Diwali 2022 : दीपों का महापर्व दीपावली पर महालक्ष्मी-श्रीगणेश की आराधना से मिलेगी सुख-समृद्धि, जाने पांच दिनों के मुहूर्त

Diwali 2022 : Dhanteras Narak Chaturdashi Laxmi Puja Gowardhan Puja Bhai Dhooj Subh Muhurat or Diwali

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Diwali 2022 : Dhanteras Narak Chaturdashi Laxmi Puja Gowardhan Puja Bhai Dhooj Subh Muhurat or Diwali

@ज्योर्तिविद् विमल जैन

Diwali 2022 : दीपावली (Dipawali) पर्व भारतीय संस्कृति में मनाया जानेवाला विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय पर्व है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी (धनतेरस) से कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि (भैयादूज) तक मनाया जाता है।

इस बार यह पंच दिवसीय महापर्व 23 अक्टूबर, रविवार से 27 अक्टूबर, गुरुवार तक मनाया जाएगा। दीपावली का खास पर्व कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को हर्षाेल्लास के साथ मनाया जाता है, जबकि (Dhanteras) धनतेरस कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को।

इस बार धनतेरस 23 अक्टूबर, रविवार को है जबकि(Diwali)  दीपावली पर्व 24 अक्टूबर, सोमवार को हर्ष-उमंग-उल्लास के साथ पारिवारिक व धार्मिक विधि-विधानपूर्वक मनाया जाएगा।

Diwali 2022: भगवान श्री धन्वन्तरि जयन्ती/धनतेरस (23 अक्टूबर, रविवार)

दीपावली पर्व का शुभारम्भ धनतेरस से हो जाता है। इस बार 23 अक्टूबर, रविवार, कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व उमंग-उल्लास-आनन्द के साथ मनाया जाएगा। त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर, शनिवार की सायं 6 बजकर 03 मिनट पर लगेगी, जो कि अगले दिन 23 अक्टूबर, रविवार को सायं 6 बजकर 04 मिनट तक रहेगी। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र 22 अक्टूबर, शनिवार की दिन में 1 बजकर 50 मिनट पर लगेगा जो कि 23 अक्टूबर, रविवार को दिन में 2 बजकर 34 मिनट तक रहेगा तत्पश्चात् हस्त नक्षत्र प्रारम्भ हो जाएगा।

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Dhanteras : धन तेरस पर श्री धन्वन्तरि का जन्म महोत्सव

धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता आयुर्वेद शास्त्र के जनक श्री धन्वन्तरि का जन्म महोत्सव भी धूम-धाम से मनाया जाता है। धन्वन्तरि जी को भगवान श्रीविष्णुजी के अवतार के रूप में धार्मिक मान्यता प्राप्त है। भगवान् श्री धन्वन्तरि अमृत मन्थन के समय अपने हाथ में औषधियों का कलश लेकर उपस्थित हुए थे। कलश की अवधारणा को लेकर नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। बर्तन के अतिरिक्त नवीन वस्त्र एवं आभूषण, रजत व स्वर्ण के बर्तन तथा सिक्ड्ढके खरीदने से लक्ष्मी का स्थायी निवास माना गया है।

Diwali -Dhanteras : धनतेरस पर करें दीपदान

धनतेरस से पाँच दिन तक सायंकाल प्रदोषकाल में घर के प्रवेश द्वार के बाहर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर दीपदान करने से यमराज भी प्रसन्न होते हैं। प्रदोषकाल में घर के प्रवेश द्वार के बाहर दक्षिणाभिमुख दीपक जलाने पर अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।

Narak Chaturdashi on Diwali : नरक चतुर्दशी ‘रूप चतुर्दशी’, छोटी दीपावली एवं श्रीहनुमान जयन्ती (14 नवम्बर, शनिवार)

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी या रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह पर्व 24 अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 23 अक्टूबर, रविवार को सायं 6 बजकर 04 मिनट से 24 अक्टूबर, सोमवार को सायं 5 बजकर 28 मिनट तक रहेगी।

आज सायंकाल सूर्यास्त के पश्चात् प्रवेश द्वार के बाहर सरसों के तेल का चौमुखा (चार बत्तियों वाला) दीपक दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जलाकर रखना चाहिए। दीपक की ज्योति दक्षिण दिशा की ओर होनी चाहिए। कहीं-कहीं पर रीति-रिवाज के मुताबिक आटे का चौमुखा दीपक बनाकर उसे तेल से भरकर चार बत्ती लगाकर जलाने की भी परम्परा है।

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कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को सायंकाल मेष लग्न में श्रीहनुमान जी का जन्म माना जाता है। आज के दिन व्रत उपवास रखकर भक्तिभाव से श्री हनुमान जी की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा-अर्चना की जाती है। मेष लग्न सायं 04 बजकर 58 मिनट से सायं 06 बजकर 36 मिनट तक है।

पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग में नरकासुर नामक राक्षस ने देवताओं और मनुष्यों को बहुत परेशान कर रखा था। उसके आक्रान्त से सभी लोग दुखी थे। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर राक्षस को यमलोक पहुँचाया था। उसी के फलस्वरूप नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है।

