जयपुर। राजस्थान विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने सोमवार को बीकानेर संभाग की वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित मीडिया बंधुओं से चर्चा करते हुए देश के दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा में ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 एवं कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 पारित होने को स्वागतयोग्य कदम बताते हुए कांग्रेस व अन्य राजनीतिक दलों पर किसान हितैषी विधेयकों के संबंध में किसानों को भ्रमित करने का आरोप लगाया है।
राठौड़ ने कहा कि केन्द्र सरकार ने देश के दोनों सदनों में पारित 2 ऐतिहासिक कृषि विधेयकों के माध्यम से कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया है।
राठौड़ ने कहा कि कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने, किसानों की आय बढ़ाने एवं उनके जीवन स्तर में बदलाव लाने के उद्देश्य से लाया गया है। जिसमें मुख्य प्रावधान किसानों को उनकी उपज के विक्रय की स्वतंत्रता प्रदान करते हुए ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना है जहां किसान एवं व्यापारी कृषि उपज मंडी के बाहर भी अन्य माध्यमों से उत्पादों का सरलतापूर्वक व्यापार कर सके।
राठौड़ ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य राज्य के भीतर एवं देश में किसी भी स्थान पर किसानों को अपनी उपज निर्बाध रूप से बेचने के लिए अवसर एवं व्यवस्थाएं प्रदान करना है। इस व्यवस्था के साथ मंडिया समाप्त नहीं होगी वहां पूर्ववत् व्यापार होता रहेगा और किसानों को मंडी के साथ ही अन्य स्थानों पर अपनी उपज बेचने का विकल्प प्राप्त होगा।
राठौड़ ने कहा कि कृषक सशक्तिकरण व संरक्षण कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 के अंतर्गत कृषकों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ता है। विधेयक में कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसानों को उसकी उपज के दाम निर्धारित करने की सुविधा मिलेगी तथा उपज का दाम बढ़ने पर भी न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ का भी प्रावधान किया गया है।
राठौड़ ने कहा कि इस विधेयक में बाजार की अनिश्चितता से कृषकों को बचाने के उद्देश्य से उपज का मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव भी किसान पर नहीं पड़ेगा। साथ ही किसान को अनुबंध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी और वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेचेगा जिसका भुगतान किसान को अधिक से अधिक 3 दिन के भीतर प्राप्त होगा।
राठौड़ ने सदन में पारित इन दोनों ऐतिहासिक कृषि विधेयकों को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों को उन्नत व मुनाफे की खेती के साथ कृषि उत्पाद के व्यापार में लाइसेंस राज व इंस्पेक्टर राज को समाप्त करने, किसान को अपनी फसल कभी भी कहीं भी बेचने की दशकों पुरानी पूरी करने का ऐतिहासिक कार्य किया है तथा लघु सीमांत किसान को अपनी फसल पूर्व करार के माध्यम से किसी भी व्यापारी या कंपनी को बेचने का व्यापक अधिकार देकर प्रदेश के 80% लघु सीमांत किसानों को सौगात दी है।
राठौड़ ने कहा कि यूपीए सरकार ने 2007 में मॉडल एपीएमसी नियम तैयार करते हुए जिसमें निजी मंडियों की स्थापना, प्रत्यक्ष विपणन, संविदा खेती, एक स्थान पर मंडी शुल्क, एकीकृत व्यापार लाइसेंस और ई-मार्केट शामिल है, को राज्यों में लागू करने को कहा था। वहीं संविदा खेती हेतु कांग्रेस शासनकाल में हरियाणा-2007, कर्नाटक-2003, महाराष्ट्र-2006, मध्यप्रदेश-2003 सहित 19 राज्यों में ये एपीएमसी अधिनियम के अंतर्गत प्रावधान किये गए। इसके साथ ही पंजाब, तमिलनाडु, ओडिशा में अलग से संविदा खेती के अधिनियम पारित किए गए। राठौड़ ने कहा कि मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने भी किसानो को उनके उत्पादों को बेचने के लिए बहुआयामी विकल्प दिए जाने का भी सुझाव दिया था।
राठौड़ ने कहा कि लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस के घोषणा पत्र में मंडी समिति के अधिनियम में संशोधन जिससे कृषि उपज के निर्यात एवं अंतर्राज्यीय व्यापार पर लगे प्रतिबंध समाप्त करने, बड़े गांव व कस्बों में किसान बाजार की स्थापना जहां पर किसान बिना किसी प्रतिबंध के अपनी उपज बेच सके तथा कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए पॉलिसी बनाने जैसे बिन्दु शामिल थे। इसके बावजूद जब केन्द्र सरकार किसान हित में ऐसे फैसले ले रही हैं तो कांग्रेस अपने ही घोषणा पत्र पर यू-टर्न क्यों ले रही है ?
राठौड़ ने कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए कतिपय राजनीतिक दल विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी इन नए प्रावधानों का विरोध कर रही हैं क्योंकि वे अपने घोषणा पत्र में इन बिन्दुओं को शामिल करने के बाद भी वे इसे लागू करने की हिम्मत नहीं कर पाए।
राठौड़ ने कहा कि एक राष्ट्रीय बाजार होने, संविदा खेती के माध्यम से मार्केट लिंकेज स्थापित किये जाने एवं अनिवार्य मंडी टैक्स नहीं लेकर मंडियों में उपलब्ध अधोसंरचना इस्तेमाल पर सर्विस चार्ज नहीं लेने जैसी स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को केन्द्र सरकार इन विधेयकों के माध्यम से लागू कर रही है।
राठौड़ ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा बार-बार स्पष्ट किया जा रहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पूर्व की तरह निर्धारित होते रहेंगे वहीं रबी फसलों की एमएसपी आगामी सप्ताह में घोषित हो जाएगी तथा एमएसपी पर खरीद जारी रहेगी। इन विधेयकों में किसान की भूमि के स्वामित्व का शत-प्रतिशत संरक्षण देते हुए अन्नदाता के हितों को सर्वोपरि रखा गया है। वहीं कृषि उत्पादों पर टैक्स शून्य होने से किसानों को ज्यादा लाभ प्राप्त होगा।
राठौड़ ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पारित विधेयक प्रदेश में कृषि उपज मंडी अधिनियम को कहीं भी प्रभावित नहीं करता है। यह तो मात्र कृषि उपज मंडी की सीमा के बाहर बिना किसी कर (टैक्स) के किसान को किसी भी स्थान पर अपनी उपज बेचने की दशकों पुरानी मांग को पूरा करता है।
राठौड़ ने आरोप लगाया कि पूरे देश में 2.6 प्रतिशत कृषि मंडी टैक्स व कृषक कल्याण फीस के नाम पर किसान के उत्पाद पर सर्वाधिक कर (टैक्स) राजस्थान में है, राज्य सरकार अगर किसानों व व्यापारियों की हितैषी है तो इस कर (टैक्स) को समाप्त करें ताकि किसान कृषि उपज मंडी सहित जहां चाहे अपनी फसल को विक्रय कर सके तथा व्यापारी भी अपना व्यापार कृषि उपज मंडी सहित जहां चाहे बेरोकटोक कर सके।
राठौड़ ने कहा कि हाल ही में राजस्थान विधानसभा में कृषि उपज मंडी अधिनियम के संशोधन द्वारा राज्य सरकार ने कृषक कल्याण फीस के नाम पर फसल के विक्रय पर और अधिक टैक्स वसूलने का अधिकार भी लिया है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार पूर्व में प्रदेश में लगे 2.6 % कृषि मंडी टैक्स को और बढ़ाकर किसानों से वसूल करेगी।