जयपुर। शिल्पकार आर्ट और क्राफ्ट प्रदर्शनी 2024 में शिल्पकला के उन महान कलाकारों के योगदान और उत्कृष्टता का वर्णन कर रही है। जिन्होंने अपनी अनूठी कला के माध्यम से देश और दुनिया में नाम कमाया है। ये कलाकार न केवल अपने-अपने क्षेत्र में बेजोड़ हैं, बल्कि इन्होंने सदियों पुरानी परंपराओं को आधुनिक दृष्टिकोण के साथ जीवित रखते हुए नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। प्रदर्शनी में भाग ले रहे सभी कलाकार भारतीय शिल्पकला और संस्कृति के अद्वितीय स्तंभ हैं।
चार दशकों से अधिक का अद्वितीय करियर, पवन कुमार कुमावत रत्न शिल्पकला के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। अपनी कला यात्रा की शुरुआत मात्र 14 साल की उम्र में अपने स्वर्गीय पिता ओमप्रकाश कुमावत के सान्निध्य में की। पवन ने अपने जीवन को रत्नों की अद्भुत कारीगरी के प्रति समर्पित किया है। वे जानवरों, देवी-देवताओं की मूर्तियों और लघु कलात्मक दृश्य जैसी विविध कलाओं में विशेष महारत रखते हैं।

उनकी कला को गहन बारीकियों और रत्नों की प्राकृतिक सुंदरता को उभारने की अद्वितीय क्षमता के लिए पहचाना जाता है। 2024 में, पवन को उनके उत्कृष्ट कार्य “रूबी क्यानाइट” पर नक्काशी किए गए ईगल के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया, जो उनकी रचनात्मकता और कला कौशल का प्रतीक है। अपने करियर के दौरान, पवन ने कुशल कलाकारों की एक टीम भी बनाई है, जो रत्न शिल्पकला की सीमाओं को आगे बढ़ाते हुए उत्कृष्टता की एक नई परिभाषा स्थापित कर रही है।
रत्न चित्रकला के क्षेत्र में अग्रणी और जयपुर स्थित स्टूडियो जेम्स हैंडीक्राफ्ट के संस्थापक, सुनीश मारू ने 30 वर्षों से अधिक के अनुभव के साथ अपनी पहचान बनाई है। सुनीश प्राकृतिक रत्नों की बारीकियां और सुंदरता को कांच पर सजाकर अद्वितीय कलाकृतियां बनाते हैं। उनके काम में न तो कोई कृत्रिम रंग होते हैं और न ही कोई रासायनिक पदार्थ।

उनकी कृतियों में प्राकृतिक पत्थरों जैसे अमेथिस्ट, सिट्रीन, पेरिडॉट आदि का उपयोग होता है, और कई बार इन डिजाइनों को वास्तविक सोने की सजावट से सजाया जाता है। सुनीश को अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया है, जिनमें पेरिस में “वर्ल्ड क्वालिटी कमिटमेंट इंटरनेशनल अवार्ड” शामिल है। उनकी पत्नी सुधा मारू के साथ मिलकर, सुनीश ने इस दुर्लभ कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और इसे एक बेहतरीन सजावट कला के रूप में स्थापित किया है।
सुनील प्रजापति, जिन्हें राजस्थान सरकार द्वारा 2009-10 में राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, मूर्तिकला और चित्रकला में एक अनुभवी कलाकार हैं। वे मार्बल, प्लास्टर ऑफ पेरिस, ब्रॉन्ज़, और टेराकोटा जैसी विविध सामग्रियों का उपयोग करके अनूठी कृतियों का निर्माण करते हैं। उनके अद्वितीय टेराकोटा शिल्पकला में मानवीय भावनाओं जैसे प्रेम, गौरव और चिंतन की गहन अभिव्यक्ति होती है।
सुनील ने अपनी कला का प्रशिक्षण अपने पिता, पद्म अर्जुन प्रजापति और अन्य महान गुरुओं से लिया है। उनकी कलात्मकता ने न केवल उन्हें व्यक्तिगत पहचान दिलाई है, बल्कि उन्होंने कई छात्रों को भी इस कला में प्रशिक्षित किया है, जिससे यह सांस्कृतिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहे।

रामगढ़, अलवर के 15वीं पीढ़ी के कुम्हार कलाकार ईश्वर सिंह प्रजापति ने अपने परिवार की सदियों पुरानी मिट्टी के काम की विरासत को न केवल जीवित रखा, बल्कि उसे आधुनिक दृष्टिकोण के साथ नया आयाम भी दिया। उनकी कला का न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मान हुआ है। उन्हें 2020 में “यंग आर्टिसन अवार्ड” और 2021 में “सुरेश नेओटिया अवार्ड” से नवाजा गया है।
ईश्वर सिंह ने अपनी पारिवारिक परंपरा को बनाए रखते हुए इसमें नयापन लाया है। उनकी मिट्टी की वस्तुएं न केवल उपयोगी होती हैं, बल्कि उनमें कलात्मकता और नवीनता का अद्भुत मेल भी होता है। वे कई प्रतिष्ठित संस्थानों में वर्कशॉप भी आयोजित करते हैं, जिससे इस कला के प्रति जागरूकता और सम्मान बढ़ता है।
आज शिल्पकार: आर्ट और क्राफ्ट प्रदर्शनी 2024 में वरिष्ठ पत्रकार एवं स्वतंत्रता सेनानी, प्रवीनचंद्र छाबड़ा अतिथि के रूप में पधारे और प्रदर्शनी की सराहना करते हुए कहा कि “इन कलाकारों के योगदान ने भारतीय शिल्पकला को विश्व स्तर पर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, और यह सुनिश्चित किया है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर सजीव और समृद्ध रहे।”