वस्‍त्र निर्यात की छूट योजना में असंतुलन से परिधान और वस्‍त्र उद्योग की प्रतिस्‍पर्धा हो रही प्रभावित

Imbalance in Rebate Scheme of Garment Export Eroding Competitiveness of Apparel and Garment Industry

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Imbalance in Rebate Scheme of Garment Export Eroding Competitiveness of Apparel and Garment Industry

जयपुर। राजस्‍थान वस्‍त्र और परिधान का सबसे बड़ा विनिर्माता है और राज्‍य का वस्‍त्र निर्माण उद्योग (Garment Industry) कुल 2,500 करोड़ रुपए का है। भारत में जयपुर एक प्रमुख परिधान निर्माण के केंद्र के रूप में उभरा है।

उद्योग (Industry) के अनुमान के मुताबिक, वर्तमान में 2 लाख मशीने प्रतिदिन 20 लाख पीस बना रही हैं, जिनका मूल्‍य 5 करोड़ रुपए दैनिक है। मौजूदा समय में यह उद्योग अकेले (Jaipur) जयपुर में 5 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है।

भारत वर्तमान में 44 अरब डॉलर से अधिक का निर्यात करता है जिसमें से 16 अरब डॉलर का निर्यात परिधान और वस्‍त्र से जुड़ा है। बड़ी मात्रा में निर्यात के अलावा ये उद्योग करीब 4.5 करोड़ श्रमिकों को रोजगार देता है और 2029 तक इस उद्योग के 209 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है।

हालांकि, परिधान निर्यातक रिबेट ऑफ स्‍टेट एंड सेंट्रल टैक्‍सेस एंड लेवी (RoSCTL) के कारण अपने मार्जिन में हो रहे 15 प्रतिशत नुकसान को लेकर काफी चिंतित हैं। इसके परिणामस्‍वरूप,

राजस्थान के परिधान निर्यातकों को भी देश भर के अन्‍य निर्यातकों के समान निर्यात प्रतिस्पर्धा में गिरावट आने की आशंका सता रही है।

RoSCTL को भारत के कपड़ा उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाने और इसके निर्यात को मजबूत करने के इरादे से शुरू किया गया था। हालांकि, सितंबर 2021 में इस योजना में कुछ बदलाव किए गए और इसका मौजूदा स्वरूप अब घरेलू कपड़ा उद्योग के निर्यात मार्जिन को कम कर रहा है।

ये बदलाव सरकार के निर्यातकों को फायदा पहुंचाने की मंशा के खिलाफ काम कर रहे हैं और इसके बजाय आयातकों को फायदा पहुंचा रहे हैं। ये बदलाव दुनिया के लिए ‘मेक इन इंडिया’ की सरकार की घोषित नीति को बढ़ावा देने की इस पूरी योजना के उद्देश्य और मंशा पर ही पानी फेर रहे हैं।

विमल शाह, अध्‍यक्ष, गारमेंट एक्‍सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ राजस्‍थान (GEAR) ने कहा, “कपड़ा उद्योग चाहता है कि सरकार लेनदेन योग्‍य स्क्रिप्‍स के बजाय नकद प्रतिपूर्ति योजना को फि‍र से शुरू करे, क्‍योंकि इन स्क्रिप्‍स का लेनदेन 20 प्रतिशत छूट पर हो रहा है।

इन स्क्रिप को निर्यातकों द्वारा आयातकों को बेचा जाता है, जो अपने आयात शुल्‍क का भुगतान नकद आयात शुल्‍क के विकल्‍प के तौर पर इन खरीदी गई स्क्रिप के माध्‍यम से कर सकते हैं। इसके परिणामस्‍वरूप निर्यातकों से आयातकों को पर्याप्‍त नकद हस्‍तांतरण हो रहा है।”

विजय जिंदल, सदस्‍य, एक्‍सपोर्ट प्रमोशन, एईपीसी और अध्‍यक्ष, GEMA ने कहा “RoSCTL योजना निर्यातकों द्वारा इनपुट पर पहले से भुगतान किए गए करों, लेवी आदि के लिए छूट प्रदान करती है। इस छूट को अब उन स्क्रिप्‍स में बदल दिया गया है, जिनकी खरीद-बिक्री की जा सकती है।

यानी निर्यातक अपनी स्क्रिप्‍स को आयातकों को बेच सकते हैं और आयातक, बदले में आयात शुल्‍क के नकद भुगतान के विकल्‍प के तौर पर इन खरीदे गए स्क्रिप के साथ अपने आयात शुल्‍क का भुगतान कर सकते हैं।

हालांकि ये पहले भी छूट के साथ खरीदे जाते थे, लेकिन अब छूट 3 प्रतिशत से बढ़कर करीब 20 प्रतिशत हो गई है। स्क्रिप पर इतने ज्‍यादा डिस्‍काउंट से आयातकों को तो फायदा हो रहा है, जो निर्यातकों की कीमत पर अनुचित लाभ उठा रहे हैं।”

एक अनुमान के मुताबिक, 16 अरब डॉलर के कुल परिधान निर्यात में करीब 5 प्रतिशत की प्रतिपूर्ति होती है, जो लगभग 6,000 करोड़ रुपए बनती है। व्‍यापक स्‍तर पर, इस पर 20 से 25 प्रतिशत डिस्‍काउंट दिया जाता है, इससे परिधान क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के मार्जिन पर लगभग 1,500 करोड़ रुपए का सीधा असर पड़ता है।

इस योजना का उद्देश्‍य भारत के कपड़ा क्षेत्र को अन्‍य कम लागत वाले देशों जैसे बांग्‍लादेश और वियतनाम (कम श्रम और विनिर्माण लागत के कारण) के साथ प्रतिस्‍पर्धी बनाना था। मांग सरकार की मंशा के अनुरूप रही है, जो हमेशा निर्यातकों को प्रतिपूर्ति करने की थी, लेकिन स्क्रिप के डिस्‍काउंट के कारण, इस पूरी योजना का उद्देश्‍य और लक्ष्‍य विफल हो गया है।

अपने मौजूदा स्‍वरूप में, स्किप पर डिस्‍काउंट से आयातकों को लाभ हो रहा है, जो निर्यातकों की कीमत पर अनुचित फायदा उठा रहे हैं। यह दुनिया के लिए ‘मेक इन इंडिया’ की सरकार की घोषित नीति को बढ़ावा देने के बजाय इस पूरी योजना के उद्देश्य और लक्ष्‍यों पर ही पानी फेर दे रहा है।

अगर सरकार तत्‍काल RoSCTL की संरचना में संशोधन नहीं करती है, तो चिंता है कि लागत अक्षमताओं के कारण उद्योग अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त खो सकता है। सरकार से उचित मदद न मिलने के कारण एक बार फिर परिधान मांग को अन्य कम लागत वाले देशों में स्थानांतरित कर देगी।

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