जयपुर। राजस्थान सरकार (Rajasthan Government) के मंत्री और विधायक पांच तारा होटलों (Five Star Hotels) में आराम कर रहे हैं। वहीं प्रदेश पानी किल्लत से जूझ रहा है। मनुष्य तो जैसे तेसै पानी का इंतजाम कर रहे हैं, लेकिन मूक प्राणी पानी के अभाव में काल का ग्रास बन रहे हैं। विशेषकर रेगिस्तानी क्षेत्र में ऊंटों स्थिति बहुत खराब है।
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बायतु विधानसभा क्षेत्र के खोखसर बागथल गांव में पानी की टोह में भटकते हुए एक ऊंट ने खैल (पानी का टांका) पर पहुंचकर प्राण त्याग दिए। क्योंकि खैल में एक बूंद भी पानी नहीं था। इससे पहले भी निम्बाणियों की ढाणी के पास स्कूल के आगे इसी तरह दो ऊंटों की पानी के अभाव मौत हो चुकी है।
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ग्रामीणों के अनुसार क्षेत्र में ऊंट ही नहीं पानी के अभाव में गोवंश भी इसी तरह धौरों में भटकते मर रहा है। ऊंट के मरने का वीडियो सोशल मीडिया खूब वायरल हुआ है। लोग सरकार, मंत्री, सांसद और विधायकों से ट्विटर पर खूब प्रश्न कर रहे हैं। आखिर पेयजल की किल्लत को लेकर समाधान क्यों नहीं हो रहा है। मूक प्राणियों के लिए सरकार की ओर से क्या प्रबंध किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है ऊंट राजस्थान का राजकीय पशु है। बावजूद प्रदेश में ऊंटों की तस्करी होती रही है।
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सोशल मीडिया उपयोग कर्ताओं ने ट्विटर पर #राज्यपशुकोन्यायदो नाम से एक अभियान भी चलाया है। मुख्यमंत्री और सरकार को टैग करके संदेश भेजे रहे हैं। ट्विटर उपयोगकर्ता जगदीश राम जाखड़ ने लिखा हैं- अब तक हजारो लोगो ने ऊंट पर पोस्ट कर संवेदना जताई। लेकिन अभी तक एक भी नेता ने नैतिक जिम्मेदारी लेना तो दूर की बात संवेदना तक नही जताई।
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जीवराज भांबू ने लिखा हैं- “राजस्थान का राज्य पशु ऊंट प्यास से तड़प तड़प कर मर गया लेकिन राज्य के सीएम को कोई मतलब नही है ऊंट मरे तो मरे। राज्य सरकार विधायकों के बाड़े बंदी में व्यस्त है।
कालूराम सजनानी नाम के हैंडिल से लिखा गया है- हमारे नेता मौज से मदिरा, मांस-भक्षण, सुंदरता और व्यसन पर सरकारी पैसे खर्च करके मौज करेगे अगर कोई बेजुबान पशु प्यास से तड़प तड़प कर मर जाये, तो ये सिर्फ देखते रहंगे ओर अपनी रास लीला में व्यस्त रहेंगे इनको कोई फर्क नही पड़ता।
पीपुल फॉर एनिमल्स के प्रदेश प्रभारी बाबूलाल जाजू कहते हैं- सरकार ने ऊंट को पर्यटन का अंग तो बना लिया लेकिन इसके संरक्षण के उपाय नहीं किए। जंगलों में बने वन विभाग के कई टांके भी सूखे है, इसलिए पैंथर व अन्य जंगली जानवर भी भोजन- पानी की तलाश में गांवों में काल का ग्रास बन रहे हैं। सरकार को राजनीति छोड़कर मूक प्राणियों की व्यवस्था करनी चाहिए।
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