Bach baras 2021: बछ बारस पुत्र की दीर्घायु के लिए महिलाएं करती है बछबारस

Bach baras 2021: Bachh Baaras when is gauvats dwadashi know the katha and vrat significance

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Bach baras 2021: 4 सितम्बर को बछबारस गोवत्स द्वादशी, शनि प्रदोष

पुष्य नक्षत्र में बछ बारस और शनि प्रदोष 4 सितम्बर 2021 को मनाया जाएगा। इस दिन गौमाता की बछड़े सहित पूजा की जाती है। माताएं अपने पुत्रों को तिलक लगाकर तलाई फोड़ने के बाद लड्डू का प्रसाद देती है यानि पुत्रवान महिलाये अपने पुत्र की मंगल कामना के लिए व्रत रखती है और पूजा करती है।

पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर – जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि इस दिन गेंहू से बने हुए पकवान और चाकू से कटी हुई सब्जी नही खाये जाते हैं। बाजरे या ज्वार का सोगरा और अंकुरित अनाज की कढ़ी व सूखी सब्जी बनाई जाती है।

महिलाओं द्वारा सुबह गौमाता की विधिवत पूजा अर्चना करने के बाद घरों या सामूहिक रूप से बनी मिट्टी व गोबर से बनी तलैया को अच्छी तरह सजाकर उसमें कच्चा दूध और पानी भरकर उसकी कुमकुम, मौली, धूप दीप प्रज्वलित कर पूजा करते हैं और बछबारस की कहानी सुनी जाती है।

महिलाओं द्वारा सुबह गौमाता की विधिवत पूजा अर्चना करने के बाद घरों या सामूहिक रूप से बनी मिट्टी व गोबर से बनी तलैया को अच्छी तरह सजाकर उसमें कच्चा दूध और पानी भरकर उसकी कुंकुम, मौली, धूप दीप प्रज्वलित कर पूजा करते हैं और बछबारस की कहानी सुनी जाती है।

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि भगवान शिव की आराधना के लिए प्रदोष व्रत को उत्तम माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक एक माह में दो बार प्रदोष व्रत आते हैं।

एक प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष में आता है तो दूसरा प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष में आता है। फिलहाल कृष्ण पक्ष चल रहा है और भाद्रपद महीने का पहला प्रदोष व्रत शनिवार के दिन होने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत भी कहा जाता है।

बछ बारस प्रतिवर्ष जन्माष्टमी के चार दिन पश्चात भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन 4 सितम्बर को मनाया जाता है इसलिए इस गोवत्स द्वादशी भी कहते है।

भगवान कृष्ण के गाय और बछड़ो से बड़ा प्रेम था इसलिए इस त्यौहार को मनाया जाता है और ऐसा माना जाता है की बछ बारस के दिन गाय और बछड़ो की पूजा करने से भगवान कृष्ण सहित गाय में निवास करने वाले सैकड़ो देवताओ का आशीर्वाद मिलता है जिससे घर में खुशहाली और सम्पन्नता आती है।

बछबारस का पर्व राजस्थानी महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय है। शनि प्रदोष पूजा शुभ मुहूर्त भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ शनिवार 04 सितंबर को सुबह 08.24 मिनट पर होगा और इसका समापन 05 सितंबर को प्रात: 08.21 मिनट पर होगा।

ऐसे में भाद्रपद माह का पहला प्रदोष व्रत 04 सितंबर को ही रखा जाएगा। इस दिन शनि प्रदोष की पूजा के लिए 02 घंटा 16 मिनट का मुहूर्त रहेगा। शनि प्रदोष व्रत की पूजा करने वाले श्रद्धालुओं को 4 सितंबर को शाम को 06.39 मिनट से रात 08.56 मिनट के बीच पूजा कर लेनी चाहिए।

धार्मिक व पौराणिक महत्व पौराणिक मान्यता है कि प्रदोष व्रतों में शनि प्रदोष व्रत का महत्व ज्यादा होता है। शनि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति पर शिव और शक्ति दोनों की कृपा प्राप्त होती है और संतान की प्राप्ति होती है। निसंतान दंपत्तियों को शनि प्रदोष व्रत करने का विशेष लाभ होता है।

बछबारस पूजन की सामग्री और पूजा विधि भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि पूजा के लिए भैंस का दूध और दही , भीगा हुआ चना और मोठ ले। मोठ-बाजरे में घी और चीनी मिलाये।गाय के रोली का टीका लगाकर चावल के स्थान पर बाजरा लगाये।

बायने के लिए एक कटोरी में भीगा हुआ चना , मोठ ,बाजरा और रुपया रखे। इस दिन बछड़े वाले गाय की पूजा की जाती है यदि गाय की पूजा नही कर सकते तो एक पाटे पर मिटटी से बछबारस बनाते है और उसके बीच में एक गोल मिटटी की बावडी बनाते है।

फिर उसको थोडा दूध दही से भर देते है। फिर सब चीजे चढाकर पूजा करते है। इसके बाद रोली ,दक्षिण चढाते है। स्वयम को तिलक निकालते है। हाथ में मोठ और बाजरे के दाने को लेकर कहानी सुनाते है। बछबारस के चित्र की पूजा भी की जा सकती है।

