दिवाली पर गाय के गोबर से बने दीये से रोशन होंगे अमेरिका के घर-आंगन

America homes will be illuminated with lamps made of cow dung on Diwali

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America homes will be illuminated with lamps made of cow dung on Diwali

-सनराइज आर्गेनिक पार्क में बने 20 लाख दीपक किए निर्यात
-देश में भी बढ़ रही है इको-फ्रेंडली दीपकों की मांग
जयपुर।  दिवाली पर गोबर के दीए से इस बार प्रवासी भारतीयों के घर-आंगन रोशन करने की तैयारी है। इसके लिए विदेशों में बसे भारतीयों के लिए अकेले जयपुर से 20 लाख दीये निर्यात किए गए हैं। ये दीये टोंक रोड स्थित श्रीपिंजरापोल गौशाला परिसर में सनराइज आर्गेनिक पार्क में बनाए गए हैं।

पिछल्ले करीब छह माह से महिला स्वयं सहायता समूहों की दर्जनों महिलाएं इन इको-फ्रेंडली दीपकों का निर्माण कर रही हैं। हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी व आईआईएएएसडी के सहयोग से बनाए जा रहे इस दीपकों को भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ की ओर से मार्केट उपलब्ध करवा रहा है।

पर्यावरण संरक्षण व महिलाओं को स्वाबलंबी बनाने की दिशा में गोबर से बने दीए को अहम माना जा रहा है। रंग-बिरंगे गोबर के ये दीए इस बार चार शानदार डिजाइन में तैयार किए जा रहे हैं। सनराइज आर्गेनिक पार्क में औषधीय खेती कर रही हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी से जुड़ी महिलाओं ने इस दिशा में अभिनव पहल की है।

इन्हीं महिलाओं ने गाय के गोबर को अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति मजबूत करने का जरिया बना लिया है। ये महिलाएं आकर्षक दीए बनाने के साथ-साथ लक्ष्मी जी व गणेश जी की मूर्ति सहित कई तरह की कलात्मक चीजें भी बना रही हैं। इकोफ्रेंडली होने के चलते राज्य के अन्य शहरों और अन्य राज्यों के साथ-साथ विदेशों से भी इसकी मांग आ रही है।

ऐसे तैयार होते हैं गोबर के दीए

हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी की अध्यक्ष मोनिका गुप्ता ने बताया कि दीपक बनाने के लिए पहले गाय के गोबर को इक्कठा किया जाता है। उसके बाद करीब ढाई किलो गोबर के पाउडर में एक किलो प्रीमिक्स व गोंद मिलाते हैं। गीली मिट्टी की तरह छानने के बाद इसे हाथ से उसको गूंथा जाता है।

उन्होने बताया कि शुद्धि के लिए इनमें जटा मासी, पीली सरसों, विशेष वृक्ष की छाल, एलोवेरा, मेथी के बीज, इमली के बीज आदि को मिलाया जाता है। इसमें 40 प्रतिशत ताजा गोबर और 60 प्रतिशत सूखा गोबर इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद गाय के गोबर के दीपक का खूबसूरत आकार दिया जाता है। एक मिनट में चार दीये तैयार हो जाते हैं। इसे दो दिनों तक धूप में सुखाने के बाद अलग-अलग रंगों से सजाया जाता है।

उन्होने बताया कि प्रतिदिन 20 महिलाएं 3000 हजार दीपक बना रही हैं। उन्होंने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक गौमाता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास है। इसलिए हमारा लक्ष्य दीये का उपयोग बढाकर लोगों को गाय के गोबर के महत्व को बताना है।

उन्होंने बताया कि अब तक जयपुर सहित तेलंगाना, गुजरात, दिल्ली व हरियाणा के साथ-साथ अमेरिका सहित छह देशों में गाय के गोबर से निर्मित दीयों की डिमांड आयी है। होलसेल में दीए की कीमत 2 रुपए से लेकर 10 रुपए प्रति नग है। अब तक करीब 20 लाख दीए बनाए जा चुके हैं, परंतु डिमांड के अनुसार आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इतना नहीं इसके साथ-साथ गणेश और लक्ष्मी माता की मूर्ति भी इको फ्रेंडली बनाई जा रही है।

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दीपक चायनीज नहीं बल्कि गाय के गोबर से दीये का संभाला जिम्मा

भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ के अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि चीन किस तरह मार्केट को पकड़ता है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि चीन जिन त्योहारों को मानता ही नहीं है वह उसे मनाने के लिए सामान बनाता है। होली चीन में नहीं खेली जाती लेकिन उसकी पिचकारी चीन से बनकर आती है। चीन दीपावली नहीं मनाता लेकिन हमारे घरों को रोशन करने वाली लाइटें चीन से बनकर आती हैं। लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है।

गुप्ता ने बताया कि भारत ने यह ठान लिया है कि जब पर्व भारतीय हैं तो उसकी कमाई कोई और क्यों ले जाए। कुछ इसी तर्ज पर जयपुर सहित देश-प्रदेश में महिलाओं ने इस बार दीपावली पर जलने वाले दीपक चायनीज नहीं बल्कि गाय के गोबर से बनाकर आमजन को उपलब्ध कराने का जिम्मा संभाला है।

उन्होंने बताया कि इस दीपक के जलने से घर में हवन की खुशबू महकेगी। जिससे घर के वातावरण को पटाखों की गैस को कम करने में सहायक होगी। दीये को दीपावली में उपयोग करने के बाद जैविक खाद बनाने उपयोग में लाया जा सकता है। दीये के अवशेष को गमला या कीचन गार्डन में भी उपयोग किया जा सकता है।

उन्होने बताया कि इस तरह मिट्टी के दीये बनाने और पकाने में पर्यावरण को होने वाले नुकसान के स्थान पर गोबर को दीए को इको फ्रेंडली माना जाता है। उन्होंने सनातनधर्मियों से गाय के गोबर से बने दीपक जलाने का आह्वान किया है।

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