बीकानेर। बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय (Bikaner Technical University) के पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितिक संतुलन के प्रति तकनीकी शिक्षा के विद्यर्थियो एवं प्रदेश के सभी सम्बद्ध 42 महाविद्यालयों में जागरूकता लाने हेतु अपने नवाचार के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण से जुडी अभिनव योजना का क्रियान्वयन करने जा रहा है, जिसमे विद्यर्थियो को पर्यावरण के प्रति उनके दायित्व से नवाचार और प्रयोगिक रूप से जोड़ा जाएगा।
बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय के सहायक जनसम्पर्क अधिकारी विक्रम राठौड़ बताया कि पोलिथिन के बढ़ते हुए प्रयोग को कम करने हेतु विश्वविद्यालय के सामाजिक दायित्व एवं पर्यावरण संरक्षण प्रकोष्ठ दुवारा “इको ब्रिक परियोजना” शुरू की गई है। जिसके अन्तर्गत विश्वविद्यालय एवं विश्वविद्यालय से संबंधित सभी महाविद्यालयों की फैकल्टी एवं छात्रों को इको ब्रिक के विषय में जानकारी दी जायेगी एवं उन्हें समाज में इस हेतु जागरूकता लाने का दायित्व भी दिया जायेगा। इसी के क्रम में बीटीयू के कम्प्यूटर विभाग के संकाय सदस्य लक्ष्मण सिंह खंगारोत ने “ईको ब्रिक कलेक्शन एप” विकसित किया है। एप्प का लोकार्पण बीटीयू के कुलपति प्रो. एच.डी.चारण द्वारा किया गया तथा खंगारोत द्वारा एप्प का डेमोस्ट्रेशन किया गया। इस एप के द्वारा विश्वविद्यालय एवं विश्वविद्यालय से संबंधित महाविद्यालयों के संकाय सदस्य, स्टाफ मेम्बर्स, विद्यार्थीयों द्वारा संग्रहित की गई इको ब्रिक का रिकार्ड रखा जा सकेगा एवं इस परियोजना से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी इस एप के माध्यम से प्राप्त की जा सकेगी। यह एप्प गुगल प्ले स्टोर से निःशुल्क डाउनलोड किया जा सकता है एवं नोडल अधिकारी भी इको ब्रिक्स का विवरण इस एप पर दर्ज कर सकेंगे। इस एप के माध्यम से संग्रहित की गई इको ब्रिक्स का रिकार्ड रखना बहुत ही आसान हो जायेगा।
उन्होने बताया कि पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बीटीयू के द्वारा यह एक नई शुरूवात की गई है जिसके द्वारा इस परियोजना का डिजिटलीकरण इस एप के माध्यम से किया गया है जिसके फलस्वरूप इस परियोजना से संबंधित अधिकतर कार्य पेपरलेस हो जायेगा।
बीटीयू (बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय (Bikaner Technical University) के पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितिक संतुलन के प्रति तकनीकी शिक्षा) के कुलपति प्रो.एच.डी.चारण ने एप्प की सराहना करते हुए बताया की इको ब्रिक प्रोजेक्ट के अंतर्गत घरों में प्रयोग में आने वाली पालीथीन को इधर उधर फैंकने के बजाय इन्हें एक प्लास्टिक बोटल के अन्दर संकाय सदस्य की अधिकतम संग्रहण सीमा तक संग्रहित कर लिया जाता है। जिससे बोटल सख्त हो जाती है एवं यह काफी मजबूत एवं ठोस होती है। इसके उपरान्त इन इकोब्रिक्स का उपयोग घर और दीवार बनाने, सड़क निर्माण इत्यादि में किया जा सकता है। इस प्रकार से पालीथिन की समस्या से बिना पर्यावरण को हानि पहुंचाये निपटा जा सकता है।
कुलपति ने यह भी बताया की इस हेतु विश्वविद्यालय में समिति का गठन किया गया है जो इस कैम्पेन का प्रभावी मोनीटरिंग करेगी एवं विश्वविद्यालय के स्टाफ एवं विद्याथर््िायों को इस प्रोजक्ट से जुड़ने के लिए प्रेरित करेंगी। इसी के अन्तर्गत विश्वविद्यालय एवं सभी संगठित महाविद्यालय परिसर में इन इकोब्रिक्स को एकत्रित करने के लिए संग्रहण केन्द्र बनाये गये हैं जहाँ पर सभी स्टाफ के सदस्य एवं विद्यार्थी स्वयं द्वारा बनाई गई इकोब्रिक्स को एप के माध्यम से जमा करवा सकेगें है।
कुलपति प्रो. चारण ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण और पर्यावरण में बदलाव तेजी से हो रहे है। ऊर्जा की बड़े पैमाने पर खपत की वजह से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। वैकल्पिक मॉडल को अपनाकर पर्यावरण संकट से निपटने के उपाय खोजने होंगे। मानव समुदाय की सहभागिता से इस समस्या से निजात पाया जा सकता है। हम अगर हमारे चारों और देखे तो ईश्वर की बनाई इस अद्भुत पर्यावरण की सुंदरता देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है आज मानव ने अपनी जिज्ञासा और नई नई खोज की अभिलाषा में पर्यावरण के सहज कार्यो में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है जिसका परिणाम है की पर्यावरण संतुलन दिन-प्रितिदिन बिगड़ता जा रहा है। भारतीय संस्कृति पर्यावरण से संतुलन बनाकर जीने का संदेश देती है। पर्यावरण के लगातार हो रहे क्षरण, प्रदूषण एवं इकोलॉजिकल असंतुलन की भयावहता से आज सभी त्रस्त है।
कुलपति ने भारतीय प्राचीन ग्रंथों वेद, पुराण और उपनिषदों का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति पर्यावरण से तालमेल बिठा कर जीने का संदेश देती है। आज की समस्या अपनी सांस्कृतिक विरासत को भूलने की वजह से बढ़ रही है। इस योजना के प्रभावी क्रियान्वन हेतु प्रदेश के सभी सम्बद्ध महाविद्यालय और विद्यर्थियो को इस मुहिम से जोड़ा जा रहा है ताकि सभी पर्यावरण संरक्षण को लेकर अपने सामाजिक जिम्मेदारियों का एहसास कर सके।