आमलकी/रंगभरी एकादशी : 14 मार्च, सोमवार : आंवले के वृक्ष के नीचे होगी भगवान् श्रीविष्णु की पूजा

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-ज्योतिर्विद विमल जैन

Amalaki Ekadashi 2022 : भारतीय संस्कृति के हिन्दू धर्मशास्त्रों में प्रत्येक माह की तिथियों एवं व्रत त्यौहारों की अपनी खास पहचान है। फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि के दिन आमलकी/रंगभरी एकादशी मनाई जाती है।

ऐसी मान्यता है कि आमलकी एकादशी के व्रत से द्वादश मास के समस्त एकादशी के व्रत का पुण्यफल मिलता है, साथ ही जीवन के समस्त पापों का शमन भी होता है। एकादशी तिथि के दिन स्नान-दान व्रत से सहस्र गोदान के समान शुभफल की प्राप्ति बतलाई गई है। इस दिन स्ïनान-दान व व्रत से भगवान् श्रीहरि यानि श्रीविष्णु जी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्त्व है।

प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 13 मार्च, रविवार को प्रात: 10 बजकर 22 मिनट पर लग रही है जो 14 मार्च, सोमवार को दिन में 12 बजकर 06 मिनट तक रहेगी।

पुष्य नक्षत्र 13 मार्च, रविवार की सायं 6 बजकर 39 मिनट से 14 मार्च, सोमवार को रात्रि 8 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।

सम्पूर्ण दिन पुष्य नक्षत्र होने से आमलकी/रंगभरी एकादशी और भी शुभ फलकारी हो गई है। 14 मार्च, सोमवार को एकादशी तिथि पडऩे से आमलकी/रंगभरी एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा।

आज के दिन काशी में श्रीकाशी विश्वनाथ जी का प्रतिष्ठा महोत्सव व शृंगार दिवस भी मनाया जाता है।

रंगभरी एकादशी के दिन काशी में शिव जी के भक्त बहुत धूम-धाम इस त्योहार को मनाते हैं। इस दिन भोलेनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी लाए थे। इसलिए इस दिन काशी में मां पार्वती का भव्य स्वागत किया जाता है, और इसी खुशी में रंग-गुलाल उड़ाने की परम्परा है।

Amalaki Ekadashi 2022 Puja : आंवला के पेड़ की भी होती है पूजा

रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव के साथ-साथ आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है। इसलिए रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन पूजा पाठ करने से व्यक्ति को सेहत और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं, इस दिन माँ अन्नपूर्णा की सोने या चांदी की मूर्ति के दर्शन करने की मान्यता है।

Amalaki Ekadashi 2022 : ऐसे करें भगवान श्रीहरि की पूजा

विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को अपने दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान के पश्चात् आमलकी/रंगभरी एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प के साथ व्रत करके समस्त नियम-संयम आदि का पालन करना चाहिए।

ऐसी धार्मिक मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में त्रिदेव (ब्रह्म, विष्णु एवं महेश) का वास माना गया है। ब्रह्मजी वृक्ष के ऊपरी भाग में, शिवजी वृक्ष के मध्य भाग में एवं श्रीविष्णु वृक्ष के जड़ में निवास करते हैं।

धार्मिक परम्परा के अनुसार आंवले के वृक्ष का पूजन पूर्वाभिमुख होकर करना चाहिए। साथ ही आँवले के वृक्ष के पूजन में पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अॢपत करने चाहिये।

पूजन के पश्चात् वृक्ष की आरती करके परिक्रमा करना पुण्य फलदायी माना गया है। आंवले के फल का दान करना भी सौभाग्य में वृद्धि करता है।

भगवान श्रीविष्णु की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए इनके मन्त्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए। आज रात्रि जागरण करना लाभकारी रहता है।

सम्पूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत सम्पादित करना चाहिए, अन्न ग्रहण करने का निषेध है। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। साथ ही व्रत के समय दिन में शयन नहीं करना चाहिए। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामथ्र्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए।

अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। रंगभरी एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से जीवन के समस्त पापों का शमन हो जाता है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य बना रहता है।

(हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न -परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिसी एंव वास्तुविद् , एस.2/1-76 ए, द्वितीय तल, वरदान भवन, टगोर टाउन एक्सटेंशन, भोजूबीर, वाराणसी)

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