तेरापंथ धर्मसंघ की विशिष्ट विभूति थीं साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा: आचार्य महाश्रमण

Sadhvipramukha Kanakaprabha was the distinctive personality of Terapanth Dharmasangh: Acharya Mahashraman

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Sadhvipramukha Kanakaprabha was the distinctive personality of Terapanth Dharmasangh: Acharya Mahashraman

नई दिल्ली। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की विशिष्ट विभूति, शासनमाता, असाधारण साध्वीप्रमुखा साध्वी कनकप्रभाजी की स्मृति सभा का आयोजन अध्यात्म साधना केन्द्र के वर्धमान समवसरण में रविवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में हुआ। शासनमाता की स्मृति सभा में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया तथा दिल्ली विधानसभाध्यक्ष श्री रामविलास गोयल सहित अनेकानेक गणमान्य लोगों की उपस्थिति के अलावा सम्पूर्ण तेरापंथ धर्मसंघ उपस्थित था।

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अध्यात्म साधना केन्द्र परिसर का भव्य वर्धमान समवसरण परिसर आज कार्यक्रम के प्रारम्भ होने से पूर्व ही जनाकीर्ण हो गया था। सम्पूर्ण तेरापंथ धर्मसंघ आज कई राजनैतिक गणमान्यों की भी उपस्थिति थी। संतवृंद, साध्वीवृंद, समणीवृंद तथा मुमुक्षु बहनों की मौजूदगी आज की विशिष्टता को दर्शा रहा था। निर्धारित समय पर अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी मंचासीन हुए और महामंत्रोच्चार किया। इसके साथ ही शासनमाता की स्मृति सभा का शुभारम्भ हो गया। अनेकानेक साधु-साध्वियों ने अपनी श्रद्धासिक्त भावांजलि अर्पित की। मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी व मुख्यमुनि मुनि महावीरकुमारजी ने भी अपनी श्रद्धासिक्त श्रद्धांजलि समर्पित की।

आचार्यश्री ने उपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जन्म लेता है, जीवन व्यतीत करता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार कुश के अग्र भाग पर लटकती ओस की बूंद कब टपक जाती है, उसी प्रकार प्राणियों का जीवन है, जो न जाने कब समाप्त हो जाता है। किसी का लम्बा जीवनकाल हो सकता है तो किसी का छोटा। जन्म लेने वाला एक दिन मृत्यु को अवश्य प्राप्त होता है। जन्म और मृत्यु दो किनारे हैं तो जीवन उन तटो के बीच प्रवाहित होता है। जीवन में निर्मलता और गतिमत्ता बनी रहे, आदमी को ऐसा प्रयास करना चाहिए और उसके लिए आदमी को सतत जागरूक रहते हुए समय मात्र भी प्रमाद में नहीं जाना चाहिए।

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तेरापंथ धर्मसंघ की विशिष्ट विभूति की स्मृति सभा का आयोजन हो रहा है। आज से लगभग 81 वर्ष पूर्व लाडनूं के सूरजमल बैद परिवार में जन्म लेने वाली शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी की दीक्षा केलवा में हुई। उन्हें दीक्षा के बाद लगभग ग्यारह वर्षों तक सामान्य साध्वियों की भांति गुरुकुलवास में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। परम पूज्य आचार्य तुलसी ने गंगाशहर में उन्हें साध्वीप्रमुखा का पद प्रदान किया। उन्होंने पचास वर्षों तक साध्वीप्रमुखा के रूप में धर्मसंघ को अपनी विशिष्ट सेवाएं दीं। इसी वर्ष लाडनूं में उनके साध्वीप्रमुखा काल के 50 वर्षों की सम्पन्नता पर लाडनूं अमृत महोत्सव मनाया गया। वे तेरापंथ धर्मसंघ में विशिष्ट थीं, जिन्होंने तीन आचार्यों के साथ धर्मसंघ का कार्य किया। इसलिए मैंने उन्हें गुवाहाटी में असाधारण साध्वीप्रमुखा कहा था। तेरापंथ धर्मसंघ की पहली साध्वीप्रमुखा थीं जो शासनमाता बनी। वे विदुषी और कवयित्री साध्वी थीं। उनका संस्कृत का ज्ञान विशिष्ट था। जब मेरी दीक्षा हुई तो वे गुरुदेव के पास ही थीं। उन्होंने अब तक 500 से अधिक साध्वियों का केशलोच किया। काफी लम्बी यात्रा भी की। गुरुदेव तुलसी ने उन्हें पट्ट प्रदान किया। 17 मार्च को वे कालधर्म को प्राप्त हो गईं। वे एक विशिष्ट विभूति थीं। 62 वर्षों तक साध्वी के रूप में साधना कर 81 वर्ष में वे पधार गईं।

आचार्यश्री ने अपने वक्तव्य के उपरान्त एक विशिष्ट बात करते हुए कहा कि आज उनकी स्मृति में चार लोगस्स के साथ-साथ नवकार मंत्र का भी प्रयोग करें तथा प्रायः जो ध्यान बैठ कर किया जाता है वह आज खड़े-खड़े किया जाएगा। ऐसा कहते हुए आचार्यश्री जैसे ही पट्ट से नीचे खड़े हुए संपूर्ण चतुर्विध धर्मसंघ भी अपने स्थान पर खड़ा हो गया और चार लोगस्स सहित नवकार मंत्र का ध्यान कर शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी के प्रति अपनी आध्यात्मिक श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने अपने द्वारा रचित गीत का भी संगान किया। आचार्यश्री ने कहा कि उनके जीवन से प्रेरणा मिलती रहे।

इस अवसर विशिष्ट रूप में से उपस्थित दिल्ली के उपमुख्यमंत्री श्री मनीष सिसौदिया ने कहा दिव्य आत्मा शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी के लिए मैं आज यही प्रार्थना करूंगा कि उन्हें उत्तम गति और भगवान के श्रीचरणों में स्थान मिले। भगवान ने उन्हें विशेष सोच के साथ ही जन्म दिया था, जिसे वे सार्थक बना गईं और लोगों को नवीन पथ दिखा गईं। मैं शासनमाता के चरणों में पुनः विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष श्री रामविलास गोयल ने कहा कि मैं परम सौभाग्यशाली हूं जो मुझे शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने उनकी ओर देखा तो मुझे लगा मैं उनके दिव्य तेज को सहन नहीं कर पा रहा हूं। वे गंगा, जमुना, सरस्वती की तरह निर्मल थीं। आचार्य तुलसी ने उनकी आंतरिक निर्मलता को देखते हुए ही उन्हें साध्वीप्रमुखा पद प्रदान किया था। लम्बे समय तक धर्मसंघ में अपनी सेवा और उस दौरान तीन-तीन गुरुओं का सान्निध्य प्राप्त करने अपने आप में विलक्षण बात है। आपके वंदन की मुद्रा समस्त लोगों के दिलों को स्पर्श कर गई। आचार्यश्री! आज मैं आपके समक्ष उनकी आत्मा के प्रति मंगलकामना करता हूं कि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो।

कार्यक्रम में संतवृंद, साध्वीवृंद, समणीवृंद व मुमुक्षुवृंद ने सामूहिक रूप से पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। अहिंसा यात्रा समारोह समिति के अध्यक्ष महेन्द्र नाहटा, के.एल. जैन पटावरी, दिल्ली सभा के अध्यक्ष जोधराज बैद, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया आदि ने विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की।

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