राजस्थान में लुप्त हो रही कला को इंटीरियर डिज़ाइनरों,आर्किटेक्ट,कारीगरों ने पेश की मिशाल

Architect designers architects artisans set an example of vanishing art in Rajasthan

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आईआईडीसी 2025 संपन्न

जयपुर। जयपुरवासियों के लिए आज का दिन कुछ खास था, इंडिया इंटरनेशनल इंटीरियर डिज़ाइन द्वारा आयोजित इंडिया इंटरनेशनल डिज़ाइन कॉन्क्लेव (आईआईडीसी) 2025 के अंतिम दिन शहर ने एक बार फिर साबित किया कि सस्टेनेबिलिटी और इनोवेशन का मेल कितना खूबसूरत हो सकता है। राजस्थान चेयरमैन आर्किटेक्ट आशीष काला ने बताया कि यहां के कारीगरों और डिज़ाइनरों ने अपनी रचनात्मकता और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता से सबका दिल जीत लिया है।

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आईआईडी के संदीप जैन और सुनील कुमार ने बताया कि, कॉन्क्लेव में हुए वर्कशॉप में सांगानेर की लघुउद्योग भारती की अध्यक्ष, पिंकी महेश्वरी ने अपने स्टार्टअप सरप्राइज सम्बन के जरिए एक बेहद खास पहल की है। वह पुराने कपड़ों और टेक्सटाइल वेस्ट से हैंडमेड पेपर और स्टेशनरी बना रही हैं। यह नवाचार इतना प्रभावी रहा है कि इनके बने विशेष कैलेंडर और स्टेशनरी प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में भी इस्तेमाल हो रहा है।

पिंकी ने बताया कि यह पहल ने न सिर्फ पर्यावरण को बचाने में मदद करती है, बल्कि सांगानेर की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में भी अहम भूमिका निभा रहे है। पिंकी ने आगे बताया कि हमने पुराने टायर, टैक्सी और साइकिल जैसी अनुपयोगी वस्तुओं को भी नया रूप देकर आकर्षक इंस्टॉलेशंस बनाए है, जो अपसाइकलिंग का बेहतरीन उदाहरण हैं। व

र्कशॉप में जयपुर के बच्चों ने भी फूलों की पंखुड़ियों और सीट्स से हैंडमेड पेपर बनाकर अपनी क्रिएटिविटी दिखाई। इसके अलावा ऑपरेशन सिंदूर को नमन करते हुए, राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कारीगर दीपक संकित ने भी मीनाकारी के कफ़लिंक बना कर यहां डिस्प्ले किया था।

आईआईडीसी के अनुपमा राणा और जूही केड़िया ने बताया कि, जयपुर के विवेक गुप्ता ने एक और अनूठी पहल की है। उन्होंने विदेशों से आयात होने वाली टाइल्स पर निर्भरता कम करने के लिए स्थानीय स्तर पर हैंडमेड टाइल्स बनाने का काम शुरू किया है। इन टाइल्स में भारतीय रंगों और मोर के डिज़ाइन का खूबसूरत संयोजन किया गया है। छोटे बैचों में तैयार होने वाली इन टाइल्स को बनाने में करीब तीन हफ्ते लगते हैं, और ये बाथरूम, वैनिटी कॉर्नर और डेकोरेटिव स्पेस के लिए खासतौर पर डिज़ाइन की गई हैं। इससे जयपुर के कारीगरों को भी नया रोजगार मिला है।

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आईआईडीसी के अंशुल मोदी और विवेक गुप्ता ने बताया कि, कार्यक्रम का सबसे आकर्षक हिस्सा था “छुपा शहर – स्वर्णनगरी जैसलमेर” पर बना इंस्टॉलेशन। इसमें जैसलमेर के स्टेप वेल्स और जैसलमेर स्टोन का इस्तेमाल करते हुए एक पर्गोला जैसी संरचना बनाई गई, जिसे खुले स्थानों में लगाया जा सकता है। यह मल्टीपर्पज़ डिज़ाइन है – इसे लिविंग रूम की सेंटर टेबल या इंटीरियर-एक्सटीरियर लाइट फिक्स्चर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। हिमाली गौर और अक्षी मेहता द्वारा तैयार इस इंस्टॉलेशन ने राजस्थान की नक्काशी और स्थापत्य कला को आधुनिक अंदाज में पेश किया।

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आईआईडीसी के आशीष गुप्ता ने बताया कि पारंपरिक पिचवाई कला धीरे-धीरे आधुनिक दुनिया में अपनी पहचान खोती जा रही है। इस 400 साल पुरानी नाथद्वारा से उत्पन्न हुई कला को हम जागरूकता कार्यशालाओं के माध्यम से ही पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। पिचवाई कला की विशेषता इसके जीवंत रंग और जटिल डिज़ाइनों में है, जो श्रीनाथजी के इर्द-गिर्द घूमती है और आमतौर पर कपड़े पर चित्रित की जाती है। यह श्रीनाथजी मंदिर के लिए एक अद्भुत पृष्ठभूमि बनाती है।

मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ कि आईआईडीसी ने वर्तमान पीढ़ी को इस अद्भुत कला का अनुभव कराने का अवसर दिया। इसके अलावा क्ले मिनिएचर फर्नीचर की भी एक वर्कशॉप भी आयोजित की गए। आइए, हम सभी मिलकर अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोने में सहयोग करें। ये पूरा आयोजन जयपुरवासियों के लिए गर्व का पल था जिसने साबित किया कि परंपरा और आधुनिकता के संगम से हम सस्टेनेबल भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। एक बार फिर, जयपुर ने दिखाया कि कला, नवाचार और पर्यावरण संरक्षण एक साथ कैसे चल सकते हैं।

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