विश्व मायड़ भाषा दिवस के उपलक्ष्य में राजस्थानी कवयित्री-गोष्ठी आयोजित

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बीकानेर। राजस्थानी करोड़ों लोगों की मातृभाषा है, यह अत्यंत समृद्ध भाषा है व इसमें विपुल साहित्य-रचना की गई है। राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति की देश-विदेश के विद्वानों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता मिलनी ही चाहिए।
ये विचार राजस्थानी कविताओं के माध्यम से गुरुवार को कवयित्रियों ने व्यक्त किए। अवसर था राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की ओर से विश्व मायड़ भाषा दिवस के उपलक्ष्य में अकादमी परिसर में आयोजित राजस्थानी कवयित्री-गोष्ठी का।
कार्यक्रम-संयोजिका मोनिका गौड़ ने अपनी कविता में कहा-देवभाषा री आ है जायी, साहित्य री साख सवाई, टॉड-ग्रियर्सन इणनै मानी, तैस्सीतोरी शान बढ़ाई, आ मायड़ करै पुकार इणनै मान देवो जी, म्हारी भाषा करै पुकार अब सम्मान देवो जी। वरिष्ठ कवयित्री सुधा आचार्य ने कहा-शौरसेनी, गुर्जरी सूं उपजी है, अबै आपरी ठावी ठौड़ राखै है, आ म्हारी मायड़ भाषा है। डॉ. रेणुका व्यास ‘नीलम’ ने कहा-मायड़ म्हारी नै निंवण, निंवण थनै मरुभौम, राजस्थानी नै निंवण, जिण बिन गूंगी कौम। डॉ. कृष्णा आचार्य ने कहा-राती माती सिंज्या ढलगी, पंखीड़ा घरे पधार्या है, रात री राणी है इठलाई, फूलड़ा मन में खिलिया है। इन्द्रा व्यास ने कविता सुनाई- धरती टसकै देख देख, मिनख री चालां।
अकादमी सचिव शरद केवलिया ने कहा कि प्रदेश की महिला साहित्यकारों द्वारा राजस्थानी भाषा में उत्कृष्ट साहित्य रचा जा रहा है। उन्होंने बताया कि अकादमी द्वारा मासिक पत्रिका जागती जोत व समय-समय पर आयोजित किए जाने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों के माध्यम से राजस्थानी भाषा, साहित्य व संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
इस अवसर पर कवयित्रियों को वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मदन केवलिया द्वारा लिखित राजस्थानी-आत्मकथा पुस्तक, अकादमी प्रकाशन व स्मृति-चिन्ह भेंट किए गए। कार्यक्रम में अनुराधा स्वामी, केशव जोशी, गुलाब सिंह, हरिकिशन व्यास, कानसिंह, मनोज मोदी सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

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