Narayani Mata : सदियों से आज भी बह रही रहस्यमयी जलधारा, ऐसी है नाई समाज की कुल देवी नारायणी माता

Mysterious stream flowing for centuries even today, Know more Narayani Mata, the family goddess of Nai Samaj

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Narayani Mata : भारत में सदियों से ही धार्मिक मान्यताओं के चलते आज हर समाज, धर्म के देवी देवता है, इनमें हर वर्ग की एक कुलदेवता भी है। जिस तरह से जीण माता, करणी माता, बाबा रामदेवव, गोगा जी, भृतहरी जी के साथ नारायणी माता का भी प्रमुख स्थान है। नारायणी माता का मंदिर (Narayani Mata Temple) बेहद खास है क्योंकि अरावली की पहाड़ियों के बीच राजस्थान के अलवर जिले के राजगढ़ तहसील के बरवा की डूंगरी की तलहटी में बसा यह विश्व प्रसिद्व मंदिर (Narayani Mata) आज भी कई रहस्यों को अपने आप में समाया हुआ है।

नाई जाति की कुलदेवी के रुप में इसे खासकर जाना जाता है। इसीलिए देश दुनियां के कोने -कोने में रहने वाले नाई जाति (Nai Samaj) के लोग यहां आकर मां के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते है। माता के दरबार में नृसिंह महाराज की प्रतिमा भी सुसज्जित है। वैशाख शुक्ल एकादशी को नारायणी माता का मेला भरता है। इसमें बड़ी संख्या में श्रृद्वालु आते है।

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Know More About Narayani Mata : आईये जाने नारायणी माता के बारे में

नारायणी माता का भव्य मंदिर उसी स्थान पर बना है जहां माता के पति को बरगद के पेड़ के नीचे सांप ने काट लिया था। इसी स्थान से ही आजतक जलधारा निकल रही है, जोकि 3 किलोमीटर तक बह रही है।

Narayani Mata Temple : नारायणी माता मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में

मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में प्रतिहार शैली से कराया गया था। इस दौरान दुलहराय जी का राज था। नांगल पावटा के जगीरदार ठाकुर बुधसिंह ने नारायणी माता मंदिर की स्थापना कराई। मंदिर के कक्ष के गर्भगृह में नारायणी माता की मूर्ति स्थापित है। इसी स्थान पर माता सती हुई थी।

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Narayani Mata : ये है नारायणी माता

अलवर जिले के मौरागढ़ के रहने वाले विजय राम नाई और उनकी पत्नी रामवती के शादी के कई सालों तक कोई संतान नही हुई। फिर शिव भक्ति से विक्रम संवत् 1006 के चैत्र शुक्ल की नवमी को एक कन्या का जन्म हुआ। यही कन्या आगे चलकर नारायणी माता के रुप में जानी जाने लगी।

जब पीहर से नारायणी माता जा रही थी ससुराल

नारायणी माता का पांपरिक रीति रिवाज से राजोगढ़, टहला जिला अलवर के गणेश पुत्र कर्णश से विवाह हुआ। जब विदाई के बाद वे अपने अपति के साथ ससुराल जा रही थी। पहले के समय आवागमन के साधन न हो पाने के कारण अधिकतर लोग एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए पैदल ही अधिक जाते थे। तेज धूप और पैदल सफर से थक जाने के बाद दोनों ने बीच रास्ते ही आराम करने की सोची। इसी दौरान रास्ते पर ही एक बड़ बरगद का पेड़ दिखा और उन्होने इसी की छाया के नीचे आराम करने का फैसला किया। पैदल चलकर थके होने के कारण वे पेड़ की ठंडी छाव में दोनों गहरी नीदं में सो गए।

सूर्यास्त के समय जब नारायणी माता नींद से जागी तो उन्होने पति से कहा कि रात होने वाली है, घर चलना नही है क्या। इस पर उनकी और से कोई जवाब नही आया। माता ने देखा कि पति को आवाज देेने पर भी कोई हलचल नही है। फिर पता चला कि उनको किसी सांप ने डस लिया है।

ठीक उसी समय पास से ही मीणा जाति के कुछ लोग जानवरों के साथ अपने घरों की और जा रहे थे। माता ने उन लोगों से कहा कि मेरे पति मर चुके है और आप चिता के लिए पास के जंगल से लकड़ी एकत्रित कर दो। इस पर सभी ने जंगल से लकड़ी इकट्ठा कर चिता की तैयारी कर दी। इसके बाद नारायणी माता अपने पति के साथ सती हो गई।

ग्वालों को नारायणी माता ने दिया वरदान

जब वो जलती चिता में बैठ गई तभी भविष्यवाणी हुई कि हे ग्वालों, तुमने मेरी मदद की है इस के बदले तुम्हे क्या चाहिए। ग्रामीण ग्वालों ने कहा माता जी इस इलाके में पानी की बड़ी समस्या है। इस पर नारायणी माता ने कहा कि इस जगह से एक लकड़ी लेकर आगे की और भागे पर पीछे की और मुड़कर मत देखना। जिस स्थान तक भागते हुए जाओगे वहां तक यह जल की धार पहुंच जाएगी।

आखिरकार कुछ देर भागने के बाद वह रुक गया। जैसे ही वह रुका उसने पीछे मुड़कर देख लिया, बस माता के कहे अनुसार वह पानी की जलधारा उसी जगह पर रुक गई। आज भी इस जलधारा का पानी बह रहा है।

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नारायणी माता मंदिर के बाहर बना कुंड बेहद खास

अरावली की पहाड़ियों के बीच सरिस्का के सुंदर घने पेड़ो के बीच बने नारायणी माता मंदिर के बाहर एक कुंड बना हुआ है। जोकि 11वीं सदी के प्रतिहार शैली से बना है। मंदिर के सामने इस संगमरमर के पत्थर से बने कुंड में हमेशा पानी बहता रहता है। कहा जाता है कि इस कुंड का पानी अकाल के समय भी इसी तरह से बह रहा था।

मंदिर का यह कुंड भक्तों की आस्था से भी जुड़ा है। श्रृद्वालुओं के स्नान करने के लिए कुंड है, जिसको पाकर आने वाला अपने को धन्य करता है। इसमें आने वाले पानी की जलधारा मंदिर के पीेछे से आती है। जोकि प्राकृतिक रुप से अपना रुप धारण किए हुए है।

मंदिर परिसर में रुकने की है खास व्यवस्थाएं

नारायण माता के मंदिर में दूर दराज से आने वाले श्रृद्वालुओं के धर्मशालाएं बनी हुई है, जहां पर भक्त आसानी से आश्रय ले सकते है।

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