बछबारस की कहानी विख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में एक साहूकार अपने सात बेटो और पोतो के साथ रहता था। उस साहूकार ने गाँव में एक तालाब बनवाया था लेकिन बारह सालो तक वो तालाब नही भरा था।

तालाब नही भरने का कारण पूछने के लिए उसने पंडितो को बुलाया। पंडितो ने कहा कि इसमें पानी तभी भरेगा जब तुम या तो अपने बड़े बेटे या अपने बड़े पोते की बलि दोगे। तब साहूकार ने अपने बड़ी बहु को तो पीहर भेज दिया और पीछे से अपने बड़े पोते की बलि दे दी। इतने में गरजते बरसते बादल आये और तालाब पूरा भर गया।

इसके बाद बछबारस आयी और सभी ने कहा की “अपना तालाब पूरा भर गया है इसकी पूजा करने चलो”।साहूकार अपने परिवार के साथ तालाब की पूजा करने गया।वह दासी से बोल गया था की गेहुला को पका लेना।गेहुला से तात्पर्य गेहू के धान से है। दासी समझ नही पाई। दरअसल गेहुला गाय के बछड़े का नाम था।

उसने गेहुला को ही पका लिया। बड़े बेटे की पत्नी भी पीहर से तालाब पूजने आ गयी थी। तालाब पूजने के बाद वह अपने बच्चो से प्यार करने लगी तभी उसने बड़े बेटे के बारे में पुछा।

तभी तालाब में से मिटटी में लिपटा हुआ उसका बड़ा बेटा निकला और बोला की माँ मुझे भी तो प्यार करो।तब सास बहु एक दुसरे को देखने लगी। सास ने बहु को बलि देने वाली सारी बात बता दी। फिर सास ने कहा की बछबारस माता ने हमारी लाज रख ली और हमारा बच्चा वापस दे दिया।

तालाब की पूजा करने के बाद जब वह वापस घर लौटे तो उन्होंने देखा बछड़ा नही था। साहूकार ने दासी से पूछा की बछड़ा कहा है तो दासी ने कहा कि “आपने ही तो उसे पकाने को कहा था”।

साहूकार ने कहा की “एक पाप तो अभी उतरा ही है तुमने दूसरा पाप कर दिया “। साहूकार ने पका हुआ बछड़ा मिटटी में दबा दिया। शाम को गाय वापस लौटी तो वह अपने बछड़े को ढूंढने लगी और फिर मिटटी खोदने लगी। तभी मिटटी में से बछड़ा निकल गया। साहूकार को पता चला तो वह भी बछड़े को देखने गया। उसने देखा कि बछडा गाय का दूध पीने में व्यस्त था।

तब साहूकार ने पुरे गाँव में यह बात फैलाई कि हर बेटे की माँ को बछबारस का व्रत करना चाहिए और तालाब पूजना चाहिए। हे बछबारस माता ! जैसा साहूकार की बहु को दिया वैसा हमे भी देना।कहानी कहते सुनते ही सभी की मनोकामना पूर्ण करना। इसके बाद गणेश जी की कहानी कहे।

बायना निकालना विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि एक कटोरी मोंठ ,बाजरा रखकर उसके उपर रुपया रख देवे। इनको रोली और चावल से छींटा देवे।दोनों हाथ जोडकर कटोरी को पल्ले से ढककर चार बार कटोरी के उपर हाथ फेर ले। फिर स्वयम के तिलक निकाले। यह बायना सांस को पाँव छुकर देवे।

बछबारस के दिन बेटे की माँ बाजरे की ठंडी रोटी खाती है। इस दिन भैंस का दूध ,बेसन ,मोंठ आदि खा सकते है। इस दिन गाय का दूध , दही ,गेहू और चावल नही खाया जाता है।

उद्यापन

विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि जिस साल लड़का हो या जिस साल लडके की शादी हो उस साल बछबारस का उद्यापन किया जाता है। सारी पूजा हर वर्ष की तरह करे। सिर्फ थाली में सवा सेर भीगे मोठ बाजरा की तरह कुद्दी करे। दो दो मुट्ठी मोई का (बाजरे की आटे में घी ,चीनी मिलाकर पानी में गूँथ ले ) और दो दो टुकड़े खीरे के तेरह कुडी पर रखे। इसके उपर एक तीयल (दो साडीया और ब्लाउज पीस ) और रुपया रखकर हाथ फेरकर सास को छुकर दे। इस तरह बछबारस का उद्यापन पूरा होता है।

महत्व

विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि यह पर्व पुत्र की मंगल-कामना के लिए किया जाता है। इस पर्व पर गीली मिट्टी की गाय, बछड़ा, बाघ तथा बाघिन की मूर्तियां बनाकर पाट पर रखी जाती हैं तब उनकी विधिवत पूजा की जाती है। भारतीय धार्मिक पुराणों में गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कहीं गई है।

पूज्यनीय गौमाता हमारी ऐसी मां है, जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ. गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है, जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।

ऐसी मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ खुश करना है तो गौभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है। गौ माता को बस एक ग्रास खिला दो, तो वह सभी देवी-देवताओं तक अपने आप ही पहुंच जाता है।

भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं।

इसीलिए बछ बारस या गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है। इस दिन घरों में विशेष कर बाजरे की रोटी जिसे सोगरा भी कहा जाता है और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है. इस दिन गाय की दूध की जगह भैंस या बकरी के दूध का उपयोग किया जाता है।

 

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