बीकानेर। वेटरनरी विश्वविद्यालय (Veterinary University) अनुसंधान परिषद् की सातवीं बैठक सोमवार को कुलपति प्रो. विष्णु शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित की गई।
इस अवसर पर वेटरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विष्णु शर्मा ने कहा कि विश्वविद्यालय के अनुसंधान कार्य एक योजनाबद्ध तरीके से समाज और खासतौर पर पशुपालकों, किसानों की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से किये जा रहे हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में राष्ट्रीय रिसर्च फाउंडेशन की तर्ज पर राजुवास रिसर्च फाउंडेशन (Rajuvas Research Foundation ) की स्थापना करके विश्वविद्यालय अनुसंधान को समन्वित किया जाएगा।
राज्य के आठों पशुधन अनुसंधान केन्द्रों पर पशुधन और उत्पादन फॉर्म को पूरी तरह से जैविक मोड पर लाने का कार्य किया जा रहा है जो कि समय की मांग है। अधिकृत संस्थानों द्वारा इनका जैविक प्रमाणीकरण भी किया जा रहा है। राज्य में 6 पशुधन अनुसंधान केन्द्रों पर प्रत्यारोपण तकनीक से अधिक उत्पादन व श्रेष्ठ नस्ल के पशु प्राप्त करने का कार्य प्रगति पर है। दो अन्य पशुधन केन्द्रों पर भी भू्रण प्रत्यारोपण तकनीक शीघ्र प्रारंभ हो जाएगी। सभी पशुधन अनुसंधान केन्द्रों पर पशुधन उत्पाद की मूल्य संवर्द्धन और प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना करके किसान और पशुपालकों को प्रेरित किया जा सकेगा।
कुलपति नेे बताया कि विश्वविद्यालय में 10 एडवांस्ड अनुसंधान केन्द्र राज्य सरकार के सहयोग से चल रहे हैं। इन दस अनुसंधान केन्द्रों को मिलाकर एप्लाईड वेटरनरी साईंस का एक नया संकाय बनाया जाना प्रस्तावित है। इनमें एथिनो मेडिसिन, अंतरिक्ष आधारित टेक्नोलोजी, पशुचिकित्सा अभियांत्रिकी, वन्य जीव प्रबंधन, जैव विविधता, जैविक पशु उत्पाद, पशु आपदा व चारा प्रबंधन, जैव अपशिष्ट निस्तारण जैसे केन्द्र शामिल हैं।
इसके तहत विभिन्न प्रकार के सर्टिफिकेट डिप्लोमा और डिग्री पाठ्यक्रम शुरू किये जा सकेंगे। इन सभी केन्द्रों पर पशु आहार संयंत्र स्थापित करके आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा पशु आहार में डिजिटलाईजेशन तकनीक द्वारा पशुपालकों को पोषण व आहार संबंधी जानकारी मुहैय्या करवाई जाएगी।
कुलपति प्रो. शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय के फार्माें पर कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग शुरू किया जाना प्रस्तावित है। इससे पूर्व कार्यवाहक कुलसचिव अरविंद बिश्नोई ने विश्वविद्यालय द्वारा अब तक अर्जित उपलब्धियों का विवरण प्रस्तुत किया। बैठक में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ. ए. साहू ने ऊंटों पर साझा अनुसंधान कार्य किए जाने की आवश्यकता जताते हुए राज्य के पशु विज्ञान केन्द्रों को महत्वपूर्ण बताया।
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र के प्रभारी व प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एस.सी. मेहता ने विश्वविद्यालय के अनुसंधान कार्यों को उच्च दर्जे का और पशुपालकों के लिए अत्यंत उपयोगी बताया। अनुसंधान निदेशक प्रो. हेमंत दाधीच ने परिषद् की बैठक का संचालन करते हुए प्रगति विवरण प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (रफ्तार) के तहत वर्ष 2021-22 के लिए 11 नई परियोजनाओं इम्यूनो पैथोलॉजिकल डॉयग्नोस्टिक लैब और पशुओं के पोस्टमार्टम की सेवाएं सुलभ करवाना, दक्षिण राजस्थान में पशु रोग निदान सह प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना, राठी और थारपारकर प्रजनन फार्म के सुद्दढ़ीकरण और आधुनिकीकरण के कार्य करवाये जा सकेंगे। इसके अलावा जयपुर में बैक यार्ड पोल्ट्री फार्मिंग की उत्पादन इकाई की स्थापना, उष्ट्र दूध के जैविक तत्वों की पहचान और पशु रोग निदान प्रयोगशाला में संक्रामक रोगों के प्रभाव पर अनुसंधान कार्य किया जा सकेगा। उभरती जुनोटिक बीमारियों की रोकथाम के लिए बायोसेफ्टी लेवल-3 की सुविधाए मुहैय्या करवाने का प्रस्ताव भी शामिल है। विश्वविद्यालय के पशुधन अनुसंधान केन्द्रों के प्रभारी अधिकारियों एवं एडवांस्ड अनुसंधान केन्द्रों के प्रमुख अन्वेषकों ने प्रगति विवरण प्रस्तुत किये।
इस अवसर पर कुलपति प्रो. विष्णु शर्मा ने पारम्परिक पशुचिकित्सा पद्धति एवं वैकल्पिक औषधि विज्ञान केन्द्र द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका का विमोचन किया। बैठक में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सुमंत व्यास, पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ वीरेन्द्र नेत्रा, मनोनीत सदस्य मोहनलाल गोरछिया विश्वविद्यालय के डीन और डॉयरेक्टर और ऑनलाईन नवीन तंवर बैठक में शामिल हुए।
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