“आईआईडीसी 2025: बांस की मजबूती, एआई की सटीकता और सीमाओं के पार डिज़ाइन की नई उड़ान”

IIDC 2025 : Precision of AI and New Flight of Design Across Limits

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IIDC 2025 : Precision of AI and New Flight of Design Across Limits

आईआईडीसी 2025 जयपुर में इंटीरियर मटेरियल एग्जीबिशन और कारीगरों की अनूठी संगत

जयपु। राजस्थान की राजधानी में आयोजित इंडिया इंटरनेशनल डिज़ाइन कॉन्क्लेव (आईआईडीसी) 2025 न सिर्फ डिज़ाइन प्रेमियों बल्कि आम जनता के लिए भी एक यादगार अनुभव बन गया। इस भव्य आयोजन में इंटीरियर मटेरियल्स की शानदार प्रदर्शनी और देशभर से आए कारीगरों की भागीदारी ने शहर में रचनात्मकता की लहर दौड़ा दी। ये कहना था आईआईडी के राजस्थान चेयरमैन, आर्किटेक्ट आशीष काला का।

उन्होंने कहा इस आयोजन की मेजबानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीरियर डिज़ाइनर (आईआईडी) जयपुर रीजनल चैप्टर कर रहा है। जिसमे डिज़ाइन, आर्ट, वास्तुकला और संस्कृति के विविध पहलुओं को एक ही मंच पर लाकर शहरवासियों को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है।

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आईआईडीसी की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे आयोजन में अपेक्षा से कहीं अधिक दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी। जयपुरवासियों ने बड़ी संख्या में इस आयोजन में भाग लेकर न केवल डिज़ाइन और आर्ट की दुनिया को नज़दीक से जान रहे है, बल्कि कारीगरों के कार्य को सराहा भी कर रहे है। जिसके अंतर्गत ऑपरेशन सिंदूर को नमन करते हुए, राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कारीगर दीपक संकित ने भी मीनाकारी के कफ़लिंक बना कर यहां डिस्प्ले किए हैं।

आईआईडी के संदीप जैन ने बताया कि कॉन्क्लेव के दूसरे दिन कई महत्वपूर्ण वर्कशॉप हुई जिनमें से एक में उदयपुर के आर्किटेक्ट गौरव गुप्ता ने आर्किटेक्चर और कंस्ट्रक्शन में बांस और कंक्रीट को मिलाकर टिकाऊ और किफायती संरचना बनाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बांस को आरसीसी में स्टील सरिया की जगह उपयोग कर भूकंप-रोधी इमारत बनाई जा सकती हैं।

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सचिव आईआईटी मनीष ठाकुरिया ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का आर्किटेक्चर में उपयोग सेशन में आर्किटेक्ट साहिल तनवीर ने कहा कि एक नया और इनोवेटिव बदलाव है। उन्होंने बताया कि 3डी प्रिंटिंग और पैरामेट्रिक डिजाइन पहले से प्रचलित हैं, लेकिन एआई ने इसे और आगे बढ़ाया है, जिससे आर्किटेक्ट्स को सटीकता और रचनात्मकता मिलती है। हालांकि,एआई के आने से जॉब लॉसेस की चिंता भी बढ़ी है पर टेक्नोलॉजी के साथ-साथ अनुभव और सोच का संतुलन ज़रूरी है।

आईआईडीसी की सुनील कुमार ने बताया कि आर्किटेक्ट चार्ली हर्न (इंडोनेशिया) ने अपने सेशन में बायोहोलिस्टिक आर्किटेक्चर के बारे में बताते हुए कहा कि बायोहोलिस्टिक वास्तुकला की एक ऐसी पद्धति है जो प्राकृतिक संतुलन, मानव कल्याण और सांस्कृतिक सामंजस्य को साथ लेकर चलती है। इसमें प्राकृतिक सामग्री, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत और नवीन डिज़ाइन रणनीतियों का उपयोग करके ऐसे भवन बनाए जाते हैं जो लोगों और पृथ्वी दोनों के लिए अनुकूल हों। यह पद्धति स्थिरता, प्रकृति से जुड़ाव और समग्र दृष्टिकोण को प्राथमिकता देती है, जिससे ऊर्जा की बचत, पर्यावरणीय प्रभाव में कमी और निवासियों के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।

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आईआईडीसी के जूही केड़िया ने बताया कि सिंगापुर से आर्किटेक्ट रेने टैन ने अपने टॉक का नाम रखा था “आर्किटेक्ट की तरह मत सोचो।” इसका कारण ये था कि अक्सर हम वही करने की कोशिश करते हैं जो आर्किटेक्ट को सिखाया जाता है। किसी मायने में ये टॉक उन पहलुओं के बारे में थी जो डिज़ाइन बनाने में उलट सोच को सामने लाते हैं – वो बातें जो हमें पारंपरिक सोच से बाहर निकालती हैं।

‘चर्चा’ सेशन में चर्चा में आईआईडीसी की थीम “डिज़ाइन बियॉन्ड बॉउंडरी” पर बात करते हुई इंटीरियर डिज़ाइनर, नीरज शाह ने कहा कि डिज़ाइन सिर्फ़ आज़ादी की नहीं बल्कि सीमाओं की भी कहानी है। उनके टॉक में उन्होंने “आर्किटेक्ट की तरह न सोचे” में बात की-कॉन्टेक्स्ट, क्लाइंट की ज़रूरतें, बजट, नैतिकता और कानून जैसी सीमाएँ डिज़ाइन की गुणवत्ता और दिशा तय करती हैं। ओवर-कंसम्प्शन और विजुअल पोल्यूशन से बचकर ही सस्टेनेबल और समय-कालातीत डिज़ाइन बन पाता है।

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