हरिशयनी एकादशी : भगवान श्रीहरि के दर्शन-पूजन व व्रत से होगी मनोकामना पूरी

Harishayani Ekadashi 2022 : Devshayani Ekadashi importance and Significance

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Harishayani Ekadashi 2022 : Devshayani Ekadashi importance and Significance

— ज्योर्तिविद् विमल जैन

Harishayani Ekadashi 2022 : भारतीय सनातन परम्परा के हिन्दू धर्मग्रन्थों में हर माह की एकादशी तिथि भगवान श्रीविष्णुहरि को समर्पित है। भारतीय सनातन धर्म के अनुसार हिन्दू पंचांग में एकादशी तिथि (Harishayani Ekadashi) अपने आप में अनूठी मानी गई है। आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि देवशयनी, (Devshayani Ekadashi) हरिशयनी (Harishayani Ekadashi) या पद्मा एकादशी तिथि के रूप में मनाने की धार्मिक परम्परा है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता सो जाते हैं, जिससे देवशयनी एकादशी कहा जाता है। आज के दिन से भगवान् श्रीविष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में प्रस्थान कर शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में लीन हो विश्राम करते हैं। इसके साथ ही समस्त मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है।

इस तिथि को व्रत उपवास रखकर भगवान् श्रीविष्णु की पूजा-अर्चना करने की विशेष महिमा है। आज के दिन घर में तुलसी का पौधा लगाने से यमदूत का भय खत्म हो जाता है।

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ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार हरिशयनी या देवशयनी एकादशी तिथि 10 जुलाई, रविवार को पड़ रही है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 9 जुलाई, शनिवार की सायं 4 बजकर 40 मिनट पर लगेगी जो कि 10 जुलाई, रविवार को दिन में 2 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। हरिशयनी एकादशी का व्रत 10 जुलाई, रविवार को रखा जाएगा

इसी दिन से चातुर्मास्य के यम-नियम-संयम एवं व्रत प्रारम्भ हो जायेंगे जो कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की देव प्रबोधिनी एकादशी 4 नवम्बर, शुक्रवार तक रहेंगे। चातुर्मास्य की अवधि चार मास की होती है। चातुर्मास्य में समस्त मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। जबकि धार्मिक अनुष्ठान विधि-विधानपूर्वक परम्परा के अनुसार सम्पन्न होते रहते हैं।

Harishayani Ekadashi 2022 Puja Vidhi  : पूजा का विधान

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को अपने दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान के पश्चात् हरिशयनी एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत का संकल्प दशमी तिथि या एकादशी तिथि के दिन प्रात:काल लिया जाता है।

हरिशयनी एकादशी पर व्रत व उपवास रखकर भगवान् श्रीहरि विष्णु की पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा-अर्चना करके भगवान श्रीविष्णु की कृपा प्राप्त करनी चाहिए। पूजा-अर्चना के उपरान्त अपने सामर्थ्य के अनुसार दान-पुण्य करना चाहिए। जिसके अन्तर्गत स्वर्ण, रजत, नूतन वस्त्र, ऋतुफल, मेवा-मिष्ठान्न व नगद द्रव्य आदि सुपात्र ब्राह्मण को दान देना अत्यन्त शुभ फलदायी माना गया है।

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Harishayani Ekadashi : श्रीविष्णु उपासकों के लिए विशेष

श्रीविष्णु उपासक साधु, सन्त व साधक को आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानि देवशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र कुछ भी ग्रहण करने से बचना चाहिए। चातुर्मास्य की अवधि में गुड़, तेल, शहद, मूली, परवल, बैंगन व साग-पात नहीं ग्रहण करना चाहिए और अन्यत्र (अपने परिवार के अतिरिक्त) से प्राप्त दही-भात बिल्कुल नहीं खाना चाहिए।

चातुर्मास्य के व्रत का पालन करने वालों को अन्यत्र भ्रमण नहीं करना चाहिए, एक ही स्थान पर रहकर देव-अर्चना करनी चाहिए। इस अवधि में ब्रह्मचर्य का पूर्ण नियम रखना चाहिए।

भगवान् श्रीविष्णु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति एवं उनकी प्रसन्नता के लिए एकादशी तिथि की रात्रि में मौन रहकर रात्रि जागरण करना चाहिए तथा भगवान् श्रीविष्णु के मन्त्र ‘ॐ ‘ नमो नारायण’ या ‘ॐ ‘नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित रूप से अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए।

भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना कर पुण्य अ​र्जित करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य में अभिवृद्धि बनी रहे।

मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए।

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(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)

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