है। तारीख पर तारीख मिलती रहती है और फैसला नहीं हो पाता जबकि रसूख वालों के केस में या चर्चित मामलों में तुरंत निर्णय आ जाता है। आज सैकड़ों लोग सिर्फ इसलिए जेलों में बंद हैं कि कोई उनकी जमानत लेने वाला नहीं है।

हर किसी को समान रूप से शिक्षा और रोजी-रोजगार पाने का हक है। सिद्धांत रूप में सरकार ने हर किसी के लिए शिक्षा की व्यवस्था कर रखी है। पर हकीकत यह है कि कई गांवों में स्कूल सिर्फ कागज पर हैं। स्कूल चलते भी हैं तो वहां नाममात्र की पढ़ाई होती है।

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कहने को तो बच्चे पढ़-लिख गए, पर वे रोजी-रोजगार की दौड़ में शहर के पब्लिक स्कूलों में पढ़े बच्चों के सामने कहां टिक पाएंगे? लाखों गरीब परिवारों के बच्चे तो निर्धनता के कारण नहीं पढ़ पाते। वे काम करने को मजबूर होते हैं या अपराधियों के गिरोह में फंस जाते हैं।

अनेकता में एकता वाले समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम कठिन और जोखिम भरा होता है। चूंकि इसके लिए जो साहस, समर्पण और सद्बुद्धि चाहिए वह अभी भारतीय राजनीति में दिखाई नहीं देती इसलिए हम सभी को एक संकल्प यह भी लेना है कि भारतीय लोकतंत्र और राजनीति की रक्षा करते हुए उसे श्रेष्ठता की ओर ले जाना है।

स्वतन्त्रता दिवस (Independence Day) पर हमें पूरे देश की स्थिति पर नजर दौड़ानी चाहिए। उस देश के लोगों का इससे बड़ा दुर्भाग्य कोई नहीं हो सकता कि खुद सरकार उन्हें अपना आजादी का दिन मनाने के लिए निर्देश दे। ऐसी स्थिति क्यों आ रही है कि जो कार्य स्वत: स्फूर्त ढंग से पिछले 75 सालों से होता आ रहा है उसे करने के लिए सरकार निर्देश जारी कर रही है।

क्या हमारी राष्ट्रभक्ति में कहीं कमी आ गई है या हमारे राष्ट्रप्रेम की परिभाषा बदल गई है। जिस देश की आजादी के लिए उसके आम आदमी ने ही सबसे ज्यादा कुर्बानियां दी हों वह किस तरह इस दिन को भूल सकता है।

विचार इस बात पर भी करने की जरूरत है कि ऐसा करके हम क्या खुद पर ही भरोसा उठने का सन्देश तो नहीं दे रहे हैं। जो व्यक्ति अपने आसपास के गली-मुहल्ले में सफाई अभियान चलाये हुए है, उससे बड़ा देशभक्त कौन हो सकता है क्योंकि वह अपने लिए नहीं बल्कि समाज के लिए जीता है।

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