@सुनील माथुर
कोटा। भारतीय जनता पार्टी (BJP) का शीर्ष नेतृत्व इन दिनों पार्टी छोडकर दूसरी पार्टियों में जाने वालों एवं स्वयं की पार्टी बनाने वाले नेताओं की वापस घर वापसी के प्रयासों में लगा हुआ है। ऐसे ही दो दिग्गज नेता है (Ghanshyam tiwari) पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाडी व (Manvendra Singh jasol) पूर्व सांसद मानवेन्द्र सिंह जसोल। यह दोनों ही (Former Chief Minister Vasundhara Raje) पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के धुर विरोधी है। जिन्होंने मेडम के कारण ही पार्टी छोड़ी थी। सूत्रों की मानें तो वर्तमान मे भाजपा के सक्रिय धड़े के साथ संघ तथा इससे जुड़े पार्टी पदाधिकारी चाहते हैं कि दोनों नेताओं समेत अन्य नेता जो कभी पार्टी में होते थे, उनकी वापसी होनी चाहिए। इन दिग्गजों में घनश्याम तिवारी और मानवेन्द्र सिंह जसोल को सर्वोपरि रखा गया हैं।
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पार्टी के इन दो पूर्व निष्ठावानों को वापस पार्टी में लाने के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व वसुंधरा राजे की मान मनोव्ल में जुटा हुआ है। पार्टी चाहती है कि वसुंधरा राजे की सहमति से ही इन दोनों नेताओं को वापस लिया जाये। पिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नढ्ढा व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी वसुंधरा राजे से इस बारे में विस्तार से चर्चा की है तथा दोनों नेताओं ने वसुंधरा राजे की नाराजगी दूर करते हुए इनकी वापसी के लिए अपनी हरी झंडी देने को कहा है। लेकिन पता चला है कि श्रीमती वसुंधरा राजे ने इस बारे में अपने पत्ते नहीं खोले है। पार्टी नेता भी जानते है कि यदि वसुंधरा राजे की सहमति के बिना इन्हें पार्टी में लाया गया तो वो पार्टी के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं रहेगा तथा पार्टी को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाडी, वसुंधरा राजे से उनको मंत्री नहीं बनाये जाने से नाराज थे, वहीं मानवेन्द्र सिंह अपने पिता का टिकट बाडमेर से काट दिये जाने व पिता को बगावत कर निर्दलीय चुनाव लडने के लिए मजबूर करने के लिए आहत थे। इसी कारण उन्होंने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थामा और कांग्रेस ने भी उन्हें हाथों लेते हुए विधानसभा चुनावों में झालरापाटन से वसुंधरा राजे के सामने ही चुनाव मैदान में उतार दिया और विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद उन्हे बाडमेर लोकसभा से पार्टी प्रत्याशी बना दिया। जहां उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। लेकिन उसके बाद से ही वो कांग्रेस पार्टी में अलग-थलग से ही पड़े हुए है। तब से ही वो वापस भाजपा में आने के प्रयास में लगे हुए है। वहीं भाजपा में वसुंधरा विरोधी भी उन पर डोरे डालने में जुटे है।
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तिवाडी इसलिए हो गए थे भाजपा से अलग
राजस्थान में भाजपा को स्थापित करने वाले नेताओं में घनश्याम तिवाडी भी शुमार रहे हैं। तिवारी लंबे समय तक विधायक रहे हैं और कई बार मंत्री भी रह चुके थे, लेकिन कद्दावर नेता और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के साथ उनकी नाराजगी थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत हासिल हुआ और वसुंधरा सीएम बनीं, लेकिन घनश्याम तिवाडी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई। सत्ता और संगठन में लगातार उपेक्षित रहे तिवारी ने आखिरकार सडक से लेकर सदन तक वसुंधरा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
फिर बनाई खुद की पार्टी
वसुंधरा के साथ नाराजगी के चलते तिवारी ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन छोड़ अपनी नई पार्टी भारत वाहिनी का ऐलान कर दिया। लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी कुछ असर नहीं दिखा पाई। भाजपा के साथ रहकर रिकॉर्ड मतों जीतने से वाले तिवारी खुद की पार्टी के बैनर पर बेहद सीमित मतों में सिमट गये। कभी कांग्रेस के कट्टर विरोधी रहे घनश्याम तिवाडी ने राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस का दामन थाम लिया। लेकिन, तब से लेकर अब तक तिवारी कांग्रेस में कभी सक्रिय नजर नहीं आए।
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पिता जसवंत सिंह के बाद मानवेन्द्र ने भी छोड़ दी थी पार्टी
इसी तरह मानवेन्द्र सिंह जसोल भी राजस्थान भाजपा में उपेक्षा के चलते पार्टी से अलग हो गए थे। भाजपा के संस्थापकों में शुमार जसवंत सिंह का पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में टिकट काट दिया तो वह निर्दलीय ही चुनाव मैदान में खड़े हो गए, जिसमें उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। जसवंत सिंह भाजपा में रहते हुए केन्द्र सरकार में रक्षा, विदेश और वित्त मंत्रालय की कमान संभाल चुके थे। जसवंत की बगावत के बाद उनके पुत्र पूर्व सांसद एवं तत्कालीन विधायक मानवेन्द्र सिंह जसोल पार्टी में काफी उपेक्षित रहे। इस उपेक्षा से आहत मानवेन्द्र ने भी 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन छोड़ दिया और कांग्रेस का हाथ थाम लिया।
दोनों चुनावों में देखना पड़ा हार का मुंह
कांग्रेस का दामन थामने के बाद पार्टी ने उन्हें झालरापाटन से पूर्व सीएम वसुधंरा राजे के सामने चुनाव में उतार दिया। लेकिन मानवेन्द्र वसुंधरा से चुनाव हार गये। बाद में कांग्रेस ने उनको लोकसभा चुनाव में उनकी परंपरागत बाड़मेर, जैसलमेर संसदीय सीट से मैदान में उतारा, लेकिन वहां भी उनको सफलता नहीं मिली।
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