Chhath Puja 2023 : नहाय -खाय के साथ सूर्य उपासना का पर्व छठ, जाने शुभ मुहूर्त

Chhath Puja 2023 Date Nahay Khay Start, Know Surya Argya Timing Shubh Muhurat

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Chhath Puja 2023 : सौभाग्य, आरोग्य व सर्वसुख प्रदाता छठ व्रत : 17 नवम्बर से 20 नवम्बर तक

– ज्योतिर्विद् विमल जैन

प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्यदेव की आराधना से जीवन में हर्ष, उमंग, उल्लास व ऊर्जा का संचार होता है। सूर्यदेव की महिमा में रखने वाला डालाछठ, जिन्हें छठ पर्व भी कहते हैं, कार्तिक शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि से प्रारम्भ होगा, जिसका समापन कार्तिक शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि के दिन होता है।

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार भगवान सूर्यदेव की आराधना का चार दिवसीय महापर्व 17 नवम्बर, शुक्रवार से प्रारम्भ होकर 20 नवम्बर, सोमवार तक चलेगा। सुख-समृद्धि, खुशहाली के लिए सृष्टि के नियंता भगवान सूर्यदेव की महिमा अपरम्पार है।

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धार्मिक पौराणिक मान्यता

सूर्य षष्ठी के व्रत से पाण्डवों को अपना खोया हुआ राजपाट एवं वैभव प्राप्त हुआ था। एक मान्यता यह भी है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी के सूर्यास्त तथा सप्तमी तिथि के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ था। ऐसी भी पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि के दिन उपवास रखकर प्रत्यक्ष भगवान सूर्यदेव की आराधना कर तथा सप्तमी तिथि के दिन व्रत पूर्ण किया था।

इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया था। फलस्वरूप सूर्यदेव की आराधना का छठपर्व मनाया जाता है। इस चार दिवसीय पर्व में भगवान सूर्य की ही आराधना का विधान है।

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि सूर्य की आराधना का चार दिवसीय महापर्व 17 नवम्बर, शुक्रवार से प्रारम्भ होकर 20 नवम्बर, सोमवार तक चलेगा।

  • कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (16 नवम्बर, गुरुवार को दिन में 12 बजकर 35 मिनट पर लगेगी)
  • 17 नवम्बर, शुक्रवार को व्रत का प्रथम नियम-संयम कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि (17 नवम्बर, शुक्रवार को दिन में 11 बजकर 04 मिनट पर लगेगी)
  • 18 नवम्बर, शनिवार को द्वितीय संयम (एक समय खरना) कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ïठी तिथि (18 नवम्बर, शनिवार को प्रात: 9 बजकर 19 मिनट पर लगेगी)
  • 19 नवम्बर, रविवार को व्रत के तृतीय संयम के अन्र्तगत सायंकाल अस्ताचल (अस्त होते हुए) सूर्यदेव को प्रथम अघ्र्य दिया जाएगा।
  • कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि (19 नवम्बर, रविवार को प्रात: 7 बजकर 24 मिनट पर लगेगी)
  • 20 नवम्बर, सोमवार को चतुर्थ एवं अन्तिम संयम के अन्तर्गत प्रात:काल उगते हुए सूर्यदेव को द्वितीय अघ्र्य देकर छठ व्रत का पारण किया जाएगा।

कैसे करें छठ पूजा

ज्योतिषविद् विमल जैन के मुताबिक इस चार दिवसीय महापर्व पर सूर्यदेव की पूजा के साथ माता षष्ठी देवी की भी पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस पर्व पर नवीन वस्त्र, नवीन आभूषण पहनने की परम्परा है। यह व्रत किसी कारणवश जो स्वयं न कर सकें, वे अन्य व्रती को अपनी ओर से समस्त पूजन सामग्री व नकद धन देकर अपने व्रत को सम्पन्न करवाते हैं।

विमल जैन ने बताया कि प्रथम संयम 17 नवम्बर, शुक्रवार चतुर्थी तिथि के दिन सात्विक भोजन जिसमें कद्दू या लौकी की सब्जी, चने की दाल तथा हाथ की चक्की से पीसे हुए गेहूँ के आटे की पूडिय़ाँ ग्रहण की जाती हैं, जिसे नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। अगले दिन 18 नवम्बर, शनिवार पंचमी तिथि को सायंकाल स्नान-ध्यान के पश्चात् प्रसाद ग्रहण करते हैं। जो कि धातु या मिट्टी के नवीन बर्तनों में बनाया जाता है।

प्रसाद के रूप में (नये चावल से बने गुड़ की खीर) ग्रहण किया जाता है, जिसे अन्य भक्तों में भी वितरित करते हैं, इसे खरना के नाम से भी जाना जाता है। तत्पश्चात् व्रत रखकर 19 नवम्बर, रविवार षष्ठी तिथि के दिन सायंकाल अस्ताचल (अस्त होते हुए) सूर्यदेव को पूर्ण श्रद्धाभाव से अघ्र्य देकर उनकी पूजा की जाएगी। पूजा के अन्तर्गत भगवान सूर्यदेव को एक बड़े सूप या डलिया में पूजन सामग्री सजाकर साथ ही विविध प्रकार के ऋतुफल, व्यंजन, पकवान जिसमें शुद्ध देशी घी का गेहूँ के आटे तथा गुड़ से बना हुआ ठोकवा प्रमुख होता है, भगवान सूर्यदेव को अॢपत किया जाता है।

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ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि भगवान सूर्यदेव की आराधना के साथ ही षष्ठी देवी की प्रसन्नता के लिए उनकी महिमा में गंगाघाट, नदी या सरोवर तट पर लोकगीत का गायन करते हैं, जो रात्रिपर्यन्त चलता रहता है। रात्रि जागरण से जीवन में नवीन ऊर्जा के साथ अलौकिक शान्ति भी मिलती है। अन्तिम दिन 20 नवम्बर, सोमवार सप्तमी तिथि के दिन प्रात:काल उगते हुए सूर्यदेव को धाॢमक विधि-विधान से अघ्र्य देकर छठव्रत का पारण किया जाएगा। यह व्रत मुख्यत: महिलाएँ ही करती हैं।

आजकल पुरुष भी इस व्रत को करने लगे हैं। महिलाएँ अधिक से अधिक लोगों में शुभ मंगल कल्याण की भावना रखते हुए भक्तों में प्रसाद वितरण करती हैं, जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि सौभाग्य बना रहे। इस महापर्व पर स्वच्छता व पूर्ण सादगी तथा नियम-संयम अति आवश्यक है। इस पर्व पर जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य हेतु परिवार के समस्त सदस्य श्रद्धा, आस्था व भक्ति के साथ अपनी सहभागिता निभाते हैं।

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(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)

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