‘समण सुत्तं’—जैन धर्म का सार और उसका विराट व्यवहार: डॉ. बी .डी कल्ला

जयपुर। जैन आगम साहित्य विशाल है। उस विशाल साहित्य का अध्ययन कर सार को ग्रहण करना सभी के लिए संभव नहीं है। इस दृष्टि से आगमों के सार के रूप में संकलित ‘समण सुत्तं’ ग्रंथ जैन धर्म के सार और उसके विराट व्यवहार को अभिव्यक्त करता है। यह बात कला, साहित्य एवं संस्कृति मंत्री, डॉ. बी.डी. कल्ला ने शनिवार को प्रोफेसर दयानंद भार्गव द्वारा संस्कृत-अंग्रेजी में अनुदित ‘समण सुत्तं’ ग्रंथ पर राजस्थान संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित टॉक-शो एवं ग्रंथ के लोकार्पण के अवसर पर कही।

ग्रंथ के लोकार्पण के पश्चात टॉक- शो में बोलते हुए डॉ. बी. डी कल्ला ने कहा कि संत विनोबा भावे की प्रेरणा से लिखित ये ग्रंथ जैन धर्म की भगवतगीता है। इस ग्रंथ में दिगम्बर परंपरा में शौरसेनी भाषा एवं श्वेतांबर परंपरा की अर्धमागधी भाषा मे रचित आगमों का अमृत प्रवाहित होता है ।

राजस्थान संस्कृत अकादमी के प्रशासक सोमनाथ मिश्रा IAS ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि जैन धर्म पुरुषार्थ एवं कर्म प्रधान है, जो जीवन मे कलुष और कषायों से मुक्ति का पथ प्रशस्त करता है। जीवन के उत्थान के लिए जो आवश्यक संदेश निहित है, समण सुत्तं उन्ही प्राकृत गाथाओं का निर्मल सरोवर है।

ग्रंथ के भाष्यकार राष्ट्रपति सम्मानित विद्वान प्रोफेसर दयानंद भार्गव ने इसके लेखन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि देश-काल के अनुसार समस्याएं एवं उनके समाधान है। इसमें समस्या और समाधान के लिए 3000 वर्ष पुराने संदेशों को आधुनिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है। ये ग्रंथ विश्व को श्रम, समता, शांति और अहिंसा के मार्ग पर ले जाने वाला है। इस ग्रंथ को चार भागों में विभक्त किया गया है। आत्मप्रकाश, मुक्तिमार्ग, मीमांसा और सापेक्षता का सिद्धांत। ये तुलना और तार्किक रूप से परिभाषित किये गए है।

टॉक -शो की वार्ताकार डॉ .सुषमा सिंघवी ने कहा कि यह ग्रंथ जैन धर्म की सभी परम्पराओ और मान्यताओं के लिए स्वीकार्य है। ये सम्यक ज्ञान, दृष्टि और चरित्र के माध्यम से मोक्ष का मार्ग बताता है।

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