Diwali Laxmi ji Ganesh ji Puja : श्रीगणेश-लक्ष्मी एवं दीपपूजन (24 अक्टूबर, सोमवार)

दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त:
दीपोत्सव का महापर्व दीपावली के दिन हर्षाेल्लास के साथ 24 अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा। शुभ मुहूर्त में की गई पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि-वैभव एवं ऐश्ड्ढवर्य में वृद्धि होती है। पूजन के लिए प्रदोषकाल, स्थिर लग्न एवं निशीथ काल विशेष लाभकारी रहता है।

कार्तिक कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि 24 अक्टूबर, सोमवार की सायं 5 बजकर 28 मिनट से 25 अक्टूबर, मंगलवार की सायं 4 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। चित्रा नक्षत्र 24 अक्टूबर, सोमवार को दिन में 2 बजकर 42 मिनट से 25 अक्टूबर, मंगलवार को दिन में 2 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। सिंह लग्न 24 अक्टूबर, सोमवार को अर्द्धरात्रि 01 बजकर 04 मिनट से अर्द्धरात्रि के पश्चातड्ढ 03 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।

इस पर्व पर मुख्यतः भगवती श्रीलक्ष्मीजी-श्रीगणेशजी की पूजा अर्चना की जाती है। शुभ मुहूर्त में की गई पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि-वैभव में वृद्धि होती है। पूजन के लिए प्रदोषकाल व स्थिरलग्न विशेष लाभकारी रहता है।

Diwali Subh Muhurat : शुभ और अमृत चौघडिय़ा

शुभ और अमृत चौघडिय़ा अर्द्धरात्रि 02 बजकर 53 मिनट से सूर्याेदय काल तक है। दीपावली के दिन प्रदोषकाल सायंकाल 05 बजकर 23 मिनट से रात्रि 07 बजकर 55 मिनट तक है। इस अवधि में स्थिर लग्ड्ढन ‘वृषभ’ सायंकाल 06 बजकर 36 मिनट से रात्रि 08 बजकर 32 मिनट तक है। यह समय पूजा-अर्चना के लिए श्रेष्ठ है।

इस बार अमावस्या तिथि 25 अक्टूबर, मंगलवार की सायं 4 बजकर 19 मिनट तक है। पूजा के लिए महानिशीथकाल 24 अक्टूबर, सोमवार की रात्रि 11 बजकर 20 मिनट से रात्रि 12 बजकर 11 मिनट तक है।

सामान्यतया श्रीलक्ष्मी-गणेश व दीपक के साथ समस्त देवी-देवताओं श्रीमहाकाली, श्रीमहासरस्वती, श्रीमहालक्ष्मी व कुबेरजी का पूजन कार्यस्थलों एवं घरों में सायंकाल से ही शुरू हो जाती है, जो रात्रिपर्यन्त चलती है। जिसमें देवी-देवताओं की महिमा में मन्त्र स्तोत्र आदि का पाठ करके रात्रि जागरण करते हैं।

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Gowardhan Puja on Diwlai : अन्नकूट महोत्सव (26 अक्टूबर, बुधवार)

दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को देवालयों में अन्नकूट महोत्सव मनाने की परम्परा है। प्रतिपदा तिथि 25 अक्टूबर, मंगलवार की सायं 4 बजकर 19 मिनट से 26 अक्टूबर, बुधवार को दिन में 2 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। आज देवालयों को आकर्षक व मनमोहक ढंग से सजाकर विविध प्रकार के मिष्ठान्न नैवेद्य के तौर पर अर्पित किया जाता है।

भैयादूज/यम द्वितीया/भगवान चित्रगुप्त जयन्ती (27 अक्टूबर, गुरुवार)

भाई-बहन के स्नेह का पर्व भैयादूज कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को यम का पूजन किया जाता है, जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। 27 अक्टूबर, गुरुवार को यह पर्व मनाया जायेगा।

ज्योर्तिविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार द्वितीया तिथि 26 अक्टूबर, बुधवार को दिन में 2 बजकर 43 मिनट से 27 अक्टूबर, गुरुवार को दिन में 12 बजकर 46 मिनट तक रहेगी। भैया दूज के दिन भाई बहन के घर जाकर उसके हाथ से बना भोजन ग्रहण करता है।

आज बहनें रीति-रिवाज के मुताबिक अपने भाइयों को टीका लगाकर उनके दीर्घायु व शुभ मंगल की कामना करती हैं, जिससे भगवती लक्ष्मीजी की कृपा से सुख-समृद्धि, खुशहाली प्राप्त रहे। इस सुअवसर पर भाई-बहन एक दूसरे को उपहार प्रदान करते हैं।

आज के दिन भगवान चित्रगुप्त जी एवं कलम दवात की भी पूजा-अर्चना करने की धार्मिक मान्यता है।

विशेष पंचदिवसीय महापर्व अपने पारिवारिक परम्परा व रीति-रिवाज के अनुसार ही मनाना चाहिए।

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तिलक लगाने से मिलती है सफलता, राहु-केतु और शनि के अशुभ प्रभाव को करता है कम

(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी) 

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